सूरा अर – रा’द (सूरा 13 – बिजली) एक आम दावा या या ग़ैर ईमानदारों से नुक्ताचीनी को बयान करता है I
और अगर तुम्हें (किसी बात पर) ताज्जुब होता है तो उन कुफ्फारों को ये क़ौल ताज्जुब की बात है कि जब हम (सड़गल कर) मिट्टी हो जायंगें तो क्या हम (फिर दोबारा) एक नई जहन्नुम में आयंगे ये वही लोग हैं जिन्होंने अपने परवरदिगार के साथ कुफ्र किया और यही वह लोग हैं जिनकी गर्दनों में (क़यामत के दिन) तौक़ पड़े होगें और यही लोग जहन्नुमी हैं कि ये इसमें हमेशा रहेगें
सूरा अर – रा’द 13:5,7
और वो लोग काफिर हैं कहते हैं कि इस शख़्स (मोहम्मद) पर उसके परवरदिगार की तरफ से कोई निशानी (हमारी मर्ज़ी के मुताबिक़) क्यों नहीं नाजि़ल की जाती ऐ रसूल तुम तो सिर्फ (ख़ौफे ख़़ुदा से) डराने वाले हो
सूरा अर – रा’द 13:,7
यह दो हिस्सों में बाटता I सूरा रा’द का 5 आयत पूछता है कि क्या क़यामत कभी होगीI उनके ज़ाहिरी तनासुब से ऐसा कभी भी इस से पहले नहीं हुआ, और न मुस्तक़बिल में होगा I फिर वह पूछते हैं कि ज्यूँ कोई मोजिज़ाना निशानीजायज़ क़रार देने के लिए निहीं दिया एक क़ियामत वाक़े होगी I हकीकी मायनों में पुछा जाए तो वह कहते हैं कि, “सबूत पेश करो”!
सूरह अल – फुरक़ान (सूरा 25 — मेयार) इसी दावे को दिखाता है जो हलके तोर से फ़रक़ तोर पर दिखाया गया है I
हमने उनको ख़ूब सत्यानास कर छोड़ा और ये लोग (कुफ़्फ़ारे मक्का) उस बस्ती पर (हो) आए हैं जिस पर (पत्थरों की) बुरी बारिश बरसाई गयी तो क्या उन लोगों ने इसको देखा न होगा मगर (बात ये है कि) ये लोग मरने के बाद जी उठने की उम्मीद नहीं रखते (फिर क्यों इमान लाएँ)
सूरा अल-फ़ुरक़ान 25:40 -41
और (ऐ रसूल) ये लोग तुम्हें जब देखते हैं तो तुम से मसख़रा पन ही करने लगते हैं कि क्या यही वह (हज़रत) हैं जिन्हें अल्लाह ने रसूल बनाकर भेजा है (माज़ अल्लाह)
उनको क़यामत के आने का कोई डर नहीं है, न ही नबी हज़रत मोहम्मद का I वह क़यामत के आने के सबूत में अड़े रहे I
सूरा अल – फ़ुरक़ान भी ज़ाहिर करता है कि किसतरह अल्लाह ग़ैर ईमानदारों पर नज़र करता है I
और लोगों ने उसके सिवा दूसरे दूसरे माबूद बना रखें हैं जो कुछ भी पैदा नहीं कर सकते बल्कि वह खुद दूसरे के पैदा किए हुए हैं और वह खुद अपने लिए भी न नुक़सान पर क़ाबू रखते हैं न नफ़ा पर और न मौत ही पर इख्तियार रखते हैं और न जि़न्दगी पर और न मरने के बाद जी उठने पर
सूरा अल-फ़ुरक़ान 25:3
सूरा अल फ़ुरक़ान ज़ाहिर करता है कि लोग अक्सर ग़ैर माबूदों को लेते हैं I कोई कैसे सच्चे खुदा और ग़ैर मबूदों में फरक कर सकता है ? आयत इसका जवाब देती है, ग़ैर माबूद ‘न मौत न ज़िन्दगी और न क़यामत पर क़ाबू पा सकते हैं’ I एक क़यामत पर क़ाबू पाने के लिए —जो झूठे माबूद को सच्चे खुदा से अलग करता है I
चाहे दावा ग़ैर ईमानदारों की तरफ़ से अल्लाह और उसके रसूलों को पेश किया गया हो किस बात से खौफ़ रखना चाहिए जो नज़र अंदाज़ किया जा सकता है, या चाहे चितौनी अल्लाह की तरफ़ से ग़ैर ईमानदारों को दी गयी हो की सच्चे खुदा की इबादत करें न कि ग़ैर माबूदों की, नापने वाली छड़ी एक ही है –यानी कि क़यामत I
