मुझे अफ़सोस है । यह ख़ुश ख़बरी नहीं है । दर असल यह बहुत ही बुरी ख़बर है ,क्यूंकि इस का मतलब यह है कि आप के और मेरे पास एक ही मसला है वह यह है कि हमारे पास रास्त्बाज़ी नहीं है । रास्त्बाज़ी एक अहम् चीज़ है क्यूंकि यह बुन्याद है जो ख़ुदा की बादशाही (जन्नत) का हक़दार बनाता है । हमारे एक दुसरे के साथ का बर्ताव ही हमारी रास्त्बाज़ी है (जैसे झूट नहीं बोलना , चोरी न करना ,खून न करना , ज़िना न करना वगैरा) और सही मायनों में अल्लाह की इबादत करना जिस से हम जन्नत के वारिस हो सकते हैं । इसी लिए सच्ची रास्त्बाज़ी की ज़रुरत है ताकि उस की मुक़द्दस बादशाही में दाख़िल हों जिसतरह हज़रत दाऊद ज़बूरों में कहते हैं ।मगर अफ़सोस कि बात तो यह है कि कुछ ही लोगों के बारे में ज़िकर है कि वह ख़ुदा की मुक़द्दस बादशाही में दाख़िल होंगे । इस लिए वह तारीफ़ के काबिल हैं
हे यहोवा, तेरे पवित्र तम्बू में कौन रह सकता है?
तेरे पवित्र पर्वत पर कौन रह सकता है?
2 केवल वह व्यक्ति जो खरा जीवन जीता है, और जो उत्तम कर्मों को करता है,
और जो ह्रदय से सत्य बोलता है। वही तेरे पर्वत पर रह सकता है।
3 ऐसा व्यक्ति औरों के विषय में कभी बुरा नहीं बोलता है।
ऐसा व्यक्ति अपने पड़ोसियों का बुरा नहीं करता।
वह अपने घराने की निन्दा नहीं करता है।
4 वह उन लोगों का आदर नहीं करता जो परमेश्वर से घृणा रखते हैं।
और वह उन सभी का सम्मान करता है, जो यहोवा के सेवक हैं।
ऐसा मनुष्य यदि कोई वचन देता है
तो वह उस वचन को पूरा भी करता है, जो उसने दिया था।
5 वह मनुष्य यदि किसी को धन उधार देता है
तो वह उस पर ब्याज नहीं लेता,
और वह मनुष्य किसी निरपराध जन को हानि पहुँचाने के लिये
घूस नहीं लेता।यदि कोई मनुष्य उस खरे जन सा जीवन जीता है तो वह मनुष्य परमेश्वर के निकट सदा सर्वदा रहेगा।
ज़बूर 15:1-5
गुनाह को समझना
मगर जबकि आप ( और मैं ) हमेशा इसी हालत में क़ायम नहीं रहते क्यूंकि जब हम अहकाम की पाबंदी नहीं करते हैं तब हम गुनाह करते हैं । तो फिर गुनाह क्या है ? तौरात की पांच किताबों के बाद पुराने अहद्नामे के किताब की एक आयत ने इसे बेहतर तरीक़े से समझने में मेरी मदद की है ।यह आयत कहती है ।
“उन सब लोगों में हत्थे जवान थे जिन में से हर एक फ़लाख़ुन से बाल के निशान पर बगैर ख़ता किये पत्थर मार सकता था” ।
कुज़ात 20:16
यह आयत बयान करती है कि वह सिपाही जो फ़लाखुन बाज़ थे वह कभी फ़लाखुन बाज़ी में निशाना चूकते नहीं थे ।तौरेत और पुराने अहद नामे को इब्रानी ज़बान में नबियों के ज़रिये लिखा गया । इब्रानी ज़बान में जो लफ्ज़ चूकने के लिए लिखा गया है (יַחֲטִֽא) जिस को इस तरह से तलफ्फुज़ किया गया है (खाव – ताव) वह वही लफ़ज़ है जो गुनाह के लिए भी है । यूसुफ़ को जब मिसर में गुलाम की तरह बेच दिया गया तो ख़ुदा उस के साथ था । और वह फ़ोतीफ़ार के महल में रहने लगा था । फ़ोतीफ़ार की बीवी की निय्यत ख़राब थी । और वह यूसुफ़ को मजबूर कर रही थी कि उस के साथ हमबिस्तर हो । मगर कलाम कहता है कि यूसुफ़ उस का पीछा छुड़ाकर उस के कमरे से भाग निकला जबकि उस औरत ने यूसुफ़ से गुजारिश की थी ।इन बातों को हम क़ुरान शरीफ़ के सूरा यूसुफ़ में ( 2:22-29) में पढ़ सकते हैं । मगर यूसुफ़ ने उस औरत से क्या कहा देखें :
