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व्यवस्थाविवरण 28: 1 – 31:29

यदि तुम यहोवा अपने परमेश्वर के इन आदेशों के पालन में सावधान रहोगे जिन्हें मैं आज तुम्हें बता रहा हूँ तो योहवा तुम्हारा परमेश्वर तुम्हें पृथ्वी के सभी राष्ट्रों के ऊपर श्रेष्ठ करेगा। यदि तुम यहोवा अपने परमेश्वर के आदेशों का पालन करोगे तो ये वरदान तुम्हारे पास आएंगे और तुम्हारे होंगे:

“यहोवा तुम्हारे नगरों और खेतों को
    आशीष प्रदान करेगा।
यहोवा तुम्हारे बच्चों को
    आशीर्वाद देगा।
वह तुम्हारी भूमि को
    अच्छी फसल का वरदानदेगा और
वह तुम्हारे जानवरों को
    बच्चे देने का वरदान देगा।
    तुम्हारे पास बहुत से मवेशी और भेड़ें होंगी।
यहोवा तुम्हें अच्छे अन्न की फसल
    और बहुत अधिक भोजन पाने का आशीर्वाद देगा।
यहोवा तुम्हें तुम्हारे आगमन और प्रस्थान पर आशीर्वाद देगा।

“यहोवा तुम्हें उन शत्रुओं पर विजयी बनाएगा जो तुम्हारे विरुद्ध होंगे। तुम्हारे शत्रु तुम्हारे विरुद्ध एक रास्ते से आएंगे किन्तु वे तुम्हारे सामने सात मार्गों में भाग खड़ें होंगे।

“यहोवा तुम्हें भरे कृषि—भंडार का आशीर्वाद देगा। तुम जो कुछ करोगे वह उसके लिये आशीर्वाद देगा जिसे वह तुमको दे रहा है। यहोवा तुम्हें अपने विशेष लोग बनाएगा। यहोवा ने तुम्हें यह वचन दिया है बशर्ते कि तुम यहोवा अपने परमेश्वर के आदेशों का पालन करो और उसके मार्ग पर चलो। 10 तब पृथ्वी के सभी लोग देखेंगे कि तुम यहोवा के नाम से जाने जाते हो और वे तुमसे भयभीत होंगे।

11 “और यहोवा तुम्हें बहुत सी अच्छी चीजें देगा। वह तुम्हें बहुत से बच्चे देगा। वह तुम्हें मवेशी और बहुत से बछड़े देगा। वह उस देश में तुम्हें बहुत अच्छी फसल देगा जिसे उन्होंने तुम्हारे पूर्वजों को देने का वचन दिया था।

12 “यहोवा अपने भण्डार खोल देगा जिनमें वह अपना कीमती वरदान रखता है तथा तुम्हारी भूमि के लिये ठीक समय पर वर्षा देगा। यहोवा जो कुछ भी तुम करोगे उसके लिए आशीर्वाद देगा और बहुत से राष्ट्रों को कर्ज देने के लिए तुम्हारे पास धन होगा। किन्तु तुम्हें उनसे कुछ उधार लेने की आवश्यकता नहीं होगी। 13 यहोवा तुम्हें सिर बनाएगा, पूँछ नहीं। तुम चोटी पर होगे, तलहटी पर नहीं। यह तब होगा जह तुम यहोवा अपने परमेश्वर के उन आदेशों पर ध्यान दोगे जिन्हें मैं आज तुम्हें दे रहा हूँ। 14 तुम्हें उन शिक्षाओं में से किसी की उपेक्षा नहीं करनी चाहिये जिन्हें मैं आज तुम्हें दे रहा हूँ। तुम्हें इनसे दाँयी या बाँयी ओर नहीं जाना चाहिए। तुम्हें उपासना के लिये अन्य देवताओं का अनुसरण नहीं करना चाहिए।

अभिशाप

15 “किन्तु यदि तुम यहोवा अपने परमेश्वर द्वारा कही गई बातों पर ध्यान नहीं देते और आज मैं जिन आदेशों और नियमों को बता रहा हूँ, पालन नहीं करते तो ये सभी अभिशाप तुम पर आयेंगेः

16 “यहोवा तुम्हारे नगरों और गाँवों को
    अभिशाप देगा।
17 यहोवा तुम्हारी टोकरियों व बर्तनों को अभिशाप देगा
    और तुम्हें पर्याप्त भोजन नहीं मिलेगा।
18 तुम्हारे बच्चे
    अभिशप्त होंगे।
तुम्हारी भूमि की फसलें
    तुम्हारे मवेशियों के बछड़े
और तुम्हारी रेवड़ों के मेमनें
    अभिशप्त होंगे।
19 तुम्हारा आगमन और प्रस्थान अभिशप्त होगा।

20 “यदि तुम बुरे काम करोगे और अपने यहोवा से मुँह फेरोगे, तो तुम अभिशप्त होगे। तुम जो कुछ करोगे उसमें तुम्हें अव्यवस्था और फटकार का समाना करना होगा। वह यह तब तक करेगा जब तक तुम शीघ्रता से और पूरी तरह से नष्ट नहीं हो जाते। 21 यदि तुम यहोवा की आज्ञा नहीं मानते तो वह तुम्हें तब तक महामारी से पीड़ित करत रहेगा जब तक तुम उस देश में पूरी तरह नष्ट नहीं हो जाते जिसमें तुम रहने के लिये प्रवेश कर रहे हो। 22 यहोवा तुम्हें रोग से पीड़ित और दुर्बल होने का दण्ड देगा। तुम्हें ज्वर और सूजन होगी। यहोवा तुम्हारे पास भंयकर गर्मी भेजेगा और तुम्हारे यहाँ वर्षा नहीं होगी। तुम्हारी फसलें गर्मी या रोग से नष्ट हो जाएंगी। तुम पर ये आपत्तियाँ तब तक आएंगी जब तक तुम मर नहीं जाते! 23 आकाश में कोई बादल नहीं रहेगा और आकाश काँसा जैसा होगा। और तुम्हारे नीचे पृथ्वी लोहे की तरह होगी। 24 वर्षा के बदले यहोवा तुम्हारे पास आकाश से रेत और धूलि भेजेगा। यह तुम पर तब तक आयेगी जब तक तुम नष्ट नहीं हो जाते।