क़ियामत आख़िरेकार इख्तियार और क़ुव्वत का तक़ाज़ा करता है I नबी हज़रत इबराहीम (अलैहिस्सलाम),मूसा (अलैहिस्सलाम), दाऊद (अलैहिस्सलाम)और मोहम्मद (सल्लम) — हालांकि बहुत बड़े नबी थे I इसके बावजूद भी वह — मुर्दों में से जिंदा नहीं हुए I सक़रात, एनिसटिन, न्यूटन, और सुलेमान क्या यह बड़े लोग नहीं थे I इनमें से कोई भी मुर्दों में से जिंदा नहीं हुए I किसी भी शाहिन्शाह को लीजिये जो कभी तख़्त में बैठ कर हुकूमत किया करते थे यूनानियों को शामिल करते हुए, रोमोयों , बैज़नटाइन, उममायाद , अब्बासिद , मम्लूक और ओटटोमन की सल्तनतें –इन में से कोई भी मौत पर हावी नहीं हो पाए और दोबारा ज़िन्दा नहीं हुए I यह आखरी दावा है I यह वह दावा है जिस को हज़रत ईसा अल मसीह ने सामना करने का चुनाव किया I
उन्हों ने अपनी फ़तेह को इतवार के दिन पौ फटने से पहले हासिल किया I पौ फटने पर मौत पर उनकी फ़तेह आपके और मेरे लिए भी थी I जो मसीह ईसा पर ईमान रखते हैं उनके लिए दुन्या में आगे को ख़ताओं और गुनाहों के गुलाम होने की ज़रुरत नहीं है I जिस तरह सूरा अल – फ़लक़ (सूरा 113 – पौ फटना) दरखास्त करता है
(ऐ रसूल) तुम कह दो कि मैं सुबह के मालिक की हर चीज़ की बुराई स
(सूरए अल फलक़ 113:1-3)
जो उसने पैदा की पनाह माँगता हूँ
और अँधेरी रात की बुराई से जब उसका अँधेरा छा जाए
यहाँ हम गौर करेंगे कि इस ख़ास फ़ज्र की बाबत जिसकी सदियों पहले पेश्बीनी हुई थी वह तौरात में पहले फलों की ईद से मुतालिक़ थी और किस तरह फ़ज्र का ख़ुदावंद दुन्या के गुनाहों से हमको छुटकारा दिलाता है I
ईसा अल मसीह और तौरात शरीफ़ की ईदें
हमने होशियारी से नबी हज़रत ईसा अल मसीह के आखरी हफ़्ते के वाक़ियात को जो इंजील शरीफ़ बयान करती है उसका पीछा किया I हफ़्ते के आखिर में फ़सह के दिन जो यहूदियों की मुक़द्दस ईद है वह मस्लूब हुए I फिर वह सबत के दौरान मौत की हालत में आराम किये,वह दिन हफ़्ते का मुक़द्दस सातवाँ दिन था I इन मुक़द्दस दिनों को अल्लाह की जानिब से हज़रत मूसा के वसीले से तौरात में मुक़र्रर किया था I इन हिदायत व अहकाम को हम यहाँ पर इसतरह पढ़ते हैं :
यहोवा ने मूसा से कहा,
अह्बार 23:1-5
2 इस्त्राएलियों से कह, कि यहोवा के पर्ब्ब जिनका तुम को पवित्र सभा एकत्रित करने के लिये नियत समय पर प्रचार करना होगा, मेरे वे पर्ब्ब ये हैं।
3 छ: दिन कामकाज किया जाए, पर सातवां दिन परमविश्राम का और पवित्र सभा का दिन है; उस में किसी प्रकार का कामकाज न किया जाए; वह तुम्हारे सब घरों में यहोवा का विश्राम दिन ठहरे॥
4 फिर यहोवा के पर्ब्ब जिन में से एक एक के ठहराये हुए समय में तुम्हें पवित्र सभा करने के लिये प्रचार करना होगा वे ये हैं।
5 पहिले महीने के चौदहवें दिन को गोधूलि के समय यहोवा का फसह हुआ करे।
