सूरा अद – दुखान (सूरा 44 – धुआँ) हम से कहता है कि कुरेश के क़बीले ने जेल का दावा पेश करने के ज़रिये हज़रत मुहम्मद (सल्लम) के पैगाम का इंकार किया I
ये (कुफ्फ़ारे मक्का) (मुसलमानों से) कहते हैंकि हमें तो सिर्फ एक बार मरना है और फिर हम दोबारा (ज़िन्दा करके) उठाए न जाएँगेतो अगर तुम सच्चे हो तो हमारे बाप दादाओं को (ज़िन्दा करके) ले आओ
सूरा अद—दुखान 44:34-36
ये (कुफ़्फ़ारे मक्का) (मुसलमानों से) कहते हैं। कि हमें तो सिर्फ एक बार मरना है और फिर हम दोबारा (जि़न्दा करके) उठाए न जाएँगे। तो अगर तुम सच्चे हो तो हमारे बाप दादाओं को (जि़न्दा करके) ले आओ।
उनहों ने दावा पेश किया कि किसी मुर्दे को जिला कर दिखा दो ताकि वह अपने पैगाम के सच होने का सबूत पेश कर सके I सूरा अल –अहक़ाफ़ (सूरा 46 – हवा का रेत के टीले में तब्दील होना) यह इसी तरह के का बयान करता है गैर ईमानदार से अपने ईमानदार माँबाप की बाबत I
और जिसने अपने माँ बाप से कहा कि तुम्हारा बुरा हो, क्या तुम मुझे धमकी देते हो कि मैं दोबारा (कब्र से) निकाला जाऊँगा हालॉकि बहुत से लोग मुझसे पहले गुज़र चुके (और कोई ज़िन्दा न हुआ) और दोनों फ़रियाद कर रहे थे कि तुझ पर वाए हो ईमान ले आ ख़ुदा का वायदा ज़रूर सच्चा है तो वह बोल उठा कि ये तो बस अगले लोगों के अफ़साने हैं
सूरा अल – अहक़ाफ़ 46:17
और जिसने अपने माँ बाप से कहा कि तुम्हारा बुरा हो, क्या तुम मुझे धमकी देते हो कि मैं दोबारा (कब्र से) निकाला जाऊँगा हालाँकि बहुत से लोग मुझसे पहले गुज़र चुके (और कोई जि़न्दा न हुआ) और दोनों फ़रियाद कर रहे थे कि तुझ पर वाए हो ईमान ले आ ख़ुदा का वायदा ज़रूर सच्चा है तो वह बोल उठा कि ये तो बस अगले लोगों के अफ़साने हैं।
गैर ईमानदारों ने क़यामत या मुरदों में से ज़िंदा होने को एक ख़याली कहानी बतोर समझा I जबकि यह उनकी नज़रों में कभी वाक़े नहीं हुआ I सूरा अद –- दुखान और सूरा अल – अहक़ाफ़ यह दोनों हवालाजात मुरदों को ज़िंदा करने के जांच के लिए इस्तेमाल किया जाता है I यह हज़रत मुहम्मद (सल्लम) और तमाम वाहिद ख़ुदा को मानने वालों के बुनयादी ईमान की जांच के लिए है I नबी हज़रत ईसा ने भी इसी तरह की जांच अपने मुखालिफों के ज़रिये सामना किया I उनहों ने इस जांच को अपने इख्तियार की जांच और अपनी ख़िदमत के मक़सद का इंकिशाफ़ के लिए इस्तेमाल किया था I
हज़रत ईसा अल मसीह की ख़िदमत गुज़ारी क्या थी ?
हज़रत ईसा अल मसीह ने तालिम दी, शिफाएँ दीं, और कई एक मुजिज़े अंजाम दिये I मगर सवाल अभी भी उसके शागिर्दों और उसके पीछे चलने वालों और यहाँ तक कि उसके दुश्मनों के दमाग में रह गया था कि वह दुनया में क्यूँ आए ? कई एक पहले के नबियों, हज़रत मूसा को शामिल करते हुए जिन्हों ने ज़बरदस्त मुजिज़ों को अंजाम दिया था I जबकि हज़रत मूसा ने पहले से शरीअत दी थी और खुद हज़रत ईसा अल मसीह ने फ़रमाया था कि “मैं शारीयत को मंसूख करने बल्कि पूरा करने आया हूँ” मगर वह दुनया में क्यूँ भेजे गए थे ?