25 “यहोवा तुम्हारे शत्रुओं द्वारा तुम्हें पराजित करायेगा। तुम अपने शत्रुओं के विरुद्ध एक रास्ते से जाओगे और उनके सामने से सात मार्ग से भागोगे। तुम्हारे ऊपर जो आपत्तियाँ आएँगी वे सारी पृथ्वी के लोगों को भयभीत करेंगी। 26 तुम्हारे शव सभी जंगली जानवरों और पक्षियों का भोजन बनेंगे। कोई व्यक्ति उन्हें डराकर तुम्हारी लाशों से भगाने वाला न होगा।

27 “यदि तुम यहोवा की आज्ञा का पालन नहीं करते तो वह तुम्हें वैसे फोड़े होने का दण्ड देगा जैसे फोड़े उसने मिस्रियों पर भेजे थे। वह तुम्हें भयंकर फोड़ों और खुजली से पीड़ित करेगा। 28 यहोवा तुम्हें पागल बना कर दण्ड देगा। वह तुम्हें अन्धा और कुण्ठित बनाएगा। 29 तुम्हें दिन के प्रकाश में अन्धे की तरह अपना रास्ता टटोलना पड़ेगा। तुम जो कुछ करोगे उसमें तुम असफल रहोगे। लोग तुम पर बार—बार प्रहार करेंगे और तुम्हारी चीजें चुराएंगे। तुम्हें बचाने वाला वहाँ कोई भी न होगा।

30 “तुम्हारा विवाह किसी स्त्री के साथ पक्का हो सकता है, किन्तु दूसरा व्यक्ति उसके साथ सोयेगा। तुम कोई घर बना सकते हो, किन्तु तुम उसमें रहोगे नहीं। तुम अंगूर का बाग लगा सकते हो, किन्तु इससे कुछ भी इकट्ठा नहीं कर सकते। 31 तुम्हारा बैल तुम्हारी आँखों के सामने मारा जाएगा किन्तु तुम उसका कुछ भी माँस नहीं खा सकते। तुम्हारा गधा तुमसे बलपूर्वक छीन कर ले जाया जाएगा यह तुम्हें लौटाया नहीं जाएगा। तुम्हारी भेड़ें तुम्हारे शत्रुओं को दे दी जाएँगी। तुम्हारा रक्षक कोई व्यक्ति नहीं होगा।

32 “तुम्हारे पुत्र और तुम्हारी पुत्रियाँ दूसरी जाति के लोगों को दे दी जाएँगी। तुम्हारी आँखे सारे दिन बच्चों को देखने के लिये टकटकी लगाए रहेंगी क्योंकि तुम बच्चों को देखना चाहोगे। किन्तु तुम प्रतीक्षा करते—करते कमजोर हो जाओगे, तुम असहाय हो जाओगे।

33 “वह राष्ट्र जिसे तुम नहीं जानते, तुम्हारे पसीने की कमाई की सारी फसल खाएगा। तुम सदैव परेशान रहोगे। तुम सदैव छिन्न—भिन्न होगे। 34 तुम्हारी आँखें वह देखेंगी जिससे तुम पागल हो जाओगे। 35 यहोवा तुम्हें दर्द वाले फोड़ों का दण्ड देगा। ये फोड़े तुम्हारे घुटनों और पैरों पर होंगे। वे तुम्हारे तलवे से लेकर सिर के ऊपर तक फैल जाएंगे और तुम्हारे ये फोड़े भरेंगे नहीं।

36 “यहोवा तुम्हें और तुम्हारे राजा को ऐसे राष्ट्र में भेजेगा जिसे तुम नहीं जानते होगे। तुमने और तुम्हारे पूर्वजों ने उस राष्ट्र को कभी नहीं देखा होगा। वहाँ तुम लकड़ी और पत्थर के बने अन्य देवताओं को पूजोगे। 37 जिन देशों में यहोवा तुम्हें भेजेगा उन देशों के लोग तुम लोगों पर आई विपत्तियों को सुनकर स्तब्ध रह जाएंगे। वे तुम्हारी हँसी उड़ायेंगे और तुम्हारी निन्दा करेंगे।

