हज़रत मूसा (अलैहिस्सलाम) और हज़रत हारून (अलैहिस्सलाम) ने 40 साल तक बनी इस्राईल की रहनुमाई की । उन्हों ने अहकाम लिखे और क़ुर्बानियां अंजाम दीं । और भी बहुत से मोजिज़े अंजाम दिए जिन नका तौरेत में ज़िक्र पाया जाता है । बहुर जल्द इन दो नबियों के मरने का वक़्त आजाता है । आइये हम तौरेत से उन नमूनों की नज़रे सानी करें इस से पहले कि हा तौरात के बयान को ख़तम करें ।
तौरेत के नमूनों की नज़रे सानी करना
तो फिर तौरेत में निशानों के नमूने क्या हैं ?
तौरेत में क़ुर्बानी
अहमियत पर गौर करें और देखें कि किसतरह कुर्बानियां मुतवातिर वाक़े होती रहीं यह इस में पेश की गई हैं । ज़ेल की बातों पर सोचें जिन पर हम गौर कर चुके हैं :
° हाबील ने एक उम्दा क़ुरबानी दी जबकि क़ाबील ने फल तरकारियों का हदिया पेश किया । काबील का हदिया
क़बूल नहीं किया गया क्यूंकि मौत की ज़रुरत थी ।
° सैलाब के बाद हज़रत नूह (अलैहिस्सलाम) ने कुछ जानवरों की क़ुर्बानी दी ।
° हज़रत इब्राहीम (अलैहिस्सलाम) ने वायदा किया हुआ मुल्क में पहुँचने के बाद एक क़ुरबानी पेश की ।
° हज़रत इब्राहीम (अलैहिस्सलाम) ने अपने बेटे की क़ुर्बानी के इम्तिहान के बाद मेंढे की क़ुर्बानी दी और इसी
क़ुर्बानी के फ़ौरन बाद हज़रत इब्राहीम ने एलान किया कि उसी मक़ाम पर मुस्तक़बिल में एक और क़ुर्बानी का
इंतज़ाम किया जाएगा ।
° तमाम बनी इस्राईल के घाराने ने फ़सह की क़ुरबानी अदा की । इस क़ुरबानी ने उनको मौत से बचाया और यहूदी
क़ौम आज भी इस फ़सह को हर साल उसी दिन मानते हैं ।
° हज़रत हारून (अलैहिस्सलाम) अपने लिए क़ुरबानी पेश करने के बाद बनी इस्राईल के लिए भी हर साल दो बकरों
की क़ुर्बानी अदा की ।
° एक बछिया क़ुर्बान किया गया ताकि उसका राख एक मुर्दा लाश को छूने से अगर कोई नापाक हो जाए तो राख
मिली हुई पानी से वज़ू करने से पाक होजाए ।
यह सारी कुर्बानियां पाक जानवरों के साथ की जाती थीं । चाहे वह भेड़ें, बकरियां या बैलें हों । बछिया को छोड़ वह सारे जानवर नर होते थे ।
यह क़ुर्बानियां कफ़फ़ारा थे उन लोगों के लिए जो क़ुरबानी पेश करते थे । इस का मतलब यह है कि वह सब एक पर्शिश थे इस से लोगों की शर्मिंदगी को क़ुर्बानी के ज़रिये ढंका गया । यह ढांके जाने का काम दुनया के पहले इंसान आदम के गुनाह से ही शुरू किया गया था जिस ने अल्लाह का रहम – ओ – करम जानवर के चमड़े की शक्ल में हासिल किया इन चमड़ों को हासिल करने के लिए एक जानवर के मौत की ज़रुरत थी जिस से कि उनकी शर्मिंदगी ढंक सकती थी एक अहम् सवाल पूछने के लिए यह है कि : क्यूँ यह क़ुरर्बानियां एक ज़माने के बाद नहीं देनी पड़ीं या पेश नकारने की ज़रुरत नहीं थी ? इस का जवाब हम बाद में देखेंगे ।
तौरात में रास्त्बाज़ी