“इस घर में मुझ से बड़ा कोई नहीं , और मेरे आक़ा ने तेरे सिवा कोई चीज़ बाज़ नहीं रखी । क्यूंकि तू उस की बीवी है । सो भला मैं क्यूँ ऐसी बड़ी बदी करूं और ख़ुदा का गुनाहगार बनूँ ?।।।
दाइश 39:9
और दस आज्ञाओं के दिए जाने के बाद ही तौरात कहती है:
और दस अहकाम के दिए जाने के फ़ौरन बाद तौरात में हज़रत मूसा ने कहा : तुम डरो मत . . . क्यूंकि ख़ुदा इस लिए आया है कि तुम्हारा इम्तिहान करे और तुमको उस का खौफ़ हो ताकि तुम गुनाह न करो :
ख़ुरूज 20:20
इन दोनों जगहों में वही इबरानी लफ्ज़ יַחֲטִֽא׃ का इस्तेमाल किया गया जिस का तर्जुमा गुनाह से है । यह बिलकुल हूबहू वही लफ्ज़ है जो फ़लाखुन बाज़ों के न चूकने के लिए इस्तेमाल हुआ है जिसका मतलब है गुनाह । जब बनी इस्राईल एक दुसरे के साथ सुलूक करते थे तो अल्लाह ने एक तस्वीर उन के सामने रखी थी जो हमें समझने में मदद करती है कि गुनाह क्या है । एक सिपाही जब एक पत्थर लेकर फ़लाखुन में रखता और निशाना लगाता था तो वह निशाना नहीं चूकता था अगर वह किसी तरह निशाना चूक जाए तो इस का मतलब यह है कि वह अपने मक़सद में नाकाम हो गया ।बिलकुल इसी तरह अल्लाह ने हमको निशाने पर चलने के लिए (पैदा किया) है । यानी उसकी राहों में चलना ही हमारा निशाना होना चाहिए ।पर अगर हम नहीं चलते हैं तो अपने मक़सद में नाकाम हो जाते हैं । और ख़ुदा का मंसूबा हमारी ज़िन्दगी के लिएलिये पूरा नहीं होता । अल्लाह ने हम को पैदा किया कि हम उस कि इबादत सच्चे दिल से करें और एक दुसरे से सच्चा बरताव करें । गुनाह करने का मतलब अपने निशाने से चूक जाना है । अल्लाह की पाक मरज़ी यह है कि हम उसके निशाने पर काम करें । उसके अहकाम पर चलते वक़्त अगर किसी भी तरह की ला परवाही हो जाती है तो इस का मतलब यह है कि हम अल्लाह के इरादे में चूक गए जो उस ने हमारे लिए ठहराया था ।
मौत : तौरात में गुनाह का अंजाम
सो आप देखें कि इसका अंजाम क्या था ? हम ने सब से पहला इशारा हज़रत आदम की निशानी में देखा था जब आदम ने न फ़रमानी कि थी । (सिर्फ़ एक बार)। इस एक नाफ़रमानी के बाइस अल्लाह ने उसको फानी बना दिया । इस का मतलब यह कि अब वह मर सकता है । यही गुनाह का सिलसिला हज़रत नूह की निशानी के साथ जारी रहता है । मगर अल्लाह ने लोगों का इंसाफ़ मौत के ज़रिये से किया जो एक बड़ा सैलाब बन कर उमंड पड़ा । फिर यह हज़रत लूत की निशानी के साथ जारी रहा । वहां पर भी ख़ुदा का इंसाफ़ मौत के ज़रिये से ही था । यहाँ तक कि हज़रत लूत कि बीवी भी उन मरने वालों में शामिल थी । नाफ़रमानी के गुनाह ने उसको नमक का खम्बा बना दिया था । हज़रत इब्राहीम के बेटे हज़रत इस्हाक़ को भी मरने की नौबत आगयी थी मगर उस के बदले में एक मेंढा कुर्बान हुआ । मुल्क ए मिसर में वबा के दौरान हज़ारों पह्लोठों की मौत हुई । इस से बचने के लिए फ़सह को अंजाम देना पड़ा । इस फ़सह को रसम बतोर जारी रखा गया । इस से मुताल्लिक़ अल्लाह ने हज़रत मूसा से बात की ।