क्या यह हैरत अंगेज़ नहीं है कि हज़रत ईसा अल मसीह की मस्लूबियत और आराम दोनों हूबहू दो मुक़द्दस ईदों के साथ मुत्तफ़िक़ हो रहा था जिसका ज़िक्र 1500 साल पहले हुआ जैसा की तारीख़ी वक़्त की लकीर में दिखाया गया है ? ऐसा क्यूं है ? इस का जवाब हम सब तक पहुँचता है यहाँ तक कि हम किस तरह हर दिन एक दुसरे को सलाम करते हैं I
यह तंज़ीम व तरतीब नबी हज़रत ईसा अल मसीह तौरात की ईदों के दरमियान जारी रहती है I तौरात से ऊपर के आयातों की तिलावत सिर्फ़ पहली दो ईदों से मेल जोल रखती है I दूसरा ईद था ‘पहले फलों’ को खुदावंद के हुज़ूर लाने की ईद , और तौरात इसकी बाबत हिदायत पेश करती है I
9 फिर यहोवा ने मूसा से कहा,
अह्बार 23:11,14
10 इस्त्राएलियों से कह, कि जब तुम उस देश में प्रवेश करो जिसे यहोवा तुम्हें देता है और उस में के खेत काटो, तब अपने अपने पक्के खेत की पहिली उपज का पूला याजक के पास ले आया करना;
11 और वह उस पूले को यहोवा के साम्हने हिलाए, कि वह तुम्हारे निमित्त ग्रहण किया जाए; वह उसे विश्रामदिन के दूसरे दिन हिलाए।
12 और जिस दिन तुम पूले को हिलवाओ उसी दिन एक वर्ष का निर्दोष भेड़ का बच्चा यहोवा के लिये होमबलि चढ़ाना।
13 और उसके साथ का अन्नबलि एपा के दो दसवें अंश तेल से सने हुए मैदे का हो वह सुखदायक सुगन्ध के लिये यहोवा का हव्य हो; और उसके साथ का अर्घ हीन भर की चौथाई दाखमधु हो।
14 और जब तक तुम इस चढ़ावे को अपने परमेश्वर के पास न ले जाओ, उस दिन तक नये खेत में से न तो रोटी खाना और न भुना हुआ अन्न और न हरी बालें; यह तुम्हारी पीढ़ी पीढ़ी में तुम्हारे सारे घरानों में सदा की विधि ठहरे॥
सो फ़सह के सबत के दुसरे दिन के बाद एक तीसरा मुक़द्दस दिन था I हर साल इस दिन सरदार काहिन मुक़द्दस मक्दिस में दाखिल होता था और बाहर आकर फ़सल के पहले फलों को खुदावंद के आगे लहराया करता था I यह इस बात को ज़ाहिर करता था की जाड़े की मुर्दगी के बाद एक नई जिंदगी की शुरुआत हुई है I लोग आने वाले दिनों में भी भरपूर फ़सल की उम्मीद लगाते थे ताकि लोग खाएं और सैर हो सकें I
सबत के बाद यह बिलकुल वही दिन था जब नबी हज़रत ईसा अल मसीह मौत की हालत में आराम किया, नए हफ़्ते का पहला इतवार निसान महीने की 16 तारीख़ थी I इंजील शरीफ़ उसी दिन चोंका देने वाले वाक़ियात का बयान करती है कि सरदार काहिन मक़दिस के अन्दर जाता हैकी नै जिंदगी के नए फलों का चढ़ावा चढ़ाए I यहाँ इस का बयां पेश है I
ईसा अल मसीह मुरदों में से ज़िनदा हुए
रन्तु सप्ताह के पहिले दिन बड़े भोर को वे उन सुगन्धित वस्तुओं को जो उन्होंने तैयार की थीं, ले कर कब्र पर आईं।
लूक़ा 24:1-48
2 और उन्होंने पत्थर को कब्र पर से लुढ़का हुआ पाया।
3 और भीतर जाकर प्रभु यीशु की लोथ न पाई।
4 जब वे इस बात से भौचक्की हो रही थीं तो देखो, दो पुरूष झलकते वस्त्र पहिने हुए उन के पास आ खड़े हुए।
5 जब वे डर गईं, और धरती की ओर मुंह झुकाए रहीं; तो उन्होंने उन ने कहा; तुम जीवते को मरे हुओं में क्यों ढूंढ़ती हो?