एक हज़रत ईसा का दोस्त था जो बहुत ज़ियादा बीमार पड़ गया था I उनके शागिर्दों ने तवक़्क़ो किया था कि नबी हज़रत ईसा अल मसीह अपने दोस्त को शिफा देंगे जिस तरह उनहों ने दूसरों को शिफा दी थी I मगर हज़रत ईसा अल मसीह ने जान बूझ कर अपने दोस्त को शिफा नहीं दी ताकि वह अपनी खास ख़िदमत गुज़ारी का इंकिशाफ कर सके I इंजील शरीफ़ इसे इस तरह से बयान करती है :
हज़रत ईसा अल मसीह मौत का मुक़ाबला करते हैं
रियम और उस की बहिन मारथा के गांव बैतनिय्याह का लाजर नाम एक मनुष्य बीमार था।
यूहनना 11:1— 44
2 यह वही मरियम थी जिस ने प्रभु पर इत्र डालकर उसके पांवों को अपने बालों से पोंछा था, इसी का भाई लाजर बीमार था।
3 सो उस की बहिनों ने उसे कहला भेजा, कि हे प्रभु, देख, जिस से तू प्रीति रखता है, वह बीमार है।
4 यह सुनकर यीशु ने कहा, यह बीमारी मृत्यु की नहीं, परन्तु परमेश्वर की महिमा के लिये है, कि उसके द्वारा परमेश्वर के पुत्र की महिमा हो।
5 और यीशु मारथा और उस की बहन और लाजर से प्रेम रखता था।
6 सो जब उस ने सुना, कि वह बीमार है, तो जिस स्थान पर वह था, वहां दो दिन और ठहर गया।
7 फिर इस के बाद उस ने चेलों से कहा, कि आओ, हम फिर यहूदिया को चलें।
8 चेलों ने उस से कहा, हे रब्बी, अभी तो यहूदी तुझे पत्थरवाह करना चाहते थे, और क्या तू फिर भी वहीं जाता है?
9 यीशु ने उत्तर दिया, क्या दिन के बारह घंटे नहीं होते यदि कोई दिन को चले, तो ठोकर नहीं खाता है, क्योंकि इस जगत का उजाला देखता है।
10 परन्तु यदि कोई रात को चले, तो ठोकर खाता है, क्योंकि उस में प्रकाश नहीं।
11 उस ने ये बातें कहीं, और इस के बाद उन से कहने लगा, कि हमारा मित्र लाजर सो गया है, परन्तु मैं उसे जगाने जाता हूं।
12 तब चेलों ने उस से कहा, हे प्रभु, यदि वह सो गया है, तो बच जाएगा।
13 यीशु ने तो उस की मृत्यु के विषय में कहा था: परन्तु वे समझे कि उस ने नींद से सो जाने के विषय में कहा।
14 तब यीशु ने उन से साफ कह दिया, कि लाजर मर गया है।
15 और मैं तुम्हारे कारण आनन्दित हूं कि मैं वहां न था जिस से तुम विश्वास करो, परन्तु अब आओ, हम उसके पास चलें।
16 तब थोमा ने जो दिदुमुस कहलाता है, अपने साथ के चेलों से कहा, आओ, हम भी उसके साथ मरने को चलें।
17 सो यीशु को आकर यह मालूम हुआ कि उसे कब्र में रखे चार दिन हो चुके हैं।
18 बैतनिय्याह यरूशलेम के समीप कोई दो मील की दूरी पर था।
19 और बहुत से यहूदी मारथा और मरियम के पास उन के भाई के विषय में शान्ति देने के लिये आए थे।
20 सो मारथा यीशु के आने का समचार सुनकर उस से भेंट करने को गई, परन्तु मरियम घर में बैठी रही।
21 मारथा ने यीशु से कहा, हे प्रभु, यदि तू यहां होता, तो मेरा भाई कदापि न मरता।
22 और अब भी मैं जानती हूं, कि जो कुछ तू परमेश्वर से मांगेगा, परमेश्वर तुझे देगा।
23 यीशु ने उस से कहा, तेरा भाई जी उठेगा।
24 मारथा ने उस से कहा, मैं जानती हूं, कि अन्तिम दिन में पुनरुत्थान के समय वह जी उठेगा।
25 यीशु ने उस से कहा, पुनरुत्थान और जीवन मैं ही हूं, जो कोई मुझ पर विश्वास करता है वह यदि मर भी जाए, तौभी जीएगा।
26 और जो कोई जीवता है, और मुझ पर विश्वास करता है, वह अनन्तकाल तक न मरेगा, क्या तू इस बात पर विश्वास करती है?
