Skip to content

From Books

मत्ती 21:23 – 23:39

यीशु के अधिकार के बारे में एक प्रश्न

यीशु और उसके अनुयायी जब यरूशलेम के पास जैतून पर्वत के निकट बैतफगे पहुँचे तो यीशु ने अपने दो शिष्यों को यह आदेश “देकर भेजा कि अपने ठीक सामने के गाँव में जाओ और वहाँ जाते ही तुम्हें एक गधी बँधी मिलेगी। उसके साथ उसका बच्चा भी होगा। उन्हें बाँध कर मेरे पास ले आओ। यदि कोई तुमसे कुछ कहे तो उससे कहना, ‘प्रभु को इनकी आवश्यकता है। वह जल्दी ही इन्हें लौटा देगा।’”

ऐसा इसलिये हुआ कि भविष्यवक्ता का यह वचन पूरा हो:

“सिओन की नगरी से कहो,
    ‘देख तेरा राजा तेरे पास आ रहा है।
वह विनयपूर्ण है, वह गधी पर सवार है,
    हाँ गधी के बच्चे पर जो एक श्रमिक पशु का बच्चा है।’”

सो उसके शिष्य चले गये और वैसा ही किया जैसा उन्हें यीशु ने बताया था। वे गधी और उसके बछेरे को ले आये। और उन पर अपने वस्त्र डाल दिये क्योंकि यीशु को बैठना था। भीड़ में बहुत से लोगों ने अपने वस्त्र राह में बिछा दिये और दूसरे लोग पेड़ों से टहनियाँ काट लाये और उन्हें मार्ग में बिछा दिया। जो लोग उनके आगे चल रहे थे और जो लोग उनके पीछे चल रहे थे सब पुकार कर कह रहे थे:

“होशन्ना! धन्य है दाऊद का वह पुत्र!
    ‘जो आ रहा है प्रभु के नाम पर धन्य है।’

प्रभु जो स्वर्ग में विराजा।”

10 सो जब उसने यरूशलेम में प्रवेश किया तो समूचे नगर में हलचल मच गयी। लोग पूछने लगे, “यह कौन है?”

11 लोग ही जवाब दे रहे थे, “यह गलील के नासरत का नबी यीशु है।”

यीशु मन्दिर में

12 फिर यीशु मन्दिर के अहाते में आया और उसने मन्दिर के अहाते में जो लोग खरीद-बिकरी कर रहे थे, उन सब को बाहर खदेड़ दिया। उसने पैसों की लेन-देन करने वालों की चौकियों को उलट दिया और कबूतर बेचने वालों के तख्त पलट दिये। 13 वह उनसे बोला, “शास्त्र कहते हैं, ‘मेरा घर प्रार्थना-गृह कहलायेगा। किन्तु तुम इसे डाकुओं का अड्डा बना रहे हो।’”

14 मन्दिर में कुछ अंधे, लँगड़े लूले उसके पास आये। जिन्हें उसने चंगा कर दिया। 15 तब प्रमुख याजकों और यहूदी धर्मशास्त्रियों ने उन अद्भुत कामों को देखा जो उसने किये थे और मन्दिर में बच्चों को ऊँचे स्वर में कहते सुना: “होशन्ना! दाऊद का वह पुत्र धन्य है।”

16 तो वे बहुत क्रोधित हुए। और उससे पूछा, “तू सुनता है वे क्या कह रहे हैं?”

यीशु ने उनसे कहा, “हाँ, सुनता हूँ। क्या धर्मशास्त्र में तुम लोगों ने नहीं पढ़ा, ‘तूने बालकों और दूध पीते बच्चों तक से स्तुति करवाई है।’”

17 फिर उन्हें वहीं छोड़ कर वह यरूशलेम नगर से बाहर बैतनिय्याह को चला गया। जहाँ उसने रात बिताई।

विश्वास की शक्ति

18 अगले दिन अलख सुबह जब वह नगर को वापस लौट रहा था तो उसे भूख लगी। 19 राह किनारे उसने अंजीर का एक पेड़ देखा सो वह उसके पास गया, पर उसे उस पर पत्तों को छोड़ और कुछ नहीं मिला। सो उसने पेड़ से कहा, “तुझ पर आगे कभी फल न लगे!” और वह अंजीर का पेड़ तुरंत सूख गया।

20 जब शिष्यों ने वह देखा तो अचरज के साथ पूछा, “यह अंजीर का पेड़ इतनी जल्दी कैसे सूख गया?”

21 यीशु ने उत्तर देते हुए उनसे कहा, “मैं तुमसे सत्य कहता हूँ। यदि तुम में विश्वास है और तुम संदेह नहीं करते तो तुम न केवल वह कर सकते हो जो मैंने अंजीर के पेड़ का किया। बल्कि यदि तुम इस पहाड़ से कहो, ‘उठ और अपने आप को सागर में डुबो दे’ तो वही हो जायेगा। 22 और प्रार्थना करते हुए तुम जो कुछ माँगो, यदि तुम्हें विश्वास है तो तुम पाओगे।”

यहूदी नेताओं का यीशु के अधिकार पर संदेह

23 जब यीशु मन्दिर में जाकर उपदेश दे रहा था तो प्रमुख याजकों और यहूदी बुजु़र्गो ने पास जाकर उससे पूछा, “ऐसी बातें तू किस अधिकार से करता है? और यह अधिकार तुझे किसने दिया?”