6 वह यहां नहीं, परन्तु जी उठा है; स्मरण करो; कि उस ने गलील में रहते हुए तुम से कहा था।
7 कि अवश्य है, कि मनुष्य का पुत्र पापियों के हाथ में पकड़वाया जाए, और क्रूस पर चढ़ाया जाए; और तीसरे दिन जी उठे।
8 तब उस की बातें उन को स्मरण आईं।
9 और कब्र से लौटकर उन्होंने उन ग्यारहों को, और, और सब को, ये बातें कह सुनाईं।
10 जिन्हों ने प्रेरितों से ये बातें कहीं, वे मरियम मगदलीनी और योअन्ना और याकूब की माता मरियम और उन के साथ की और स्त्रियां भी थीं।
11 परन्तु उन की बातें उन्हें कहानी सी समझ पड़ीं, और उन्होंने उन की प्रतीति न की।
12 तब पतरस उठकर कब्र पर दौड़ गया, और झुककर केवल कपड़े पड़े देखे, और जो हुआ था, उस से अचम्भा करता हुआ, अपने घर चला गया॥
13 देखो, उसी दिन उन में से दो जन इम्माऊस नाम एक गांव को जा रहे थे, जो यरूशलेम से कोई सात मील की दूरी पर था।
14 और वे इन सब बातों पर जो हुईं थीं, आपस में बातचीत करते जा रहे थे।
15 और जब वे आपस में बातचीत और पूछताछ कर रहे थे, तो यीशु आप पास आकर उन के साथ हो लिया।
16 परन्तु उन की आंखे ऐसी बन्द कर दी गईं थी, कि उसे पहिचान न सके।
17 उस ने उन से पूछा; ये क्या बातें हैं, जो तुम चलते चलते आपस में करते हो? वे उदास से खड़े रह गए।
18 यह सुनकर, उनमें से क्लियुपास नाम एक व्यक्ति ने कहा; क्या तू यरूशलेम में अकेला परदेशी है; जो नहीं जानता, कि इन दिनों में उस में क्या क्या हुआ है?
19 उस ने उन से पूछा; कौन सी बातें? उन्होंने उस से कहा; यीशु नासरी के विषय में जो परमेश्वर और सब लोगों के निकट काम और वचन में सामर्थी भविष्यद्वक्ता था।
20 और महायाजकों और हमारे सरदारों ने उसे पकड़वा दिया, कि उस पर मृत्यु की आज्ञा दी जाए; और उसे क्रूस पर चढ़वाया।
21 परन्तु हमें आशा थी, कि यही इस्त्राएल को छुटकारा देगा, और इन सब बातों के सिवाय इस घटना को हुए तीसरा दिन है।
22 और हम में से कई स्त्रियों ने भी हमें आश्चर्य में डाल दिया है, जो भोर को कब्र पर गई थीं।
23 और जब उस की लोथ न पाई, तो यह कहती हुई आईं, कि हम ने स्वर्गदूतों का दर्शन पाया, जिन्हों ने कहा कि वह जीवित है।
24 तब हमारे साथियों में से कई एक कब्र पर गए, और जैसा स्त्रियों ने कहा था, वैसा ही पाया; परन्तु उस को न देखा।
25 तब उस ने उन से कहा; हे निर्बुद्धियों, और भविष्यद्वक्ताओं की सब बातों पर विश्वास करने में मन्दमतियों!