लफ्ज़ ‘रास्तबाज़ी’ कलाम में शुरू से आखिर तक बराबर ज़ाहिर होता रहा है । हम ने इसको सब से पहले आदम के साथ देखा जब अल्लाह ने उससे कहा कि रास्त्बाज़ी का लिबास बेहतरीन है । हम ने पैदाइश में देखा कि हज़रत ए इब्राहीम के हक़ में रास्तबाज़ी गिना गया क्यूंकि वह ख़ुदा पर ईमान लाया था कि उसको एक बेटा इनायत होगा । बनी इस्राईल भी अगर वह अहकाम के पाबन्द होते तो रास्त्बाज़ी के हक़दार होते … मगर वह नहीं हुए क्यूंकि वह पूरी तरह – से पाबन्द नहीं हुए थे ।
तौरात में ख़ुदा का इंसाफ़
हम ने यह भी देखा कि अहकाम के न मानने का नतीजा बतोर बनी इस्राईल को अल्लाह की जानिब से फ़ैसले का एलान हुआ । यह तो आदम से ही शुरू हो चुका था जो कोई नाफ़रमानी करे वह इंसाफ़ के मातहत है । अल्लाह का इंसाफ़ हमेशा मौत के अंजाम को पहुंचाता है । इंसाफ़ के अंजाम बतोर मौत कि सज़ा या तो इंसान पर या क़ुर्बान होने वाले जानवर पर होती थी । ज़ेल कि बातों पर सोचिये :
° हज़रत आदम के साथ जो जानवर चमड़े कि ख़ातिर क़ुरबान हुआ था उसकी मौत हुई थी ।
° हज़रत हाबील के साथ जिस जानवर की क़ुरबानी को क़बूल किया गया उसकी मौत हुई थी ।
° हज़रत नूह के साथ सैलाब में बे शुमार लोग हलाक हुए थे । फिर भी हज़रत नूह ने सैलाब के बाद कुछ जानवरों
की क़ुर्बानी दी तब भी उनकी मौत हुई ।
° लूत के जमाने में अल्लाह का इंसाफ़ बुरे लोगों पर हुआ और सदोम और अमोरा के लोग मारे गए थे जिन में
लूट की बीवी भी शामिल थी ।
° इब्राहीम के बेटे की क़ुरबानी के साथ उसके बेटे को मरना था मगर उस के बदले में एक मेंढे की मौत हुई ।
° फ़सह के साथ या तो (फ़िरोन या दीगर ग़ैर ईमानदारों के) पह्लोठे मरे या तो वह बररे जिन के खून को हर एक
बनी इस्राईल के घरों के चौखट पर लगाया गया था ,उनकी मौत हुई ।
° शरीअत के अहकाम के साथ या तो गुनाहगार शख्स की मौत हुई या फिर कफ़फ़ारे के दिन एक बकरे की मौत हुई ।
इसका क्या मतलब है ? आगे चल कर इस पर हम गौर करेंगे मगर अभी आप देखें कि हज़रत मूसा (अलैहिस्सलाम) और हज़रत हारुन (अलैहिस्सलाम) तौरात को ख़तम करने पर हैं । मगर वह अल्लाह से बराहे रास्त दो ख़ास पैग़ाम हासिल करने के बाद ऐसा करते हैं । वह दोनों पैग़ाम मुस्तक़बिल के लिए तवक़क़ो की जाती हैं और आज के लिए बहुत ज़रूरी हैं । और आने वाली लानतों और बरकतों की बाबत था । यहाँ हम उस आने वाले नबी की बाबत देखते हैं ।
आने वाला नबी
जब अल्लाह ने सीना पहाड़ पर दस अहकाम की लोहें दीं तब उसने बड़े हौलनाक तरीक़े से अपनी ताक़त और क़ुदरत का इज़हार किया । इन लोहों के दिए जाने से पहले के नज़ज़ारे की बाबत तौरेत इस तरह बयान करती है :