24 उत्तर में यीशु ने उनसे कहा, “मैं तुमसे एक प्रश्न पूछता हूँ, यदि उसका उत्तर तुम मुझे दे दो तो मैं तुम्हें बता दूँगा कि मैं ये बातें किस अधिकार से करता हूँ। 25 बताओ यूहन्ना को बपतिस्मा कहाँ से मिला? परमेश्वर से या मनुष्य से?”

वे आपस में विचार करते हुए कहने लगे, “यदि हम कहते हैं ‘परमेश्वर से’ तो यह हमसे पूछेगा ‘फिर तुम उस पर विश्वास क्यों नहीं करते?’ 26 किन्तु यदि हम कहते हैं ‘मनुष्य से’ तो हमें लोगों का डर है क्योंकि वे यूहन्ना को एक नबी मानते हैं।”

27 सो उत्तर में उन्होंने यीशु से कहा, “हमें नहीं पता।”

इस पर यीशु उनसे बोला, “अच्छा तो फिर मैं भी तुम्हें नहीं बताता कि ये बातें मैं किस अधिकार से करता हूँ!”

यहूदियों के लिए एक दृष्टातं कथा

28 “अच्छा बताओ तुम लोग इसके बारे में क्या सोचते हो? एक व्यक्ति के दो पुत्र थे। वह बड़े के पास गया और बोला, ‘पुत्र आज मेरे अंगूरों के बगीचे में जा और काम कर।’

29 “किन्तु पुत्र ने उत्तर दिया, ‘मेरी इच्छा नहीं है’ पर बाद में उसका मन बदल गया और वह चला गया।

30 “फिर वह पिता दूसरे बेटे के पास गया और उससे भी वैसे ही कहा। उत्तर में बेटे ने कहा, ‘जी हाँ,’ मगर वह गया नहीं।

31 “बताओ इन दोनों में से जो पिता चाहता था, किसने किया?”

उन्होंने कहा, “बड़े ने।”

यीशु ने उनसे कहा, “मैं तुमसे सत्य कहता हूँ कर वसूलने वाले और वेश्याएँ परमेश्वर के राज्य में तुमसे पहले जायेंगे। 32 यह मैं इसलिए कह रहा हूँ क्योंकि बपतिस्मा देने वाला यूहन्ना तुम्हें जीवन का सही रास्ता दिखाने आया और तुमने उसमें विश्वास नहीं किया। किन्तु कर वसूलने वालों और वेश्याओं ने उसमें विश्वास किया। तुमने जब यह देखा तो भी बाद में न मन फिराया और न ही उस पर विश्वास किया।

परमेश्वर का अपने पुत्र को भेजना

33 “एक और दृष्टान्त सुनो: एक ज़मींदार था। उसने अंगूरों का एक बगीचा लगाया और उसके चारों ओर बाड़ लगा दी। फिर अंगूरों का रस निकालने का गरठ लगाने को एक गडढ़ा खोदा और रखवाली के लिए एक मीनार बनायी। फिर उसे बटाई पर देकर वह यात्रा पर चला गया। 34 जब अंगूर उतारने का समय आया तो बगीचे के मालिक ने किसानों के पास अपने दास भेजे ताकि वे अपने हिस्से के अंगूर ले आयें।

35 “किन्तु किसानों ने उसके दासों को पकड़ लिया। किसी की पिटाई की, किसी पर पत्थर फेंके और किसी को तो मार ही डाला। 36 एक बार फिर उसने पहले से और अधिक दास भेजे। उन किसानों ने उनके साथ भी वैसा ही बर्ताव किया। 37 बाद में उसने उनके पास अपने बेटे को भेजा। उसने कहा, ‘वे मेरे बेटे का तो मान रखेंगे ही।’

38 “किन्तु उन किसानों ने जब उसके बेटे को देखा तो वे आपस में कहने लगे, ‘यह तो उसका उत्तराधिकारी है, आओ इसे मार डालें और उसका उत्तराधिकार हथिया लें।’ 39 सो उन्होंने उसे पकड़ कर बगीचे के बाहर धकेल दिया और मार डाला।

40 “तुम क्या सोचते हो जब वहाँ अंगूरों के बगीचे का मालिक आयेगा तो उन किसानों के साथ क्या करेगा?”

41 उन्होंने उससे कहा, “क्योंकि वे निर्दय थे इसलिए वह उन्हें बेरहमी से मार डालेगा और अंगूरों के बगीचे को दूसरे किसानों को बटाई पर दे देगा जो फसल आने पर उसे उसका हिस्सा देंगें।”

42 यीशु ने उनसे कहा, “क्या तुमने शास्त्र का वह वचन नहीं पढ़ा:

‘जिस पत्थर को मकान बनाने वालों ने बेकार समझा, वही कोने का सबसे अधिक महत्वपूर्ण पत्थर बन गया?
ऐसा प्रभु के द्वारा किया गया जो हमारी दृष्टि में अद्भुत है।’

43 “इसलिये मैं तुमसे कहता हूँ परमेश्वर का राज्य तुमसे छीन लिया जायेगा और वह उन लोगों को दे दिया जायेगा जो उसके राज्य के अनुसार बर्ताव करेंगे। 44 जो इस चट्टान पर गिरेगा, टुकड़े टुकड़े हो जायेगा और यदि यह चट्टान किसी पर गिरेगी तो उसे रौंद डालेगी।”

45 जब प्रमुख याजकों और फरीसियों ने यीशु की दृष्टान्त कथाएँ सुनीं तो वे ताड़ गये कि वह उन्हीं के बारे में कह रहा था। 46 सो उन्होंने उसे पकड़ने का जतन किया किन्तु वे लोगों से डरते थे क्योंकि लोग यीशु को नबी मानते थे।