27 उस ने उस से कहा, हां हे प्रभु, मैं विश्वास कर चुकी हूं, कि परमेश्वर का पुत्र मसीह जो जगत में आनेवाला था, वह तू ही है।
28 यह कहकर वह चली गई, और अपनी बहिन मरियम को चुपके से बुलाकर कहा, गुरू यहीं है, और तुझे बुलाता है।
29 वह सुनते ही तुरन्त उठकर उसके पास आई।
30 (यीशु अभी गांव में नहीं पहुंचा था, परन्तु उसी स्थान में था जहां मारथा ने उस से भेंट की थी।)
31 तब जो यहूदी उसके साथ घर में थे, और उसे शान्ति दे रहे थे, यह देखकर कि मरियम तुरन्त उठके बाहर गई है और यह समझकर कि वह कब्र पर रोने को जाती है, उसके पीछे हो लिये।
32 जब मरियम वहां पहुंची जहां यीशु था, तो उसे देखते ही उसके पांवों पर गिर के कहा, हे प्रभु, यदि तू यहां होता तो मेरा भाई न मरता।
33 जब यीशु न उस को और उन यहूदियों को जो उसके साथ आए थे रोते हुए देखा, तो आत्मा में बहुत ही उदास हुआ, और घबरा कर कहा, तुम ने उसे कहां रखा है?
34 उन्होंने उस से कहा, हे प्रभु, चलकर देख ले।
35 यीशु के आंसू बहने लगे।
36 तब यहूदी कहने लगे, देखो, वह उस से कैसी प्रीति रखता था।
37 परन्तु उन में से कितनों ने कहा, क्या यह जिस ने अन्धे की आंखें खोली, यह भी न कर सका कि यह मनुष्य न मरता
38 यीशु मन में फिर बहुत ही उदास होकर कब्र पर आया, वह एक गुफा थी, और एक पत्थर उस पर धरा था।
39 यीशु ने कहा; पत्थर को उठाओ: उस मरे हुए की बहिन मारथा उस से कहने लगी, हे प्रभु, उस में से अब तो र्दुगंध आती है क्योंकि उसे मरे चार दिन हो गए।
40 यीशु ने उस से कहा, क्या मैं ने तुझ से न कहा था कि यदि तू विश्वास करेगी, तो परमेश्वर की महिमा को देखेगी।
41 तब उन्होंने उस पत्थर को हटाया, फिर यीशु ने आंखें उठाकर कहा, हे पिता, मैं तेरा धन्यवाद करता हूं कि तू ने मेरी सुन ली है।
42 और मै जानता था, कि तू सदा मेरी सुनता है, परन्तु जो भीड़ आस पास खड़ी है, उन के कारण मैं ने यह कहा, जिस से कि वे विश्वास करें, कि तू ने मुझे भेजा है।
43 यह कहकर उस ने बड़े शब्द से पुकारा, कि हे लाजर, निकल आ।
44 जो मर गया था, वह कफन से हाथ पांव बन्धे हुए निकल आया और उसका मुंह अंगोछे से लिपटा हुआ तें यीशु ने उन से कहा, उसे खोलकर जाने दो॥
बीमार शख्स कि बहनों को उम्मीद थी कि हज़रत ईसा (अलैहिस्सलाम) बहुत जल्द अपने भाई को शिफा देने आएंगे I मगर हज़रत ईसा अल मसीह ने जान बूझ कर लाज़र के पास पहुँचने में देरी की ताकि वह मर जाए I इसकी बाबत और कोई भी शख्स नहीं समझ सका कि उसने ऐसा क्यूँ किया I मगर इस मख़सूस सूरत में उसके दिल की हालत को हम देख और समझ सकते हैं I और हम यह पढ़ते हैं कि हज़रत ईसा अल मसीह नाराज़ थे I मगर वह किस से नाराज़ थे? क्या लाज़र की बहनों से? क्या भीड़ के मजमे से जो हमेशा उसके पीछे चलती थी? क्या अपने शागिर्दों से? या फिर लाज़र से? नहीं I बल्कि वह खुद मौत से I इसके अलावा चारों अनाजील में हज़रत ईसा अल मसीह के सिर्फ दो बार रोने का ज़िक्र पाया जाता है I वह क्यूँ रोया ?इसलिए की उसने अपने दोस्त को मौत के शिकंजे में देखा था I मौत गुस्से को ठंडा करदेती है साथ ही रोना एक नबी होने को ज़ाहिर करता है I