26 क्या अवश्य न था, कि मसीह ये दुख उठाकर अपनी महिमा में प्रवेश करे?
27 तब उस ने मूसा से और सब भविष्यद्वक्ताओं से आरम्भ करके सारे पवित्र शास्त्रों में से, अपने विषय में की बातों का अर्थ, उन्हें समझा दिया।
28 इतने में वे उस गांव के पास पहुंचे, जहां वे जा रहे थे, और उसके ढंग से ऐसा जान पड़ा, कि वह आगे बढ़ना चाहता है।
29 परन्तु उन्होंने यह कहकर उसे रोका, कि हमारे साथ रह; क्योंकि संध्या हो चली है और दिन अब बहुत ढल गया है। तब वह उन के साथ रहने के लिये भीतर गया।
30 जब वह उन के साथ भोजन करने बैठा, तो उस ने रोटी लेकर धन्यवाद किया, और उसे तोड़कर उन को देने लगा।
31 तब उन की आंखे खुल गईं; और उन्होंने उसे पहचान लिया, और वह उन की आंखों से छिप गया।
32 उन्होंने आपस में कहा; जब वह मार्ग में हम से बातें करता था, और पवित्र शास्त्र का अर्थ हमें समझाता था, तो क्या हमारे मन में उत्तेजना न उत्पन्न हुई?
33 वे उसी घड़ी उठकर यरूशलेम को लौट गए, और उन ग्यारहों और उन के साथियों को इकट्ठे पाया।
34 वे कहते थे, प्रभु सचमुच जी उठा है, और शमौन को दिखाई दिया है।
35 तब उन्होंने मार्ग की बातें उन्हें बता दीं और यह भी कि उन्होंने उसे रोटी तोड़ते समय क्योंकर पहचाना॥
36 वे ये बातें कह ही रहे ये, कि वह आप ही उन के बीच में आ खड़ा हुआ; और उन से कहा, तुम्हें शान्ति मिले।
37 परन्तु वे घबरा गए, और डर गए, और समझे, कि हम किसी भूत को देखते हैं।
38 उस ने उन से कहा; क्यों घबराते हो और तुम्हारे मन में क्यों सन्देह उठते हैं?
39 मेरे हाथ और मेरे पांव को देखो, कि मैं वहीं हूं; मुझे छूकर देखो; क्योंकि आत्मा के हड्डी मांस नहीं होता जैसा मुझ में देखते हो।
40 यह कहकर उस ने उन्हें अपने हाथ पांव दिखाए।
41 जब आनन्द के मारे उन को प्रतीति न हुई, और आश्चर्य करते थे, तो उस ने उन से पूछा; क्या यहां तुम्हारे पास कुछ भोजन है?
42 उन्होंने उसे भूनी मछली का टुकड़ा दिया।
43 उस ने लेकर उन के साम्हने खाया।
44 फिर उस ने उन से कहा, ये मेरी वे बातें हैं, जो मैं ने तुम्हारे साथ रहते हुए, तुम से कही थीं, कि अवश्य है, कि जितनी बातें मूसा की व्यवस्था और भविष्यद्वक्ताओं और भजनों की पुस्तकों में, मेरे विषय में लिखी हैं, सब पूरी हों।
45 तब उस ने पवित्र शास्त्र बूझने के लिये उन की समझ खोल दी।
46 और उन से कहा, यों लिखा है; कि मसीह दु:ख उठाएगा, और तीसरे दिन मरे हुओं में से जी उठेगा।
47 और यरूशलेम से लेकर सब जातियों में मन फिराव का और पापों की क्षमा का प्रचार, उसी के नाम से किया जाएगा।
48 तुम इन सब बातें के गवाह हो।
ईसा अल मसीह की फ़तेह
नबी हज़रत ईसा अल मसीह ‘पहले फलों’ के उस मुक़द्दस दिन पर एक इतनी बड़ी फ़तेह हासिल की कि उनके दुश्मनों और उनके साथियों को एत्क़ाद करना मुमकिन न था I उन्हों ने मौत पर ज़िन्दगी की जीत हासिल करके फ़ातिहाना जिंदगी में वापस आ गए थे I जिस तरह से इंजील शरीफ़ हमें समझाती है:
54 और जब यह नाशमान अविनाश को पहिन लेगा, और यह मरनहार अमरता को पहिन लेगा, तक वह वचन जो लिखा है, पूरा हो जाएगा, कि जय ने मृत्यु को निगल लिया।
1कुरिनथियों15:54-56
55 हे मृत्यु तेरी जय कहां रही?