विवाह भोज पर लोगों को राजा के बुलावे की दृष्टान्त कथा

22 एक बार फिर यीशु उनसे दृष्टान्त कथाएँ कहने लगा। वह बोला, “स्वर्ग का राज्य उस राजा के जैसा है जिसने अपने बेटे के ब्याह पर दावत दी। राजा ने अपने दासों को भेजा कि वे उन लोगों को बुला लायें जिन्हें विवाह भोज पर न्योता दिया गया है। किन्तु वे लोग नहीं आये।

“उसने अपने सेवकों को फिर भेजा, उसने कहा कि जिन लोगों को विवाह भोज पर बुलाया गया है उनसे कहो, ‘देखो मेरी दावत तैयार है। मेरे साँडों और मोटे ताजे पशुओं को काटा जा चुका है। सब कुछ तैयार है। ब्याह की दावत में आ जाओ।’

“पर लोगों ने उस पर कोई ध्यान नहीं दिया और वे चले गये। कोई अपने खेतों में काम करने चला गया तो कोई अपने काम धन्धे पर। और कुछ लोगों ने तो राजा के सेवकों को पकड़ कर उनके साथ मार-पीट की और उन्हें मार डाला। सो राजा ने क्रोधित होकर अपने सैनिक भेजे। उन्होंने उन हत्यारों को मौत के घाट उतार दिया और उनके नगर में आग लगा दी।

“फिर राजा ने सेवकों से कहा, ‘विवाह भोज तैयार है किन्तु जिन्हें बुलाया गया था, वे अयोग्य सिद्ध हुए। इसलिये गली के नुक्कड़ों पर जाओ और तुम जिसे भी पाओ ब्याह की दावत पर बुला लाओ।’ 10 फिर सेवक गलियों में गये और जो भी भले बुरे लोग उन्हें मिले वे उन्हें बुला लाये। और शादी का महल मेहमानों से भर गया।

11 “किन्तु जब मेहमानों को देखने राजा आया तो वहाँ उसने एक ऐसा व्यक्ति देखा जिसने विवाह के वस्त्र नहीं पहने थे। 12 राजा ने उससे कहा, ‘हे मित्र, विवाह के वस्त्र पहने बिना तू यहाँ भीतर कैसे आ गया?’ पर वह व्यक्ति चुप रहा। 13 इस पर राजा ने अपने सेवकों से कहा, ‘इसके हाथ-पाँव बाँध कर बाहर अन्धेरे में फेंक दो। जहाँ लोग रोते और दाँत पीसते होंगे।’

14 “क्योंकि बुलाये तो बहुत गये हैं पर चुने हुए थोड़े से हैं।”

यहूदी नेताओं की चाल

15 फिर फरीसियों ने जाकर एक सभा बुलाई, जिससे वे इस बात का आपस में विचार-विमर्श कर सकें कि यीशु को उसकी अपनी ही कही किसी बात में कैसे फँसाया जा सकता है। 16 उन्होंने अपने चेलों को हेरोदियों के साथ उसके पास भेजा। उन लोगों ने यीशु से कहा, “गुरु, हम जानते हैं कि तू सच्चा है तू सचमुच परमेश्वर के मार्ग की शिक्षा देता है। और तब, कोई क्या सोचता है, तू इसकी चिंता नहीं करता क्योंकि तू किसी व्यक्ति की हैसियत पर नहीं जाता। 17 सो हमें बता तेरा क्या विचार है कि सम्राट कैसर को कर चुकाना उचित है कि नहीं?”

18 यीशु उनके बुरे इरादे को ताड़ गया, सो वह बोला, “ओ कपटियों! तुम मुझे क्यों परखना चाहते हो? 19 मुझे कोई दीनार दिखाओ जिससे तुम कर चुकाते हो।” सो वे उसके पास दीनार ले आये। 20 तब उसने उनसे कहा, “इस पर किसकी मूरत और लेख खुदे हैं?”

21 उन्होंने उससे कहा, “महाराजा कैसर के।”

तब उसने उनसे कहा, “अच्छा तो फिर जो महाराजा कैसर का है, उसे महाराजा कैसर को दो, और जो परमेश्वर का है, उसे परमेश्वर को।”

22 यह सुनकर वे अचरज से भर गये और उसे छोड़ कर चले गये।

सदूकियों की चाल

23 उसी दिन (कुछ सदूकी जो पुनरुत्थान को नहीं मानते थे) उसके पास आये। और उससे पूछा, 24 “गुरु, मूसा के उपदेश के अनुसार यदि बिना बाल बच्चों के कोई, मर जाये तो उसका भाई, निकट सम्बन्धी होने के नाते उसकी विधवा से ब्याह करे और अपने भाई का वंश बढ़ाने के लिये संतान पैदा करे। 25 अब मानो हम सात भाई हैं। पहले का ब्याह हुआ और बाद में उसकी मृत्यु हो गयी। फिर क्योंकि उसके कोई संतान नहीं हुई, इसलिये उसके भाई ने उसकी पत्नी को अपना लिया। 26 जब तक कि सातों भाई मर नहीं गये दूसरे, तीसरे भाईयों के साथ भी वैसा ही हुआ 27 और सब के बाद वह स्त्री भी मर गयी। 28 अब हमारा पूछना यह है कि अगले जीवन में उन सातों में से वह किसकी पत्नी होगी क्योंकि उसे सातों ने ही अपनाया था?”