10 यहोवा ने मूसा से कहा, “आज और कल तुम लोगों को विशेष सभा के लिए अवश्य तैयार करो। लोगों को अपने वस्त्र धो लेने चहिए। 11 और तीसरे दिन मेरे लिए तैयार रहना चाहिए। तीसरे दिन मैं (यहोवा) सीनै पर्वत पर नीचे आऊँगा और सभी लोग मुझ (यहोवा) को देखेंगे। 12-13 किन्तु उन लोगों से अवश्य कह देना कि वे पर्वत से दूर ही रूकें। एक रेखा खींचना और उसे लोगों को पार न करने देना। यदि कोई व्यक्ति या जानवर पर्वत को छूएगा तो उसे अवश्य मार दिया जाएगा। वह पत्थरों से मारा जाएगा या बाणों से बेधा जाएगा। किन्तु किसी व्यक्ति को उसे छूने नहीं दिया जाएगा। लोगों को तुरही बजने तक प्रतीक्षा करनी चाहिए। उसी समय उन्हें पर्वत पर जाने दिया जाएगा।”
निर्गमन 19: 10-12
यह नमूना पूरे तौरात में जारी रहता है मगर अफ़सोस कि अक्सर बनी इस्राईल अल्लाह के इन अहकाम पर क़ायम नहीं रहे । (उन्हों ने गुनाह किया) । यहां तक कि वह तौबा के बगैर मुक़द्दस मुक़ाम में दाखिल हुए । यहाँ गौर करें कि इस का अंजाम क्या हुआ ।
इस्राएलियों ने मूसा से कहा, “हम मर जाएंगे! हम खो गए, हम सब खो गए! जो कोई भी प्रभु के समीप आता है वह मर जाएगा। क्या हम सब मरने वाले हैं? ”
गिनती 17:12-13
हज़रत हारुन हज़रत मूसा के भाई थे ।उन के खुद के दो बेटे गुनाह कि हालत में मुक़द्दस मुक़ाम में दाखिल होने के सबब से उनकी मौत हुई ।
हारून के दो पुत्र यहोवा को सुगन्ध भेंट चढ़ाते समय मर गए थे। फिर यहोवा ने मूसा से कहा, 2 “अपने भाई हारून से बात करो कि वह जब चाहे तब पर्दे के पीछे महापवित्र स्थान में नहीं जा सकता है। उस पर्दे के पीछे जो कमरा है उसमें पवित्र सन्दूक रखा है। उस पवित्र सन्दूक के ऊपर उसका विशेष ढक्कन लगा है। उस विशेष ढक्कन के ऊपर एक बादल में मैं प्रकट होता हूँ। यदि हारून उस कमरे में जाता है तो वह मर जायेगा!
अह्बार 16:1-2
न सिर्फ़ हज़रत हारुन के दो बेटों की वफ़ात न फ़रमानी की वजह से हुई बल्कि खुद हारून को भी अल्लाह ने हिदायत दी कि वह पाक तरीन मुक़ाम में बिला वजह बगैर कफ़फ़ारह के खून के न जाया करे वरना उन की भी मौत हो सकती है । क्यूंकि वहां सर्पोश रखी हुई थी ।
मैं (अर्थात अल्लाह) आपको (अर्थात् हारून) उपहार के रूप में पुरोहित की सेवा दे रहा हूँ। अभयारण्य के पास जो भी आता है उसे मौत के घाट उतार दिया जाता है।
गिनती 18:7
बाद में कुछ बेटियां जिन के कोई भाई नहीं थे हज़रत मूसा के पास पहुँच कर ज़मीन की विरासत कि मांग करने लगीं ।उनका बाप सलाफ़हाद क्यूं मरा था ?
“हमारे पिता जंगल में मर गए। वह कोरह के अनुयायियों में से नहीं था, जिसने प्रभु के खिलाफ एक साथ बंधे, लेकिन वह अपने पाप के लिए मर गया और कोई पुत्र नहीं छोड़ा। ”
गिनती 27:3
सो हज़रत मूसा के ज़माने में ही एक आलमगीर शरीयत का नमूना क़ायम हो चुका था जिसको तौरेत के ज़माने के आखिर में एक किताबी शक्ल दे दिया गया था
…….. इस बतोर कि हर कोई शख्स अपने ही गुनाह के लिए ज़िम्मे दार होगा यानी कि मरेगा ।
इस्तिसना 24:16ब
अल्लाह बनी इसराईल को (हम को) सिखा रहा था कि गुनाह का अंजाम मौत है ।
अल्लाह का रहम
मगर अल्लाह के रहम की बाबत क्या कहना ? क्या यह सबूत (क़ानून) हर जगह नाफ़िज़ की गई थीं ? क्या हम इस से कुछ सीख सकते हैं ? जी हां ! और जी हां ! यह हमारे लिए समझना ज़रूरी है कि जिस किसी ने गुनाह किया है और जिस में रास्त्बाज़ी की कमी पाई जाती है इस रहम की सूरत पर धियान दे । यह पहले ही से गिनती के कुछ निशानों में ज़ाहिर कर दिया गया है । अब इसे ज़ियादा साफ़ तोर पर हज़रत हारून की निशानी में देखा जा सकता है । यानी एक गाय और दो बकरों के निशान में ।