असफलता का अभिशाप

38 “तुम अपने खेतों में बोने के लिये आवश्यकता से बहुत अधिक बीज ले जाओगे। किन्तु तुम्हारी उपज कम होगी। क्यों? क्योंकि टिड्डयाँ तुम्हारी फसलें खा जाएंगी। 39 तुम अंगूर के बाग लगाओगे और उनमें कड़ा परिश्रम करोगे। किन्तु तुम उनमें से अंगूर इकट्ठे नहीं करोगे और न ही उन से दाखमधु पीओगे। क्यों? क्योंकि उन्हें कीड़े खा जाएंगे। 40 तुम्हारी सारी भूमि में जैतून के पेड़ होंगे। किन्तु तुम उसके कुछ भी तेल का उपयोग नहीं कर सकोगे। क्यों? क्योंकि तुम्हारे जैतून के पेड़ अपने फलों को नष्ट होने के लिये गिरा देंगे। 41 तुम्हारे पुत्र और तुम्हारी पुत्रियाँ होंगी, किन्तु तुम उन्हें अपने पास नहीं रख सकोगे। क्यों? क्योंकि वे पकड़कर दूर ले जाए जाएंगे। 42 टिड्डियाँ तुम्हारे पेड़ों और खेतों की फसलों को नष्ट कर देंगी। 43 तुम्हारे बीच रहने वाले विदेशी अधिक से अधिक शक्ति बढ़ाते जाएँगे और तुममें जों भी तुम्हारी शक्ति है उसे खोते जाओगे। 44 विदेशियों के पास तुम्हें उधार देने योग्य धन होगा लेकिन तुम्हारे पास उन्हें उधार देने योग धन नहीं होगा। वे तुम्हारा वैसा ही नियन्त्रण करेंगे जैसा मस्तिष्क शरीर का करता है। तुम पूँछ के समान बन जाओगे।

45 “ये सारे अभिशाप तुम पर पड़ेंगे। वे तुम्हारा पीछा तब तक करते रहेंगे और तुमको ग्रसित करते रहेंगे जब तक तुम नष्ट हो जाते। क्यों? क्योंकि तुमने यहोवा अपने परमेश्वर की कही हुई बातों की परवाह नहीं की। तुमने उसके उन आदेशों और नियमों का पालन नहीं किया जिसे उसने तुम्हें दिया। 46 ये अभिशाप लोगों को बताएंगे कि परमेश्वर ने तुम्हारे वंशजों के साथ सदैव न्याय किया है। ये अभिशाप संकेत और चेतावनी के रूप में तुम्हें और तुम्हारे वंशजों को हमेशा याद रहेंगे।

47 “यहोवा तुम्हारे परमेश्वर ने तुम्हें बहुत से वरदान दिये। किन्तु तुमने उसकी सेवा प्रसन्नता और उल्लास भरे हृदय से नहीं की। 48 इसलिए तुम अपने उन शत्रुओं की सेवा करोगे जिन्हें यहोवा, तुम्हारे विरुद्ध भेजेगा। तुम भूखे, प्यासे और नंगे रहोगे। तुम्हारे पास कुछ भी न होगा। यहोवा तुम्हारी गर्दन पर एक लोहे का जुवा तब तक रखेगा जब तक वह तुम्हें नष्ट नहीं कर देता।

शत्रु राष्ट्र का अभिशाप

49 “यहोवा तुम्हारे विरुद्ध बहुत दूर से एक राष्ट्र को लाएगा। यह राष्ट्र पृथ्वी की दूसरी ओर से आएगा। यह राष्ट्र तुम्हारे ऊपर आकाश से उतरते उकाब की तरह शीघ्रता से आक्रमण करेगा। तुम इस राष्ट्र की भाषा नहीं समझोगे। 50 इस राष्ट्र के लोगों के चेहरे कठोर होंगे। वे बूढ़े लोगों की भी परवाह नहीं करेंगे। वे छोटे बच्चों पर भी दयालु नहीं होंगे। 51 वे तुम्हारे मवेशियों के बछड़े और तुम्हारी भूमि की फसल तब तक खायेंगे जब तक तुम नष्ट नहीं हो जाओगे। वे तुम्हारे लिये अन्न, नयी दाखमधु, तेल तुम्हारे मवेशियों के बछड़े अथवा तुम्हारे रेवड़ों के मेमने नहीं छोड़ेंगे। वे यह तब तक करते रहेंगे जब तक तुम नष्ट नहीं हो जाओगे।

52 “यह राष्ट्र तुम्हारे सभी नगरों को घेर लेगा। तुम अपने नगरों के चारों ओर ऊँची और दृढ़ दीवारों पर भरोसा रखते हो। किन्तु तुम्हारे देश में ये दीवारें सर्वत्र गिर जाएंगी। हाँ, वह राष्ट्र तुम्हारे उस देश के सभी नगरों पर आक्रमण करेगा जिसे यहोवा तुम्हारा परमेश्वर तुम्हें दे रहा है। 53 जब तक तुम्हारा शत्रु तुम्हारे नगर का घेरा डाले रहेगा तब तक तुम्हारी बड़ी हानि होगी। तुम इतने भूखे होगे कि अपने बच्चों को भी खा जाओगे। तुम अपने पुत्र और पुत्रियों का माँस खाओगे जिन्हें यहोवा तुम्हारे परमेश्वर ने तुम्हे दिया है।

54 “तुम्हारा बहुत विनम्र सज्जन पुरुष भी अपने बच्चों, भाईयों, अपनी प्रिय पत्नी तथा बचे हुए बच्चों के साथ बहुत क्रूरता का बर्ताव करेगा। 55 उसके पास कुछ भी खाने को नहीं होगा क्योंकि तुम्हारे नगरों के विरूद्ध आने वाले शत्रु इतनी अधिक हानि पहुँचा देंगे। इसलिए वह अपने बच्चों को खायेगा। किन्तु वह अपने परिवार के शेष लोगों को कुछ भी नहीं देगा!