29 उत्तर देते हुए यीशु ने उनसे कहा, “तुम भूल करते हो क्योंकि तुम शास्त्रों को और परमेश्वर की शक्ति को नहीं जानते। 30 तुम्हें समझाना चाहिये कि पुर्नजीवन में लोग न तो शादी करेंगे और न ही कोई शादी में दिया जायेगा। बल्कि वे स्वर्ग के दूतों के समान होंगे। 31 इसी सिलसिले में तुम्हारे लाभ के लिए परमेश्वर ने मरे हुओं के पुनरुत्थान के बारे में जो कहा है, क्या तुमने कभी नहीं पढ़ा? उसने कहा था, 32 ‘मैं इब्राहीम का परमेश्वर हूँ, इसहाक का परमेश्वर हूँ, और याकूब का परमेश्वर हूँ।’ वह मरे हुओं का नहीं बल्कि जीवितों का परमेश्वर है।”

33 जब लोगों ने यह सुना तो उसके उपदेश पर वे बहुत चकित हो गए।

सबसे बड़ा आदेश

34 जब फरीसियों ने सुना कि यीशु ने अपने उत्तर से सदूकियों को चुप करा दिया है तो वे सब इकट्ठे हुए 35 उनमें से एक यहूदी धर्मशास्त्री ने यीशु को फँसाने के उद्देश्य से उससे पूछा, 36 “गुरु, व्यवस्था में सबसे बड़ा आदेश कौन सा है?”

37 यीशु ने उससे कहा, “‘सम्पूर्ण मन से, सम्पूर्ण आत्मा से और सम्पूर्ण बुद्धि से तुझे अपने परमेश्वर प्रभु से प्रेम करना चाहिये।’ 38 यह सबसे पहला और सबसे बड़ा आदेश है। 39 फिर ऐसा ही दूसरा आदेश यह है: ‘अपने पड़ोसी से वैसे ही प्रेम कर जैसे तू अपने आप से करता है।’ 40 सम्पूर्ण व्यवस्था और भविष्यवक्ताओं के ग्रन्थ इन्हीं दो आदेशों पर टिके हैं।”

क्या मसीह दाऊद का पुत्र या दाऊद का प्रभु है?

41 जब फ़रीसी अभी इकट्ठे ही थे, कि यीशु ने उनसे एक प्रश्न पूछा, 42 “मसीह के बारे में तुम क्या सोचते हो कि वह किसका बेटा है?”

उन्होंने उससे कहा, “दाऊद का।”

43 यीशु ने उनसे पूछा, “फिर आत्मा से प्रेरित दाऊद ने उसे ‘प्रभु’ कहते हुए यह क्यों कहा था:

44 ‘प्रभु ने मेरे प्रभु से कहा:
मेरे दाहिने हाथ बैठ कर शासन कर,
    जब तक कि मैं तेरे शत्रुओं को तेरे अधीन न कर दूँ।’

45 फिर जब दाऊद ने उसे ‘प्रभु’ कहा तो वह उसका बेटा कैसे हो सकता है?”

46 उत्तर में कोई भी उससे कुछ नहीं कह सका। और न ही उस दिन के बाद किसी को उससे कुछ और पूछने का साहस ही हुआ।

यीशु द्वारा यहूदी धर्म-नेताओं की आलोचना

23 यीशु ने फिर अपने शिष्यों और भीड़ से कहा। उसने कहा, “यहूदी धर्म शास्त्री और फ़रीसी मूसा के विधान की व्याख्या के अधिकारी हैं। इसलिए जो कुछ वे कहें उस पर चलना और उसका पालन करना। किन्तु जो वे करते हैं वह मत करना। मैं यह इसलिए कहता हूँ क्योंकि वे बस कहते हैं पर करते नहीं हैं। वे लोगों के कंधों पर इतना बोझ लाद देते हैं कि वे उसे उठा कर चल ही न सकें और लोगों पर दबाव डालते हैं कि वे उसे लेकर चलें। किन्तु वे स्वयं उनमें से किसी पर भी चलने के लिए पाँव तक नहीं हिलाते।

“वे अच्छे कर्म इसलिए करते हैं कि लोग उन्हें देखें। वास्तव में वे अपने ताबीज़ों और पोशाकों की झालरों को इसलिये बड़े से बड़ा करते रहते हैं ताकि लोग उन्हें धर्मात्मा समझें। वे उत्सवों में सबसे महत्वपूर्ण स्थान पाना चाहते हैं। आराधनालयों में उन्हें प्रमुख आसन चाहिये। बाज़ारों में वे आदर के साथ नमस्कार कराना चाहते हैं। और चाहते हैं कि लोग उन्हें ‘रब्बी’ कहकर संबोधित करें।

“किन्तु तुम लोगों से अपने आप को ‘रब्बी’ मत कहलवाना क्योंकि तुम्हारा सच्चा गुरु तो बस एक है। और तुम सब केवल भाई बहन हो। धरती पर लोगों को तुम अपने में से किसी को भी ‘पिता’ मत कहने देना। क्योंकि तुम्हारा पिता तो बस एक ही है, और वह स्वर्ग में है। 10 न ही लोगों को तुम अपने को स्वामी कहने देना क्योंकि तुम्हारा स्वामी तो बस एक ही है और वह मसीह है। 11 तुममें सबसे महत्वपूर्ण व्यक्ति वही होगा जो तुम्हारा सेवक बनेगा। 12 जो अपने आपको उठायेगा, उसे नीचा किया जाएगा और जो अपने आपको नीचा बनाएगा, उसे उठाया जायेगा।

13 “अरे कपटी धर्मशास्त्रियों! और फरीसियों! तुम्हें धिक्कार है। तुम लोगों के लिए स्वर्ग के राज्य का द्वार बंद करते हो। न तो तुम स्वयं उसमें प्रवेश करते हो और न ही उनको जाने देते हो जो प्रवेश के लिए प्रयत्न कर रहे हैं। 14 [a]

15 “अरे कपटी धर्मशास्त्रियों और फरीसियों! तुम्हें धिक्कार है। तुम किसी को अपने पंथ में लाने के लिए धरती और समुद्र पार कर जाते हो। और जब वह तुम्हारे पंथ में आ जाता है तो तुम उसे अपने से भी दुगुना नरक का पात्र बना देते हो!