56 हे मृत्यु तेरा डंक कहां रहा? मृत्यु का डंक पाप है; और पाप का बल व्यवस्था है।
मगर यह फ़तेह सिर्फ़ नबी के लिए नहीं थी बल्कि यह फ़तेह आपके और मेरे लिए भी थी, वक़्तों की मीयाद के ज़रीये ज़मानत देते हुए ईद के पहले फलों के साथ I इंजील शरीफ़ इसे इस तरह समझाती है:
20 परन्तु सचमुच मसीह मुर्दों में से जी उठा है, और जो सो गए हैं, उन में पहिला फल हुआ।
1कुरिन्थियों15:20-25
21 क्योंकि जब मनुष्य के द्वारा मृत्यु आई; तो मनुष्य ही के द्वारा मरे हुओं का पुनरुत्थान भी आया।
22 और जैसे आदम में सब मरते हैं, वैसा ही मसीह में सब जिलाए जाएंगे।
23 परन्तु हर एक अपनी अपनी बारी से; पहिला फल मसीह; फिर मसीह के आने पर उसके लोग।
24 इस के बाद अन्त होगा; उस समय वह सारी प्रधानता और सारा अधिकार और सामर्थ का अन्त करके राज्य को परमेश्वर पिता के हाथ में सौंप देगा।
25 क्योंकि जब तक कि वह अपने बैरियों को अपने पांवों तले न ले आए, तब तक उसका राज्य करना अवश्य है।
26 सब से अन्तिम बैरी जो नाश किया जाएगा वह मृत्यु है।
पहले फलों का ईद बतोर नबी हज़रत ईसा अल मसीह को भी उसी दिन मुर्दों में से जिंदा किया गया था ताकि हम जानें कि इसी मुर्दों में से जी उठने में हम भी यकसां तोर से शामिल हो सकें I जिस तरह से पहले फलों की ईद आने वाले दिनों के लिए मोसम –ए- बहार में अच्छे फ़सल की उम्मीदों के साथ एक नयी जिंदगी का हदया था इंजील शरीफ़ हम से कहती है कि हज़रत ईसा अल मसीह का मुर्दों में से ज़िन्दा होना भी तमाम जी उठने वालों में से पहला फल है और इससे यह उम्मीद की जाती है कि उसके ईमानदार लोग भी ‘जो उसके हैं’ कसीर तादाद में मुर्दों में से जी उठेंगे I तौरात शरीफ़ और क़ुरान शरीफ़ हमें समझाते हैं कि हज़रत आदम के सबब से मौत आयी I इंजील शरीफ़ हमसे कहती है कि एक मुतवाज़ी तरीक़े से ईसा अल मसीह के वसीले से क़यामत की जिंदगी हासिल होती है I ईसा नबी नयी जिंदगी का पहला फल है जिस में शामिल होने के लिए सब को दावत दी जाती है I
ईस्टर : उस इतवार के दिन जी उठने को मनाना
मौजूदा ज़माने में हज़रत ईसा अल मसीह के जी उठने को अक्सर ईस्टर बतोर हवाला दिया जाता है,और वह इतवार का दिन था इसलिए उसे अक्सर ईस्टर का इतवार (ईस्टर सन्डे) बतोर याद किया जाता है I मगर यह अलफ़ाज़ सदियों साल बाद ही इस्तेमाल में लाये गए I इसके लिए मख़सूस अलफ़ाज़ ज़रूरी नहीं हैं I जो ज़रूरी है वह यह कि ईसा नबी का जी उठना पहले फलों की ईद की तकमील बतोर है जो सदियों साल पहले हज़रत मूसा के ज़माने से शुरू होकर ईसा नबी की सलीबी मौत तक चला आ रहा था, और यह भी कि आपके और मेरे लिए यह क्या मायने रखता है I