56 “तुम्हारे बीच सबसे अधिक विनम्र और कोमल स्त्री भी वही करेगी। ऐसी सम्पन्न और कोमल स्त्री भी जिसने कहीं जाने के लिये जमीन पर कभी पैर भी न रखा हो। वह अपने प्रिय पति या अपने पुत्र—पुत्रियों के साथ हिस्सा बँटाने से इन्कार करेगी। 57 वह अपने ही गर्भ की झिल्ली[a] को खायेगी और उस बच्चे को भी जिसे वह जन्म देगी। वह उन्हें गुप्त रूप से खायेगी। क्यों? क्योंकि वहाँ कोई भी भोजन नहीं बचा है। यह तब होगा जब तुम्हारा शत्रु तुम्हारे नगरों के विरुद्ध आयेगा और बहुत अधिक कष्ट पहुँचायेगा।

58 “इस पुस्तक में जितने आदेश और नियम लिखे गए हैं उन सबका पालन तुम्हें करना चाहिए और तुम्हें यहोवा अपने परमेश्वर के आश्चर्य और आतंक उत्पन्न करने वाले नाम का सम्मान करना चाहिए। यदि तुम इनका पालन नहीं करते 59 तो यहोवा तुम्हें भयंकर आपत्ति में डालेगा और तुम्हारे वंशज बड़ी परेशानियाँ उठायेंगे और उन्हें भयंकर रोग होंगे जो लम्बे समय तक रहेंगे 60 और यहोवा मिस्र से वे सभी बीमारियाँ लाएगा जिनसे तुम डरते हो। ये बीमारियाँ तुम लोगों में रहेंगी। 61 यहोवा उन बीमारियों और परेशानियों को भी तुम्हारे बीच लाएगा जो इस व्यवस्था की किताब में नहीं लिखी गई हैं। वह यह तब तक करता रहेगा जब तक तुम नष्ट नहीं हो जाते। 62 तुम इतने अधिक हो सकते हो जितने आकाश में तारे हैं। किन्तु तुममें से कुछ ही बचे रहेंगे। तुम्हारे साथ यह क्यों होगा? क्योंकि तुमने यहोवा अपने परमेश्वर की बात नहीं मानी।

63 “पहले यहोवा तुम्हारी भलाई करने और तुम्हारे राष्ट्र को बढ़ाने में प्रसन्न था। उसी तरह यहोवा तुम्हें नष्ट और बरबाद करने में प्रसन्न होगा। तुम उस देश से बाहर ले जाए जाओगे जिसे तुम अपना बनाने के लिये उसमें प्रवेश कर रहे हो। 64 यहोवा तुम्हें पृथ्वी के एक छोर से दूसरी छोर तक संसार के सभी लोगों मे बिखेर देगा। वहाँ तुम दूसरे लकड़ी और पत्थर के देवताओं को पूजोगे जिन्हें तुमने या तुम्हारे पूर्वजों ने कभी नहीं पूजा।

65 “तुम्हें इन राष्ट्रों के बीच तनिक भी शान्ति नहीं मिलेगी। तुम्हें आराम की कोई जगह नहीं मिलेगी। यहोवा तुम्हारे मस्तिष्क को चिन्ताओं से भर देगा। तुम्हारी आँखें पथरा जाएंगी। तुम अपने को ऊखड़ा हुआ अनुभव करोगे। 66 तुम संकट में रहोगे। तुम दिन—रात भयभीत रहोगे। सदैव सन्देह में पड़े रहोगे। तुम अपने जीवन के बारे में कभी निश्चिन्त नहीं रहोगे। 67 सवेरे तुम कहोगे, ‘अच्छा होता, यह शाम होती!’ शाम को तुम कहोगे, ‘अच्छा होता, यह सवेरा होता!’ क्यों? क्योंकि उस भय के कारण जो तुम्हारे हृदय में होगा और उन आपत्तियों के कारण जो तुम देखोगे। 68 यहोवा तुम्हें जहाजों में मिस्र वापस भेजेगा। मैंने यह कहा कि तुम उस स्थान पर दुबारा कभी नहीं जाओगे। किन्तु यहोवा तुम्हें वहाँ भेजेगा। और वहाँ तुम अपने को अपने शत्रुओं के हाथ दास के रूप में बेचने की कोशिश करोगे, किन्तु कोई व्यक्ति तुम्हें खरीदेगा नहीं।”

मोआब में वाचा

29 ये बातें उस वाचा का अंग हैं जिस वाचा को यहोवा ने मोआब प्रदेश मे इस्राएल के लोगों के साथ मूसा से करने को कहा। यहोवा ने इस वाचा को उस साक्षीपत्र से अतिरिक्त किया जिसे उसने इस्राएल के लोगों के साथ होरेब (सीनै) पर्वत पर किया था।

मूसा ने सभी इस्राएली लोगों को इकट्ठा बुलाया। उसने उनसे कहा, “तुमने वह सब कुछ देखा जो याहोवा ने मिस्र देश में किया। तुमने वह सब भी देखा जो उसने फिरौन, फिरौन के प्रमुखों और उसके पूरे देश के साथ किया। तुमने उन बड़ी मुसीबतों को देखा जो उसने उन्हें दीं। तुमने उसके उन चमत्कारों और बड़े आश्चर्यों को देखा जो उसने किये। किन्तु आज भी तुम नहीं समझते कि क्या हुआ। यहोवा ने सचमुच तुमको नहीं समझाया जो तुमने देखा और सुना। यहोवा तुम्हें चालीस वर्ष तक मरुभूमि से होकर ले जाता रहा और उस लम्बे समय के बीच तुम्हारे वस्त्र और जूते फटकर खत्म नहीं हुए। तुम्हारे पास कुछ भी भोजन नहीं था। तुम्हारे पास कुछ भी दाखमधु या कोई अन्य पीने की चीज़ नहीं थी। किन्तु यहोवा ने तुम्हारी देखभाल की उसने यह इसलिए किया कि तुम समझोगे कि वह यहोवा, तुम्हारा परमेश्वर है।