16 “अरे अंधे रहनुमाओं! तुम्हें धिक्कार है जो कहते हो यदि कोई मन्दिर की सौगंध खाता है तो उसे उस शपथ को रखना आवश्यक नहीं है किन्तु यदि कोई मन्दिर के सोने की शपथ खाता है तो उसे उस शपथ का पालन आवश्यक है। 17 अरे अंधे मूर्खो! बड़ा कौन है? मन्दिर का सोना या वह मन्दिर जिसने उस सोने को पवित्र बनाया।

18 “तुम यह भी कहते हो ‘यदि कोई वेदी की सौगंध खाता है तो कुछ नहीं,’ किन्तु यदि कोई वेदी पर रखे चढ़ावे की सौगंध खाता है तो वह अपनी सौगंध से बँधा है। 19 अरे अंधो! कौन बड़ा है? वेदी पर रखा चढ़ावा या वह वेदी जिससे वह चढ़ावा पवित्र बनता है? 20 इसलिये यदि कोई वेदी की शपथ लेता है तो वह वेदी के साथ वेदी पर जो रखा है, उस सब की भी शपथ लेता है। 21 वह जो मन्दिर है, उसकी भी शपथ लेता है। वह मन्दिर के साथ जो मन्दिर के भीतर है, उसकी भी शपथ लेता है। 22 और वह जो स्वर्ग की शपथ लेता है, वह परमेश्वर के सिंहासन के साथ जो उस सिंहासन पर विराजमान हैं उसकी भी शपथ लेता है।

23 “अरे कपटी यहूदी धर्मशास्त्रियों और फरीसियों! तुम्हारा जो कुछ है, तुम उसका दसवाँ भाग, यहाँ तक कि अपने पुदीने, सौंफ और जीरे तक के दसवें भाग को परमेश्वर को देते हो। फिर भी तुम व्यवस्था की महत्वपूर्ण बातों यानी न्याय, दया और विश्वास का तिरस्कार करते हो। तुम्हें उन बातों की उपेक्षा किये बिना इनका पालन करना चाहिये था। 24 ओ अंधे रहनुमाओं! तुम अपने पानी से मच्छर तो छानते हो पर ऊँट को निगल जाते हो।

25 “अरे कपटी यहूदी धर्मशास्त्रियों! और फरीसियों! तुम्हें धिक्कार है। तुम अपनी कटोरियाँ और थालियाँ बाहर से तो धोकर साफ करते हो पर उनके भीतर जो तुमने छल कपट या अपने लिये रियासत में पाया है, भरा है। 26 अरे अंधे फरीसियों! पहले अपने प्याले को भीतर से माँजो ताकि भीतर के साथ वह बाहर से भी स्वच्छ हो जाये।

27 “अरे कपटी यहूदी धर्मशास्त्रियों! और फरीसियों! तुम्हें धिक्कार है। तुम लिपी-पुती समाधि के समान हो जो बाहर से तो सुंदर दिखती हैं किन्तु भीतर से मरे हुओं की हड्डियों और हर तरह की अपवित्रता से भरी होती हैं। 28 ऐसे ही तुम बाहर से तो धर्मात्मा दिखाई देते हो किन्तु भीतर से छलकपट और बुराई से भरे हुए हो।

29 “अरे कपटी यहूदी धर्मशास्त्रियों! और फरीसियों! तुम नबियों के लिये स्मारक बनाते हो और धर्मात्माओं की कब्रों को सजाते हो। 30 और कहते हो कि ‘यदि तुम अपने पूर्वजों के समय में होते तो नबियों को मारने में उनका हाथ नहीं बटाते।’ 31 मतलब यह कि तुम मानते हो कि तुम उनकी संतान हो जो नबियों के हत्यारे थे। 32 सो जो तुम्हारे पुरखों ने शुरु किया, उसे पूरा करो।

33 “अरे साँपों और नागों की संतानों! तुम कैसे सोचते हो कि तुम नरक भोगने से बच जाओगे। 34 इसलिये मैं तुम्हें बताता हूँ कि मैं तुम्हारे पास नबियों, बुद्धिमानों और गुरुओं को भेज रहा हूँ। तुम उनमें से बहुतों को मार डालोगे और बहुतों को क्रूस पर चढ़ाओगे। कुछ एक को तुम अपनी आराधनालयों में कोड़े लगवाओगे और एक नगर से दूसरे नगर उनका पीछा करते फिरोगे।

35 “परिणामस्वरूप निर्दोष हाबील से लेकर बिरिक्याह के बेटे जकरयाह तक जिसे तुमने मन्दिर के गर्भ गृह और वेदी के बीच मार डाला था, हर निरपराध व्यक्ति की हत्या का दण्ड तुम पर होगा। 36 मैं तुम्हें सत्य कहता हूँ इस सब कुछ के लिये इस पीढ़ी के लोगों को दंड भोगना होगा।”

यरूशलेम के लोगों पर यीशु को खेद

37 “ओ यरूशलेम, यरूशलेम! तू वह है जो नबियों की हत्या करता है और परमेश्वर के भेजे दूतों को पत्थर मारता है। मैंने कितनी बार चाहा है कि जैसे कोई मुर्गी अपने चूज़ों को अपने पंखों के नीचे इकट्ठा कर लेती है वैसे ही मैं तेरे बच्चों को एकत्र कर लूँ। किन्तु तुम लोगों ने नहीं चाहा। 38 अब तेरा मन्दिर पूरी तरह उजड़ जायेगा। 39 सचमुच मैं तुम्हें बताता हूँ तुम मुझे तब तक फिर नहीं देखोगे जब तक तुम यह नहीं कहोगे: ‘धन्य है वह जो प्रभु के नाम पर आ रहा है!’”