16 तीसरे दिन पर्वत पर बिजली की चमक और मेघ की गरज हुई। एक घना बादल पर्वत पर उतरा और तुरही की तेज ध्वनि हुई। डेरे के सभी लोग डर गए। 17 तब मूसा लोगों को पर्वत की तलहटी पर परमेश्वर से मिलने के लिए डेरे के बाहर ले गया। 18 सीनै पर्वत धुएँ से ढका था। पर्वत से धुआँ इस प्रकार उठा जैसे किसी भट्टी से उठता है। यह इसलिए हुआ कि यहोवा आग में पर्वत पर उतरे और साथ ही सारा पर्वत भी काँपने लगा।
ख़ुरुज 19 :16 – 18
बनी इस्राईल खौफ़ के मारे कांप रहे थे … तौरात इन को इस तरह बयान करती है :
18 घाटी में लोगों ने इस पूरे समय गर्जन सुनी और पर्वत पर बिजली की चमक देखी। उन्होंने तुरही की ध्वनि सुनी और पर्वत से उठते धूएँ को देखा। लोग डरे और भय से काँप उठे। वे पर्वत से दूर खड़े रहे और देखते रहे। 19 तब लोगों ने मूसा से कहा, “यदि तुम हम लोगों से कुछ कहना चाहोगे तो हम लोग सुनेंगे। किन्तु परमेश्वर को हम लोगों से बात न करने दो। यदि यह होगा तो हम लोग मर जाएंगे।”
ख़ुरूज 20 :18-19
यह हज़रत मूसा (अलैहिस्सलाम) बनी इस्राईल क़ौम कि रहनुमाई के 40 साल के दौरान के शुरू में वाक़े हुआ । आखिर में अल्लाह ने हज़रत मूसा से गुज़रे हुए हालात की बाबत बात की । उन्हें उन लोगों कि याद दिलाते हुए जब लोग डरे हुए थे । और उन के मुस्तक़बिल के एक वायदा करते हुए हज़रत मूसा (अलैहिस्सलाम) तौरात में इस तरह क़लम्बन्द करते हैं :
15 यहोवा तुम्हारा परमेश्वर तुम्हारे पास अपना नबी भेजेगा। यह नबी तुम्हारे अपने ही लोगों में से आएगा। वह मेरी तरह ही होगा। तुम्हें इस नबी की बात माननी चाहिए। 16 यहोवा तुम्हारे पास इस नबी को भेजेगा क्योंकि तुमने ऐसा करने के लिए उससे कहा है। उस समय जब तुम होरेब (सीनै) पर्वत के चारों ओर इकट्ठे हुए थे, तुम यहोवा की आवाज और पहाड़ पर भीषण आग को देखकर भयभीत थे। इसलिए तुमने कहा था, हम लोग यहोवा अपने परमेश्वर की आवाज फिर न सुनें। ‘हम लोग उस भीषण आग को फिर न देखें। हम मर जाएंगे!’17 “यहोवा ने मुझसे कहा, ‘वे जो चाहते हैं, वह ठीक है। 18 मैं तुम्हारी तरह का एक नबी उनके लिए भेज दूँगा। यह नबी उन्हीं लोगों में से कोई एक होगा। मैं उसे वह सब बताऊँगा जो उसे कहना होगा और वह लोगों से वही कहेगा जो मेरा आदेश होगा। 19 यह नबी मेरे नाम पर बोलेगा और जब वह कुछ कहेगा तब यदि कोई व्यक्ति मेरे आदेशों को सुनने से इन्कार करेगा तो मैं उस व्यक्ति को दण्ड दूँगा।’झूठे नबियों को कैसे जाना जाये
20 “किन्तु कोई नबी कुछ ऐसा कह सकता है जिसे करने के लिए मैंने उसे नहीं कहा है और वह लोगों से कह सकता है कि वह मेरे स्थान पर बोल रहा है। यदि ऐसा होता है तो उस नबी को मार डालना चाहिए या कोई ऐसा नबी हो सकता है जो दूसरे देवताओं के नाम पर बोलता है। उस नबी को भी मार डालना चाहिए। 21 तुम सोच सकते हो, ‘हम कैसे जान सकते हैं कि नबी का कथन, यहोवा का नहीं है?’ 22 यदि कोई नबी कहता है कि वह यहोवा की ओर से कुछ कह रहा है, किन्तु उसका कथन सत्य घटित नहीं होता, तो तुम्हें जान लेना चाहिए कि यहोवा ने वैसा नहीं कहा। तुम समझ जाओगे कि यह नबी अपने ही विचार प्रकट कर रहा था। तुम्हें उससे डरने की आवश्यकता नहीं।