“जब तुम इस स्थान पर आए तब हेशबोन का राजा सीहोन और बाशान का राजा ओग हम लोगों के विरुद्ध लड़ने आए। किन्तु हम लोगों ने उन्हें हराया। तब हम लोगों ने ये प्रदेश रूबेनियों, गादियों और मनश्शे के आधे लोगों को उनके कब्जे में दे दिया। इसलिए, इस वाचा के आदेशों का पालन पूरी तरह करो। तब जो कुछ तुम करोगे उसमे सफल होगे।

10 “आज तुम सभी यहोवा अपने परमेश्वर के सामने खड़े हो। तुम्हारे प्रमुख, तुम्हारे अधिकारी, तुम्हारे बुजुर्ग (प्रमुख) और सभी अन्य लोग यहाँ हैं। 11 तुम्हारी पत्नियाँ और बच्चे यहाँ हैं तथा वे विदेशी भी यहाँ हैं जो तुम्हारे बीच रहते हैं एवं तुम्हारी लकड़ियाँ काटते और पानी भरते हैं। 12 तुम सभी यहाँ यहोवा अपने परमेश्वर के साथ एक वाचा करने वाले हो। यहोवा तुम लोगों के साथ यह वाचा आज कर रहा है। 13 इस वाचा द्वारा यहोवा तुम्हें अपने विशेष लोग बना रहा है और वह स्वंय तुम्हारा परमेश्वर होगा। उसने यह तुमसे कहा है। उसने तुम्हारे पूर्वजों इब्राहीम, इसहाक और याकूब को यह वचन दिया था। 14 यहोवा अपना वचन देकर केवल तुम लोगों के साथ ही वाचा नहीं कर रहा है। 15 वह यह वाचा हम सभी के साथ कर रहा है जो यहाँ आज यहोवा अपने परमेश्वर के सामने खड़े हैं। किन्तु यह वाचा हमारे उन वंशजों के लिये भी है जो यहाँ आज हम लोगों के साथ नहीं हैं। 16 तुम्हें याद है कि हम मिस्र में कैसे रहे और तुम्हें याद है कि हमने उन देशों से होकर कैसे यात्रा की जो यहाँ तक आने वाले हमारे रास्ते पर थे। 17 तुमने उनकी घृणित चीज़ें अर्थात् लकड़ी, पत्थर, चाँदी, और सोने की बनी देवमूर्तियाँ देखीं। 18 निश्चय कर लो कि आज यहाँ हम लोगों में कोई ऐसा पुरुष, स्त्री, परिवार या परिवार समूह नहीं है जो यहोवा, अपने परमेश्वर के विपरीत जाता हो। कोई भी व्यक्ति उन राष्ट्रों के देवताओं की सेवा करने नहीं जाना चाहिए। जो लोग ऐसा करते हैं वे उस पौधे की तरह हैं जो कड़वा, जहरीला फसल पैदा करता है।

19 “कोई व्यक्ति इन अभिशापों को सुन सकता है और अपने को संतोष देता हुआ कह सकता है, ‘मैं जो चाहता हूँ करता रहूँगा। मेरा कुछ भी बुरा नहीं होगा।’ वह व्यक्ति अपने ऊपर ही आपत्ति नहीं बुलाएगा अपितु वह सबके ऊपर अच्छे लोगों पर भी बुलाएगा।[a] 20-21 यहोवा उस व्यक्ति को क्षमा नहीं करेगा। नहीं, यहोवा उस व्यक्ति पर क्रोधित होगा और बौखला उठेगा। इस पुस्तक में लिखे सभी अभिशाप उस पर पड़ेंगे। यहोवा उसे इस्रएल के सभी परिवार समूहों से निकाल बाहर करेगा। यहोवा उसको पूरी तरह नष्ट करेगा। सभी आपत्तियाँ जो इस पुस्तक में लिखी गई हैं, उस पर आयेंगी। वे सभी बातें उस वाचा का अंश हैं जो व्यवस्था की पुस्तक में लिखी गई हैं।

22 “भविष्य में, तुम्हारे वंशज और बहुत दूर के देशों से आने वाले विदेशी लोग देखेंगे कि देश कैसे बरबाद हो गया है। वे उन लोगों को देखेंगे जिन्हें यहोवा उनमें लायेगा। 23 सारा देश जलते गन्धक और नमक से ढका हुआ बेकार हो जाएगा। भूमि में कुछ भी बोया हुआ नहीं रहेगा। कुछ भी, यहाँ तक कि खर—पतवार भी यहाँ नहीं उगेंगे। यह देश उन नगरों—सदोम, अमोरा, अदमा और सबोयीम, की तरह नष्ट कर दिया जाएगा। जिन्हें यहोवा, ने तब नष्ट किया था जब वह बहुत क्रोधित था।