दूल्हे की प्रतीक्षा करती दस कन्याओं की दृष्टान्त कथा

25 “उस दिन स्वर्ग का राज्य उन दस कन्याओं के समान होगा जो मशालें लेकर दूल्हे से मिलने निकलीं। उनमें से पाँच लापरवाह थीं और पाँच चौकस। पाँचों लापरवाह कन्याओं ने अपनी मशालें तो ले लीं पर उनके साथ तेल नहीं लिया। उधर चौकस कन्याओं ने अपनी मशालों के साथ कुप्पियों में तेल भी ले लिया। क्योंकि दूल्हे को आने में देर हो रही थी, सभी कन्याएँ ऊँघने लगीं और पड़ कर सो गयीं।

“पर आधी रात धूम मची, ‘आ हा! दूल्हा आ रहा है। उससे मिलने बाहर चलो।’

“उसी क्षण वे सभी कन्याएँ उठ खड़ी हुईं और अपनी मशालें तैयार कीं। लापरवाह कन्याओं ने चौकस कन्याओं से कहा, ‘हमें अपना थोड़ा तेल दे दो, हमारी मशालें बुझी जा रही हैं।’

“उत्तर में उन चौकस कन्याओं ने कहा, ‘नहीं! हम नहीं दे सकतीं। क्योंकि फिर न ही यह हमारे लिए काफी होगा और न ही तुम्हारे लिये। सो तुम तेल बेचने वाले के पास जाकर अपने लिये मोल ले लो।’

10 “जब वे मोल लेने जा ही रही थी कि दूल्हा आ पहुँचा। सो वे कन्य़ाएँ जो तैयार थीं, उसके साथ विवाह के उत्सव में भीतर चली गईं और फिर किसी ने द्वार बंद कर दिया।

11 “आखिरकार वे बाकी की कन्याएँ भी गईं और उन्होंने कहा, ‘स्वामी, हे स्वामी, द्वार खोलो, हमें भीतर आने दो।’

12 “किन्तु उसने उत्तर देते हुए कहा, ‘मैं तुमसे सच कह रहा हूँ, मैं तुम्हें नहीं जानता।’

13 “सो सावधान रहो। क्योंकि तुम न उस दिन को जानते हो, न उस घड़ी को, जब मनुष्य का पुत्र लौटेगा।

तीन दासों की दृष्टान्त कथा

14 “स्वर्ग का राज्य उस व्यक्ति के समान होगा जिसने यात्रा पर जाते हुए अपने दासों को बुला कर अपनी सम्पत्ति पर अधिकारी बनाया। 15 उसने एक को चाँदी के सिक्कों से भरी पाँच थैलियाँ दीं। दूसरे को दो और तीसरे को एक। वह हर एक को उसकी योग्यता के अनुसार दे कर यात्रा पर निकल पड़ा। 16 जिसे चाँदी के सिक्कों से भरी पाँच थैलियाँ मिली थीं, उसने तुरन्त उस पैसे को काम में लगा दिया और पाँच थैलियाँ और कमा ली। 17 ऐसे ही जिसे दो थैलियाँ मिली थी, उसने भी दो और कमा लीं। 18 पर जिसे एक मिली थीं उसने कहीं जाकर धरती में गढ़ा खोदा और अपने स्वामी के धन को गाड़ दिया।

19 “बहुत समय बीत जाने के बाद उन दासों का स्वामी लौटा और हर एक से लेखा जोखा लेने लगा। 20 वह व्यक्ति जिसे चाँदी के सिक्कों की पाँच थैलियाँ मिली थीं, अपने स्वामी के पास गया और चाँदी की पाँच और थैलियाँ ले जाकर उससे बोला, ‘स्वामी, तुमने मुझे पाँच थैलियाँ सौंपी थीं। चाँदी के सिक्कों की ये पाँच थैलियाँ और हैं जो मैंने कमाई हैं!’

21 “उसके स्वामी ने उससे कहा, ‘शाबाश! तुम भरोसे के लायक अच्छे दास हो। थोड़ी सी रकम के सम्बन्ध में तुम विश्वास पात्र रहे, मैं तुम्हें और अधिक का अधिकार दूँगा। भीतर जा और अपने स्वामी की प्रसन्नता में शामिल हो।’

22 “फिर जिसे चाँदी के सिक्कों की दो थैलियाँ मिली थीं, अपने स्वामी के पास आया और बोला, ‘स्वामी, तूने मुझे चाँदी की दो थैलियाँ सौंपी थीं, चाँदी के सिक्कों की ये दो थैलियाँ और हैं जो मैंने कमाई हैं।’