नए हफ़्ते के इतवार के दिन के लिए इसे वक़्त की लकीर में देखा जा चूका है :
‘मुबारक जुम्मा’ जवाब दिया गया
‘मुबारक जुम्मे’ की बाबत यह भी हमारे सवाल का जवाब देता है I जिस तरह इंजील शरीफ समझाती है :
9 पर हम यीशु को जो स्वर्गदूतों से कुछ ही कम किया गया था, मृत्यु का दुख उठाने के कारण महिमा और आदर का मुकुट पहिने हुए देखते हैं; ताकि परमेश्वर के अनुग्रह से हर एक मनुष्य के लिये मृत्यु का स्वाद चखे।
इब्रानियों 2:9
मुबारक जुम्मे के दिन जब ‘इम्तिहान शुदा मौत’ की तरह उन्हों ने आप के और मेरे लिए और हम में से ‘हरेक के लिए’ किया तो मुबारक जुम्मा यह नाम इसलिए है कि यह हमारे लिये मुबारक था I जब वह पहले फलों की ईद में जी उठे तो वह अब हम में से हरेक के लिए नयी जिंदगी पेश करते हैं I
हज़रत ईसा अल मसीह की क़यामत और तसल्ली क़ुरान शरीफ़ में
हालांकि हज़रत ईसा अल मसीह के मुर्दों में से जी उठने की बाबत कुरान शरीफ़ बहुत कम तफ़सील पेश करता है मगर तीन बहुत ही जियादा ख़ास दिनों की बाबत जोर देता है I इसे सूरा मरयम इस तरीके से तिलावत करता है कि :
और (खुदा की तरफ़ से) जिस दिन मैं पैदा हुआ हूँ और जिस दिन मरूँगा मुझ पर सलाम है और जिस दिन (दोबारा) ज़िन्दा उठा कर खड़ा किया जाऊँगा
सूरए मरयम 19:33
इंजील शरीफ भी हज़रत ईसा अल मसीह की पैदाइश, उनकी मौत और अब उनकी क़ियामत I जबकि उनकी क़ियामत ‘पहला-फल’ है, जो तसलली नबी पर उनकी क़यामत में थी वह आज और अभी आपके और मेरे लिए भी दस्तियाब है I हज़रत ईसा अल मसीह ने इसे तब दिखाया जब वह मुर्दों में से जी उठे थे और जब उन्हों ने अपने शागिर्दों को सलाम किया था :
19 उसी दिन जो सप्ताह का पहिला दिन था, सन्ध्या के समय जब वहां के द्वार जहां चेले थे, यहूदियों के डर के मारे बन्द थे, तब यीशु आया और बीच में खड़ा होकर उन से कहा, तुम्हें शान्ति मिले।
युहन्ना 20:19-22
20 और यह कहकर उस ने अपना हाथ और अपना पंजर उन को दिखाए: तब चेले प्रभु को देखकर आनन्दित हुए।
21 यीशु ने फिर उन से कहा, तुम्हें शान्ति मिले; जैसे पिता ने मुझे भेजा है, वैसे ही मैं भी तुम्हें भेजता हूं।
22 यह कहकर उस ने उन पर फूंका और उन से कहा, पवित्र आत्मा लो।
दस्तूर के मुताबिक़ मुलिम्स ने एक दुसरे को सलाम करने के रिवाज को अपनाया है वह है : (अस-सलामु अलैकुम —तुम पर सलाम या (सलामती) हो) I इसको नबी हज़रत हज़रत इसा अल मसीह अपने ज़माने में सलामती के साथ अपनी क़यामत को जोड़ने के लिए इस्तेमाल करते थे जिसे आज हमारे लिए दिया गया है I ईसा नबी की जानिब से हर वक़्त हमें इस वायदे को याद करनी चाहिए जब हम एक दुसरे को सलाम करते वक़्त इमं अल्फाज़ को बोलते या सुनते हैं, और रूहुल कुदुस की नेमत को भी सोचें जो अभी हमारे लिए दस्तियाब है I