24 “सभी दूसरे राष्ट्र पूछेंगे, ‘यहोवा ने इस देश के साथ ऐसा क्यों किया? वह इतना क्रोधित क्यों हुआ?’ 25 उत्तर होगा: ‘यहोवा इसलिए क्रोधित हुआ कि इस्राएल के लोगों ने यहोवा, अपने पूर्वजों के परमेश्वर की वाचा तोड़ी। उन्होंने उस वाचा का पालन करना बन्द कर दिया जिसे योहवा ने उनके साथ तब किया था जब वह उन्हें मिस्र देश से बाहर लाया था। 26 इस्राएल के लोगों ने ऐसे अन्य देवाताओं की सेवा करनी आरम्भ की जिनकी पूजा का ज्ञान उन्हें पहले कभी नहीं था। यहोवा ने अपने लोगों से उन देवताओं की पूजा करना मना किया था। 27 यही कारण है कि यहोवा इस देश के लोगों के विरुद्ध बहुत क्रोधित हो गया। इसलिए उसने इस पुस्तक में लिखे गए सभी अभिशापों को इन पर लागू किया। 28 यहोवा उन पर बहुत क्रोधित हुआ और उन पर बौखला उठा। इसलिए उसने उनके देश से उन्हें बाहर किया। उसने उन्हें दूसरे देश में पहुँचाया जहाँ वे आज हैं।’

29 “कुछ ऐसी बातें हैं जिन्हें यहोवा हमारे परमेश्वर ने गुप्त रखा है। उन बातों को केवल वह ही जानता है। किन्तु यहोवा ने हमें अपने नियमों की जानकारी दी है! वह व्यवस्था हमारे लिये और हमारे वंशजों के लिये है। हमें इसका पालन सदैव करना चाहिए!

इस्राएलियों की वापसी का वचन

30 “जो मैंने कहा है वह तुम पर घटित होगा। तुम आशीर्वाद से अच्छी चीजें पाओगे और अभिशाप से बुरी चीज़ें पाओगे। यहोवा तुम्हारा परमेश्वर तुम्हें दूसरे राष्ट्रों में भेजेगा। तब तुम इनके बारे में सोचोगे। उस समय तुम और तुम्हारे वंशज यहोवा, अपने परमेश्वर के पास लौटेंगे। तुम पूरे हृदय और आत्मा से उन आदेशों का पालन करोगे जो आज हम ने दिये हैं उनका पूरा पालन करोगे। तब यहोवा तुम्हारा परमेश्वर तुम पर दयालु होगा। यहोवा तुम्हें फिर स्वतन्त्र करेगा। वह उन राष्ट्रों से तुम्हें लौटाएगा जहाँ उसने तुम्हें भेजा था। चाहे तुम पृथ्वी के दूरतम स्थान पर भेज दिये गये हो, यहोवा, तुम्हारा परमेश्वर तुमको इकट्ठा करेगा और तुम्हें वहाँ से वापस लाएगा। यहोवा तुम्हें उस देश में लाएगा जो तुम्हारे पूर्वजों का था और वह देश तुम्हारा होगा। यहोवा तुम्हारा भला करेगा और तुम्हारे पास उससे अधिक होगा, जितना तुम्हारे पूर्वजों के पास था और तुम्हारे राष्ट्र में उससे अधिक लोग होंगे जितने उनके पास कभी थे। यहोवा तुम्हारा परमेश्वर, तुम्हें और तुम्हारे वंशजों को परिशुद्ध करेगा कि वे उसकी आज्ञा का पालन करना चाहेंगे।[a] तब तुम यहोवा को सम्पूर्ण हृदय से प्रम करोगे और तुम जीवित रहोगे!

“और यहोवा तुम्हारा परमेश्वर इन अभिशापों को तुम्हारे उन शत्रुओं पर उतारेगा जो तुमसे घृणा करते हैं तथा तुम्हें परेशान करते हैं और तुम फिर यहोवा की आज्ञा का पालन करोगे। तुम उन सभी आदेशों का पालन करोगे जिन्हें मैंने आज तुम्हें दिये है। यहोवा तुम्हारा परमेश्वर तुम्हें उन सब में सफल बनाएगा जो तुम करोगे। वह तुम्हें बहुत से बच्चों के लिये, तुम्हारे मवेशियों को बहुत बछड़े और तुम्हारे खेतों को अच्छी फ़सल होने का वरदान देगा। यहोवा तुम्हारे लिए भला होगा। यहोवा तुम्हारा भला करने में वैसा ही आनन्दित होगा जैसा आनन्दित वह तुम्हारे पूर्वजों का भला करने में होता था। 10 किन्तु तुम्हें वह सब कुछ करना चाहिए जो यहोवा तुम्हारा परमेश्वर तुमसे करने को कहता है। तुम्हें उसके आदेशों को मानना और व्यवस्था की पुस्तक में लिखे गए नियमों का पालन करना चाहिए। तुम्हें यहोवा अपने परमेश्वर की ओर अपने पूरे हृदय और आत्मा से हो जाना चाहिए। तब ये सभी अच्छी बातें तुम्हारे लिये होंगी।

जीवन या मरण

11 “आज जो आदेश मैं तुम्हें दे रहा हूँ, वह तुम्हारे लिये बहुत कठिन नहीं है। यह तुम्हारी पहुँच के बाहर नहीं है। 12 यह आदेश स्वर्ग में नहीं है जिससे तुम्हें कहना पड़े, ‘हम लोगों के लिये स्वर्ग में कौन जाएगा और उसे हम लोगों के पास लाएगा जिससे हम उसे सुन सकें और उसका अनुसरण कर सकें?’ 13 यह आदेश समुद्र के दूसरे पार नहीं है जिससे तुम यह कहो कि ‘हमारे लिये समुद्र कौन पार करेगा और इसे लाएगा जिससे हम इसे सुन सकें और कर सकें?’ 14 नहीं, यहोवा का वचन तुम्हारे पास है। यह तुम्हारे मूँह और तुम्हारे हृदय में है जिससे तुम इसे कर सको।