23 “उसके स्वामी ने उससे कहा, ‘शाबाश! तुम भरोसे के लायक अच्छे दास हो। थोड़ी सी रकम के सम्बन्ध में तुम विश्वास पात्र रहे। मैं तुम्हें और अधिक का अधिकार दूँगा। भीतर जा और अपने स्वामी की प्रसन्नता में शामिल हो।’

24 “फिर वह जिसे चाँदी की एक थैली मिली थी, अपने स्वामी के पास आया और बोला, ‘स्वामी, मैं जानता हूँ तू बहुत कठोर व्यक्ति है। तू वहाँ काटता हैं जहाँ तूने बोया नहीं है, और जहाँ तूने कोई बीज नहीं डाला वहाँ फसल बटोरता है। 25 सो मैं डर गया था इसलिए मैंने जाकर चाँदी के सिक्कों की थैली को धरती में गाड़ दिया। यह ले जो तेरा है यह रहा, ले लो।’

26 “उत्तर में उसके स्वामी ने उससे कहा, ‘तू एक बुरा और आलसी दास है, तू जानता है कि मैं बिन बोये काटता हूँ और जहाँ मैंने बीज नहीं बोये, वहाँ से फसल बटोरता हूँ 27 तो तुझे मेरा धन साहूकारों के पास जमा करा देना चाहिये था। फिर जब मैं आता तो जो मेरा था सूद के साथ ले लेता।’

28 “इसलिये इससे चाँदी के सिक्कों की यह थैली ले लो और जिसके पास चाँदी के सिक्कों की दस थैलियाँ हैं, इसे उसी को दे दो। 29 “क्योंकि हर उस व्यक्ति को, जिसने जो कुछ उसके पास था उसका सही उपयोग किया, और अधिक दिया जायेगा। और जितनी उसे आवश्यकता है, वह उससे अधिक पायेगा। किन्तु उससे, जिसने जो कुछ उसके पास था उसका सही उपयोग नहीं किया, सब कुछ छीन लिया जायेगा। 30 सो उस बेकार के दास को बाहर अन्धेरे में धकेल दो जहाँ लोग रोयेंगे और अपने दाँत पीसेंगे।”

मनुष्य का पुत्र सबका न्याय करेगा

31 “मनुष्य का पुत्र जब अपनी स्वर्गिक महिमा में अपने सभी दूतों समेत अपने शानदार सिंहासन पर बैठेगा 32 तो सभी जातियाँ उसके सामने इकट्ठी की जायेंगी और वह एक को दूसरे से वैसे ही अलग करेगा, जैसे एक गडरिया अपनी बकरियों से भेड़ों को अलग करता है। 33 वह भेंड़ो को अपनी दाहिनी ओर रखेगा और बकरियों को बाँई ओर।

34 “फिर वह राजा, जो उसके दाहिनी ओर है, उनसे कहेगा, ‘मेरे पिता से आशीष पाये लोगो, आओ और जो राज्य तुम्हारे लिये जगत की रचना से पहले तैयार किया गया है उसका अधिकार लो। 35 यह राज्य तुम्हारा है क्योंकि मैं भूखा था और तुमने मुझे कुछ खाने को दिया, मैं प्यासा था और तुमने मुझे कुछ पीने को दिया। मैं पास से जाता हुआ कोई अनजाना था, और तुम मुझे भीतर ले गये। 36 मैं नंगा था, तुमने मुझे कपड़े पहनाए। मैं बीमार था, और तुमने मेरी सेवा की। मैं बंदी था, और तुम मेरे पास आये।’

37 “फिर उत्तर में धर्मी लोग उससे पूछेंगे, ‘प्रभु, हमने तुझे कब भूखा देखा और खिलाया या प्यासा देखा और पीने को दिया? 38 तुझे हमने कब पास से जाता हुआ कोई अनजाना देखा और भीतर ले गये या बिना कपड़ों के देखकर तुझे कपड़े पहनाए? 39 और हमने कब तुझे बीमार या बंदी देखा और तेरे पास आये?’

40 “फिर राजा उत्तर में उनसे कहेगा, ‘मैं तुमसे सत्य कह रहा हूँ जब कभी तुमने मेरे भोले-भाले भाईयों में से किसी एक के लिए भी कुछ किया तो वह तुमने मेरे ही लिये किया।’

41 “फिर वह राजा अपनी बाँई ओर वालों से कहेगा, ‘अरे अभागो! मेरे पास से चले जाओ, और जो आग शैतान और उसके दूतों के लिए तैयार की गयी है, उस अनंत आग में जा गिरो। 42 यही तुम्हारा दण्ड है क्योंकि मैं भूखा था पर तुमने मुझे खाने को कुछ नहीं दिया, 43 मैं अजनबी था पर तुम मुझे भीतर नहीं ले गये। मैं कपड़ों के बिना नंगा था, पर तुमने मुझे कपड़े नहीं पहनाये। मैं बीमार और बंदी था, पर तुमने मेरा ध्यान नहीं रखा।’

44 “फिर वे भी उत्तर में उससे पूछेंगे, ‘प्रभु, हमने तुझे भूखा या प्यासा या अनजाना या बिना कपड़ों के नंगा या बीमार या बंदी कब देखा और तेरी सेवा नहीं की।’

45 “फिर वह उत्तर में उनसे कहेगा, ‘मैं तुमसे सच कह रहा हूँ जब कभी तुमने मेरे इन भोले भाले अनुयायियों में से किसी एक के लिए भी कुछ करने में लापरवाही बरती तो वह तुमने मेरे लिए ही कुछ करने में लापरवाही बरती।’

46 “फिर ये बुरे लोग अनंत दण्ड पाएँगे और धर्मी लोग अनंत जीवन में चले जायेंगे।”