हज़रत ईसा अल मसीह की क़ियामत का लिहाज़ किया गया
नबी हज़रत ईसा अल मसीह ने खुद को बहुत दिनों तक अपने शागिर्दों पर मुर्दों में से जिंदा साबित किया I यह वाक़ियात इंजील शरीफ़ से यहाँ बयान किया गया है I मगर हमको इसपर भी गौर करना चाहिए जो उन्हों ने अपने शागिर्दों पर अपना पहला मज़ाहिरा पेश किया I
….उनके लिए कहानी सी मालूम हुईं
लूक़ा 24:10
नबी ख़ुद को चाहिए था कि:
27 तब उस ने मूसा से और सब भविष्यद्वक्ताओं से आरम्भ करके सारे पवित्र शास्त्रों में से, अपने विषय में की बातों का अर्थ, उन्हें समझा दिया।
लूक़ा 24:27
और फिर से बाद में
44 फिर उस ने उन से कहा, ये मेरी वे बातें हैं, जो मैं ने तुम्हारे साथ रहते हुए, तुम से कही थीं, कि अवश्य है, कि जितनी बातें मूसा की व्यवस्था और भविष्यद्वक्ताओं और भजनों की पुस्तकों में, मेरे विषय में लिखी हैं, सब पूरी हों।
लूक़ा 24:44
हम कैसे यक़ीन कर सकते हैं कि अगर यह हक़ीक़त में अल्लाह का मंसूबा है जो हमें मौत से जिंदगी देता है ? सिर्फ़ ख़ुदा ही मुस्तक़बिल को जान सकता है, सो निशानात सदियों साल पहले तौरात शरीफ़ और ज़बूर शरीफ़ के नबियों के ज़रिये ज़ाहिर कर दिए गए थे और वह नबी ईसा अल मसीह के ज़रिये पूरे हुए थे उसे हमारे यकीन के लिए लिखे गए थे :
4 कि तू यह जान ले, कि वे बातें जिनकी तू ने शिक्षा पाई है, कैसी अटल हैं॥
लूक़ा1:4
कि हम नबी हज़रत ईसा अल मसीह की क़ुरबानी और जी उठने के अहम् सवाल की मतला कर सकते हैं जो चार मुख़तलिफ़ तहरीरों को जोड़ता है जो दस्तियाब हैं :
- यह निशानियों की नज़रे सानी करता है जो मूसा की तौरात में दी गयी है जिसका इशारा अल मसीह की तरफ़ है I
- यह निशानियों की तरफ़ नज़रे सानी करता है जो ‘नबियों की किताबों और ज़बूरों’ में दी गयी हैं I यह दो तहरीरें हमें इजाज़त देती हैं कि हम अपने खुद के लिए इन्साफ़ करें कि क्या वह हक़ीक़त में लिखा गया था कि “मसीह दुःख उठाएगा और तीसरे दिन मुर्दों में से जिलाया जाएगा”(लूक़ा 24:46) I
- यह हमको समझने में मदद करता है कि किस तरह इस क़यामत की जिंदगी के इनाम को हज़रत ईसा अल मसीह के ज़रिये से हासिल करें I
- यह हज़रत ईसा अल मसीह की मस्लूबियत की बाबत कुछ गलत फह्मिफह्मी ले आता है,नज़रे सानी करते हुए कि मुक़द्दस कुरान शरीफ इस के बारे में क्या कहता है I