15 “मैंने आज तुम्हारे सम्मुख जीवन और मृत्यु, समृद्धि और विनाश रख दिया है। 16 मैं आज तुम्हें आदेश देता हूँ कि यहोवा अपने परमेश्वर से प्रेम करो, उसके मार्ग पर चलो और उसके आदेशों, विधियों और नियमों का पालन करो। तब तुम जीवित रहोगे और तुम्हारा राष्ट्र अधिक बड़ा होगा। और यहोवा तुम्हारा परमेश्वर तुम्हें उस देश में आशीर्वाद देगा जिसे अपना बनाने के लिए तुम वहाँ जा रहे हो। 17 किन्तु यदि तुम यहोवा से मुँह फेरते हो और उसकी अनसुनी करते हो तथा दूसरे देवताओं की सेवा और पूजा में बहकाये जाते हो 18 तब तुम नष्ट कर दिये जाओगे। मैं चेतावनी दे रहा हूँ, तुम यरदन नदी के पार के उस देश में लम्बे समय तक नहीं रहोगे जिसमें जाने के लिये तुम तैयार हो और जिसे तुम अपना बनाओगे।

19 “आज मैं तुम्हें दो मार्ग को चुनने की छूट दे रहा हूँ। मैं धरती—आकाश को तुम्हारे चुनाव का साक्षी बना रहा हूँ। तुम जीवन को चुन सकते हो, या तुम मृत्यु को चुन सकते हो। जीवन का चुनना वरदान लाएगा और मृत्यु को चुनना अभिशाप। इसलिए जीवन को चुनो। तब तुम और तुम्हारे बच्चे जीवित रहेंगे। 20 तुम्हें यहोवा अपने परमेश्वर को प्रेम करना चाहिए और उसकी आज्ञा माननी चाहिए। उससे कभी विमुख न हो। क्यों? क्योंकि यहोवा तुम्हारा जीवन है, और यहोवा तुम्हें उस देश में लम्बा जीवन देगा जिसे उसने तुम्हारे पूर्वजों इब्राहीम, इसहाक और याकूब को देने का वचन दिया था।”

यहोशू नया नेता होगा

31 तब मूसा आगे बढ़ा और इस्राएलियों से ये बात कही। मूसा ने उनसे कहा, “अब मैं एक सौ बीस वर्ष का हूँ। मैं अब आगे तुम्हारा नेतृत्व नहीं कर सकता। यहोवा ने मुझसे कहा है: ‘तुम यरदन नदी के पार नहीं जाओगे।’ यहोवा तुम्हारा परमेश्वर तुम्हारे आगे चलेगा! वह इन राष्ट्रों को तुम्हारे लिए नष्ट करेगा। तुम उनका देश उससे छीन लोगे। यहोशू उस पार तुम लोगों के आगे चलेगा। योहवा ने यह कहा है।

“यहोवा इन राष्ट्रों के लोगों के साथ वही करेगा जो उसने एमोरियों के राजाओं सीहोन और ओग के साथ किया। उन राजाओं के देश के साथ उसने जो किया वही यहाँ करेगा। यहोवा ने उनके प्रदेशों को नष्ट किया! और यहोवा तुम्हें उन राष्ट्रों को पराजित करने देगा और तुम उनके साथ वह सब करोगे जिसे करने के लिये मैंने कहा है। दृढ़ और साहसी बनो। इन राष्ट्रों से डरो नहीं। क्यों? क्योंकि यहोवा तुम्हारा परमेश्वर तुम्हारे साथ जा रहा है। वह तुम्हें न छोड़ेगा और न त्यागेगा।”

तब मूसा ने यहोशू को बुलाया। जिस समय मूसा यहोशू से बातें कर रहा था उस समय इस्राएल के सभी लोग देख रहे थे। जब मूसा ने यहोशू से कहा, “दृढ़ और साहसी बनो। तुम इन लोगों को उस देश में ले जाओगे जिसे यहोवा ने इनके पूर्वजों को देने का वचन दिया था। तुम इस्राएल के लोगों की सहायता उस देश को लेने और अपना बनाने में करोगे। यहोवा आगे चलेगा। वह स्वयं तुम्हारे साथ है। वह तुम्हें न सहायता देना बन्द करेगा, न ही तुम्हें छोड़ेगा। तुम न ही भयभीत न ही चिंतित हो!”

मूसा व्यवस्था लिखाता है

तब मूसा ने इन नियमों को लिखा और लेवी के वंशज याजकों को दे दिया। उनका काम यहोवा के साक्षीपत्र के सन्दूक को ले चलना था। मूसा ने इस्राएल के सभी प्रमुखों को नियम दिए। 10 तब मूसा ने प्रमुखों को आदेश दिया। उसने कहा, “हर एक सात वर्ष बाद, स्वतन्त्रता के वर्ष में डेरों के पर्व में इन नियमों को पढ़ो। 11 उस समय इस्राएल के सभी लोग यहोवा, अपने परमेश्वर से मिलने के लिए उस विशेष स्थान पर आएंगे जिसे वे चुनेंगे। तब तुम लोगों में इन नियमों को ऐसे पढ़ना जिससे वे इसे सुन सकें। 12 सभी लोगों, पुरुषों, स्त्री, छोटे बच्चों और अपने नगरों में रहने वाले सभी विदेशियों को इकट्ठा करो। वे नियम को सुनेंगे, और वे यहोवा तुम्हारे परमेश्वर का आदर करना सीखेंगे और वे इस नियम व आदेशों के पालन में सावधान रहेंगे 13 और तब उनके वंशज जो नियम नहीं जानते, इसे सुनेंगे और वे यहोवा तुम्हारे परमेश्वर का सम्मान करना सीखेंगे। वे तब तक सम्मान करेंगे जब तक तुम उस देश में रहोगे जिसे तुम यरदन नदी के उस पार लेने के लिये तैयार हो।”