किसी की मौत पर रोने से बेहतर है कि किसी बीमारी से लोगों को शिफ़ा इनायत करे जिस से सिरफ़ उनके मौत को मुल्तवी कर दी जाती है I वह चाहे शिफ़ायाब हो या न हो मौत आखिरकार सबको दुनया से लेजाती है I वह चाहे अच्छे लोग हों या खराब , मर्द हों या औरत , बूढ़े हों या जवान , मज़हबी हों या गैर मज़हबी सब के लिए मौत लाज़मी है I मौत की सच्चाई हज़रत आदम से चली आती है जो पहले इंसान थे और जो अपनी नाफ़र्मानी के सबब से फ़ानी क़रार दिये गए I उनके सबब से तमाम उनकी औलाद जिन में मैं और आप भी शामिल हैं I वह एक मेज़बान दुश्मन के शिकंजे में हैं — जो कि मौत है I मौत के खिलाफ में हम यह महसूस करते हैं कि हमारे पास कोई जवाब नहीं है , कोई उम्मीद नहीं है I जब हम सिर्फ बीमार पड़ते हैं तो हमें एक उम्मीद रह जाती है कि ठीक हो जाएंगे I तो फिर शुरू में लाज़र सिरफ़ बीमार ही पड़ा था और उसकी बहनें शिफ़ा की उम्मीद रख रही थीं I मगर जब वह बीमार पड़कर मर गया तो उनकी उम्मीद जाती रही थी I यही बात हम सब के लिए सच है I जब हम अस्पताल में बीमार पड़े रहते हैं तो हमारे लिए एक उम्मीद बाक़ी रहती है कि ठीक हो जाएंगे मगर जब जनाज़ा उठ जाता है तो सारी उम्मीदों पर पानी फिर जाता है I मौत हमारा आख़री दुश्मन है I इस आखरी दुश्मन कोशिकस्त देने के लिए ही हज़रत ईसा अल मसीह दुनया में आए I इसी लिए उनहों ने लाज़र के बहनों से कहा :
“क़यामत और जिंदगी मैं हूँ”—
यूहनना 11:25
हज़रत ईसा अल मसीह मौत को बर्बाद करने और जिंदगी देने के लिए आए जो उसकी चाहत रखते थे I उसने इस ख़िदमत के लिए अपने ज़बरदस्त इख्तियार को सरे आम लाज़र को मौत से ज़िंदा करने के ज़रिये जताया (ज़ाहिर किया) दीगर तमाम लोगों के भी वह ऐसा ही करता है और करेगा जो मौत की इवज़ में जिंदगी की ख़्वाहिश रखते हैं I
नबी के लिए कई एक रद्दे अमल
हालांकि तमाम लोगों के लिए मौत आखरी दुश्मन है , हम में से बहुत से लोग छोटे छोटे ‘दुश्मन’ के शिकंजे में हैं जिसके अंजाम बतोर (सियासी , मज़हबी , और इलमुल इंसान से मुताल्लिक़) हमारे चारों तरफ़ तमाम औकात में झगड़े रगड़े होते रहते हैं I हज़रत ईसा अल मसीह के ज़माने में भी यह बात सच नज़र आरही थी I मतलब यह की वह ऐसे माहोल से गुज़र चुके थे I उन मुजिज़ों के गवाहों के नतीजों से हम देख सकते हैं कि फ़रक़ फ़रक़ लोगों की क्या राए थी जो उन दिनों में रह रहे थे I यहाँ आप देखें कि फ़रक़ फ़रक़ ता’स्सुरात का ज़िक्र किया गाय है I
45 तब जो यहूदी मरियम के पास आए थे, और उसका यह काम देखा था, उन में से बहुतों ने उस पर विश्वास किया।
यूहनना 11:45—57
46 परन्तु उन में से कितनों ने फरीसियों के पास जाकर यीशु के कामों का समाचार दिया॥