ख़ुरुज 18 :15- 22
अल्लाह लोगों से चाहता था कि वह उसकी इज़्ज़त करें क्यूंकि उसने उन्हें दस अहकाम दिए थे । एक यादगारी के तोर पर उन्हें पत्थर की लोहों पर अपने मुबारक हाथों से लिखे थे । उसने इस तरह इसलिए किया कि उसका खौफ़ उनके बीच में बना रहे । मगर अब अल्लाह ज़माना ए मुस्तकबिल की तरफ़ देख रहा था । और वह वायदा करता है कि वह वक़्त आएगा जब हज़रत मूसा (अलैहिस्सलाम) कि तरह ही एक आर नबी बनी इस्राईल के बीच में से रुनुमा होगा । इस के लिए दो रहनुमाई के जुमले दिए गए हैं :
1. पहला यह कि अल्लाह उन्हें खुद ही ज़िम्मेवार ठहराएगा अगर वह आने वाले नबी की बाबत धियान नहीं देंगे ।
2. दूसरा यह फ़ैसला करना है कि एक पैग़ाम के ज़रिये जब मुस्तकबिल की पेशबीनी होगी और उस का सच होना बिलकुल ज़रूरी है ।
पहला रहनुमाई के जुमले का मतलब हरगिज़ यह नहीं कि हज़रत मूसा (अलैहिस्सलाम) के बाद सिरफ़ एक और नबी होगा । मगर एक जो आ रहा है जो ख़ास है उसकी सुन्नी पड़ेगी क्यूंकि इस (पेशबीनी) पैग़ाम के साथ उसकी एक बे मिसल अदाकारी है … । वह होंगे ‘मेरे कलाम’ । जबकि सिर्फ़ अल्लाह ही मुस्तक़बिल की सारी बातें जानता है और यक़ीनन कोई और शख्स नहीं जानता । दूसरा रहनुमाई के जुमले का मतलब लोगों के लिए जान्ने का एक तरीक़ा था कि आया कि वह पैग़ाम अल्लाह कि तरफ़ से है कि नहीं । इस दुसरे पैग़ाम में हम देखते हैं कि किसतरह हज़रत मूसा (अलैहिस्सलाम) ने इस दूसरी रहनुमाई की पेशबीनी को बनी इस्राईल के मुस्तक़बिल के लिए बनी इस्राईल की बरकतों और लानतों का बयान करते हुए किया । और इन्हीं बातों से तौरेत इन्तिहाई कमाल को पहुँचती है । (ख़तम होती है) ।
मगर इस आने वाले नबी की बाबत क्या कहा जाए ? कौन था वह नबी ? कुछ उलमा’ ने तसव्वुर किया कि वह आने वाला नबी हज़रत मोहम्मद (सल्लम) थे । मगर नबुवत पर गौर करें जो यह बयान करता है कि यह नबी “हम रुतबा इस्राईलियों के बीच में रुनुमा होगा । “ इस तरह यह इशारा उसके यहूदी होने की तरफ़ जाता है । इसलिए यह हज़रत मोहम्मद (सल्लम) नहीं हो सकते । दीगर उलमा’ इस बात से मुता’ज्जुब हैं कि यह पेशबीनी हज़रत ईसा अल मसीह पर कैसे नाफ़िज़ होता है । जबकि वह यहूदी थे और उन्होंने बड़े इख्तियार के साथ सिखाया कि हज़रत मसीह की ज़ुबाने मुबारक पर अल्लाह का कलाम था । इसी लिए उनको कलिमतुललाह के नाम से भी जाना गया है । हज़रत ईसा अल मसीह की आमद को हज़रत इबराहीम की क़ुर्बानी के पहले से देखा गया था । और आखिर में इस नबी के आने की नबुवत में देखा गया कि ख़ुदा का कलाम उन के मुंह में होगा ।