यहोवा मूसा और यहोशू को बुलाता है

14 यहोवा ने मूसा से कहा, “अब तुम्हारे मरने का समय निकट है। यहोशू को लो और मिलापवाले तम्बू में जाओ। मैं यहोशू को बताऊँगा कि वह क्या करे।” इसलिए मूसा और यहोशू मिलापवाले तम्बू में गए।

15 यहोवा बादलों के एक स्तम्भ के रूप में प्रकट हुआ। बादल का स्तम्भ तम्बू के द्वार पर खड़ा था। 16 यहोवा ने मूसा से कहा, “तुम शीघ्र ही मरोगे और जब तुम अपने पूर्वजों के साथ चले जाओगे तो ये लोग मुझ पर विश्वास करने वाले नहीं रह जायेंगे। वे उस वाचा को तोड़ देंगे जो मैंने इनके साथ की है। वे मुझे छोड़ देंगे और अन्य देवताओं की पूजा करना आरम्भ करेंगे, उन प्रदेशों के बनावटी देवताओं की जिनमें वे जायेंगे। 17 उस समय, मैं इन पर पहुत क्रोधित होऊँगा और इन्हें छोड़ दूँगा। मैं उनकी सहायता करना बन्द करुँगा और वे नष्ट हो जाएँगे। उनके साथ भयंकर घटनायें होंगी और वे विपत्ति में पड़ेंगे। तब वे कहेंगे, ‘ये बुरी घटनायें हम लोगों के साथ इसलिए हो रही हैं कि हमारा परमेश्वर हमारे साथ नहीं है।’ 18 तब मैं उनसे अपना मुँह छिपाऊँगा क्योंकि वे बुरा करेंगे और दूसरे देवताओं की पूजा करेंगे।

19 “इसलिए इस गीत को लिखो और इस्राएली लोगों को सिखाओ। उन्हें इसे गाना सिखाओ। तब इस्राएल के लोगों के विरूद्ध मेरे लिये यह गीत साक्षी रहेगा। 20 मैं उन्हें उस देश में जो अच्छी चीज़ों से भरा—पूरा है तथा जिसे देने का वचन मैंने उनके पूर्वजों को दिया है, ले जाऊँगा और वे जो खाना चाहेंगे, सब पाएंगे। वे सम्पन्नता से भरा जीवन बिताएंगे। किन्तु तब वे दूसरे देवताओं की ओर जाएंगे और उनकी सेवा करेंगे, वे मुझसे मुँह फेर लेंगे तथा मेरी वाचा को तोड़ेंगे, 21 तब उन पर भयंकर आपत्तियाँ आएंगी और वे बड़ी मुसीबत में होंगे। उस समय उनके लोग इस गीत को तब भी जानेंगे और यह उन्हें बताएगा कि वे कितनी बड़ी गलती पर हैं। मैंने अभी तक उनको उस देश में नहीं पहुँचाया है जिसे उन्हें देने का वचन मैंने दिया है। किन्तु मैं पहले से ही जानता हूँ कि वे वहाँ क्या करने वाले हैं, क्योंकि मैं उनकी प्रकृति से परिचित हूँ।”

22 इसलिए मूसा ने उसी दिन गीत लिखा और उसने गीत को इस्राएल के लोगों को सिखाया।

23 तब यहोवा ने नून के पुत्र यहोशू से बातें कीं। यहोवा ने कहा, “दृढ़ और साहसी बनो। तुम इस्राएल के लोगों को उस देश में ले चलोगे जिसे उन्हें देने का मैंने वचन दिया है और मैं तुम्हारे साथ रहूँगा।”

मूसा इस्राएल के लोगों को चेतावनी देता है

24 मूसा ने ये सारे नियम एक पुस्तक में लिखे। जब उसने इसे पूरा कर लिया तब 25 उसने लेवीवंशियों को आदेश दिया (ये लोग यहोवा के साक्षीपत्र के सन्दूक की देखभाल करते थे) मूसा ने कहा, 26 “इस व्यवस्था की किताब को लो और योहवा, अपने परमेश्वर के साक्षीपत्र के सन्दूक की बगल में रखो। तब यह वहाँ तुम्हारे विरुद्ध साक्षी होगी। 27 मैं जानता हूँ कि तुम बहुत अड़ियल हो। मैं जानता हूँ तुम मनमानी करना चाहते हो। ध्यान दो, आज जब मैं तुम्हारे साथ हूँ तब भी तुमने यहोवा की आज्ञा मानने से इन्कार किया है। मेरे मरने के बाद तुम योहवा की आज्ञा मानने से और अधिक इन्कार करोगे। 28 अपने सभी परिवार समूहों के प्रमुखों और अधिकारियों को एक साथ बुलाओ। मैं उन्हें यह सब कुछ बताऊँगा और मैं पृथ्वी और आकाश को उनके विरुद्ध साक्षी होने के लिए बुलाऊँगा। 29 मैं जानता हूँ कि मेरी मृत्यु के बाद तुम लोग कुकर्म करोगे। तुम उस मार्ग से हट जाओगे जिस पर चलने का आदेश मैंने दिया है। तब भविष्य में तुम पर आपत्तियाँ आएंगी। क्यों? क्योंकि तुम वह करना चाहते हो जिसे यहोवा बुरा बताता है। तुम उसे उन कामों को करने के कारण क्रोधित करोगे।”