47 इस पर महायाजकों और फरीसियों ने मुख्य सभा के लोगों को इकट्ठा करके कहा, हम करते क्या हैं? यह मनुष्य तो बहुत चिन्ह दिखाता है।
48 यदि हम उसे यों ही छोड़ दे, तो सब उस पर विश्वास ले आएंगे और रोमी आकर हमारी जगह और जाति दोनों पर अधिकार कर लेंगे।
49 तब उन में से काइफा नाम एक व्यक्ति ने जो उस वर्ष का महायाजक था, उन से कहा, तुम कुछ नहीं जानते।
50 और न यह सोचते हो, कि तुम्हारे लिये यह भला है, कि हमारे लोगों के लिये एक मनुष्य मरे, और न यह, कि सारी जाति नाश हो।
51 यह बात उस ने अपनी ओर से न कही, परन्तु उस वर्ष का महायाजक होकर भविष्यद्वणी की, कि यीशु उस जाति के लिये मरेगा।
52 और न केवल उस जाति के लिये, वरन इसलिये भी, कि परमेश्वर की तित्तर बित्तर सन्तानों को एक कर दे।
53 सो उसी दिन से वे उसके मार डालने की सम्मति करने लगे॥
54 इसलिये यीशु उस समय से यहूदियों में प्रगट होकर न फिरा; परन्तु वहां से जंगल के निकट के देश में इफ्राईम नाम, एक नगर को चला गया; और अपने चेलों के साथ वहीं रहने लगा।
55 और यहूदियों का फसह निकट था, और बहुतेरे लोग फसह से पहिले देहात से यरूशलेम को गए कि अपने आप को शुद्ध करें।
56 सो वे यीशु को ढूंढ़ने और मन्दिर में खड़े होकर आपस में कहने लगे, तुम क्या समझते हो
57 क्या वह पर्व में नहीं आएगा? और महायाजकों और फरीसियों ने भी आज्ञा दे रखी थी, कि यदि कोई यह जाने कि यीशु कहां है तो बताए, कि उसे पकड़ लें॥
आप देखें कि इस हैरत अंगेज़ मुजिज़े के बाद आवाम में तनाव बढ़ गया I नबी हज़रत ईसा अल मसीह ने कहा वह “जिंदगी और क़ियामत” था और वह मौत को खुद ही शिकस्त देगा I कई एक लोगों ने उस पर एतक़ाद किया मगर दीगर बहुत से लोग नहीं जानते थे क्या एतक़ाद किया जाए I यहाँ कुछ देर रुक कर खुद से सवाल करना बेहतर होगा कि अगर हम लाज़र जिलाए जाने के गवाह होते तो हम किस बात का चुनाव करते I क्या हम उन फ़रीसियों की तरह होते जो किसी तरह की आवेज़िश का शिकार होते जिसे तारीख में बहुत जल्द भुला दिया जाएगा और मौत से जिंदगी की इस बख़्शिश को खो बैठते ? या फिर क्या हम उसपर “ईमान लाते”और हम क़यामत की (जिलाए जाने) की उसकी पेशकश पर उम्मीद ज़ाहिर करते , यहाँ तक की अगर हम इन तमाम बातों को नहीं समझ प रहे थे ? इंजील के बयानत में जो तरह तरह के रददे अमल पेश किए गए हैं वही रददे अमल आज के ज़माने में भी देखने को मिलते हैं जब लोगों में मनदी की जाती है I
जैसे जैसे फ़सह की ईद करीब आती जा रही थी यह मुबाहसे भी बढ़ते जराहे थे I यह वही फ़सह की ईद थी जिसको नबी हज़रत मूसा (अलैहिस्सलाम) ने 1500 साल पहले मौत के गुजरने बतोर शुरू किया था – इंजीले शरीफ़ यह बताते हुए इसे जारी रखती है कि किस तरह नबी हज़रत ईसा अल मसीह ने अपनी मौत को भी शिकस्त देते हुए अपनी ख़िदमत को पूरा करने का फैसला किया किसी एक की मदद करने के ज़रिये एक गद्दार बतोर दूसरों को अपने से दूर करने के वसीले से I