अपने शिष्यों के लिए यीशु की प्रार्थना

17 ये बातें कहकर यीशु ने आकाश की ओर देखा और बोला,

1हे परम पिता, वह घड़ी आ पहुँची है अपने पुत्र को महिमा प्रदान कर ताकि तेरा पुत्र तेरी महिमा कर सके। तूने उसे समूची मनुष्य जाति पर अधिकार दिया है कि वह, हर उसको, जिसको तूने उसे दिया है, अनन्त जीवन दे। अनन्त जीवन यह है कि वे तुझे एकमात्र सच्चे परमेश्वर और यीशु मसीह को, जिसे तूने भेजा है, जानें। जो काम तूने मुझे सौंपे थे, उन्हें पूरा करके जगत में मैंने तुझे महिमावान किया है। इसलिये अब तू अपने साथ मुझे भी महिमावान कर। हे परम पिता! वही महिमा मुझे दे जो जगत से पहले, तेरे साथ मुझे प्राप्त थी।

“जगत से जिन मनुष्यों को तूने मुझे दिया, मैंने उन्हें तेरे नाम का बोध कराया है। वे लोग तेरे थे किन्तु तूने उन्हें मुझे दिया और उन्होंने तेरे वचन का पालन किया। अब वे जानते हैं कि हर वह वस्तु जो तूने मुझे दी है, वह तुझ ही से आती है। मैंने उन्हें वे ही उपदेश दिये हैं जो तूने मुझे दिये थे और उन्होंने उनको ग्रहण किया। वे निश्चयपूर्वक जानते हैं कि मैं तुझसे ही आया हूँ। और उन्हें विश्वास हो गया है कि तूने मुझे भेजा है। मैं उनके लिये प्रार्थना कर रहा हूँ। मैं जगत के लिये प्रार्थना नहीं कर रहा हूँ बल्कि उनके लिए कर रहा हूँ जिन्हें तूने मुझे दिया है, क्योंकि वे तेरे हैं। 10 वह सब कुछ जो मेरा है, वह तेरा है और जो तेरा है, वह मेरा है। और मैंने उनके द्वारा महिमा पायी है।

11 “मैं अब और अधिक समय जगत में नहीं हूँ किन्तु वे जगत में है अब मैं तेरे पास आ रहा हूँ। हे पवित्र पिता अपने उस नाम की शक्ति से उनकी रक्षा कर जो तूने मुझे दिया है ताकि जैसे तू और मैं एक हैं, वे भी एक हो सकें। 12 जब मैं उनके साथ था, मैंने तेरे उस नाम की शक्ति से उनकी रक्षा की, जो तूने मुझे दिया था। मैंने रक्षा की और उनमें से कोई भी नष्ट नहीं हुआ सिवाय उसके जो विनाश का पुत्र था ताकि शास्त्र का कहना सच हो।

13 “अब मैं तेरे पास आ रहा हूँ किन्तु ये बातें मैं जगत में रहते हुए कह रहा हूँ ताकि वे अपने हृदयों में मेरे पूर्ण आनन्द को पा सकें। 14 मैंने तेरा वचन उन्हें दिया है पर संसार ने उनसे घृणा की क्योंकि वे सांसारिक नहीं हैं। वैसे ही जैसे मैं संसार का नहीं हूँ।

15 “मैं यह प्रार्थना नहीं कर रहा हूँ कि तू उन्हें संसार से निकाल ले बल्कि यह कि तू उनकी दुष्ट शैतान से रक्षा कर। 16 वे संसार के नहीं हैं, वैसे ही जैसे मैं संसार का नहीं हूँ। 17 सत्य के द्वारा तू उन्हें अपनी सेवा के लिये समर्पित कर। तेरा वचन सत्य है। 18 जैसे तूने मुझे इस जगत में भेजा है, वैसे ही मैंने उन्हें जगत में भेजा है। 19 मैं उनके लिए अपने को तेरी सेवा में अर्पित कर रहा हूँ ताकि वे भी सत्य के द्वारा स्वयं को तेरी सेवा में अर्पित करें।

20 “किन्तु मैं केवल उन ही के लिये प्रार्थना नहीं कर रहा हूँ बल्कि उनके लिये भी जो इनके उपदेशों द्वारा मुझ में विश्वास करेंगे। 21 वे सब एक हों। वैसे ही जैसे हे परम पिता तू मुझ में है और मैं तुझ में। वे भी हममें एक हों। ताकि जगत विश्वास करे कि मुझे तूने भेजा है। 22 वह महिमा जो तूने मुझे दी है, मैंने उन्हें दी है; ताकि वे भी वैसे ही एक हो सकें जैसे हम एक है। 23 मैं उनमें होऊँगा और तू मुझमें होगा, जिससे वे पूर्ण एकता को प्राप्त हों और जगत जान जाये कि मुझे तूने भेजा है और तूने उन्हें भी वैसे ही प्रेम किया है जैसे तू मुझे प्रेम करता है।

24 “हे परम पिता। जो लोग तूने मुझे सौंपे हैं, मैं चाहता हूँ कि जहाँ मैं हूँ, वे भी मेरे साथ हों ताकि वे मेरी उस महिमा को देख सकें जो तूने मुझे दी है। क्योंकि सृष्टि की रचना से भी पहले तूने मुझसे प्रेम किया है। 25 हे धार्मिक-पिता, जगत तुझे नहीं जानता किन्तु मैंने तुझे जान लिया है। और मेरे शिष्य जानते हैं कि मुझे तूने भेजा है। 26 न केवल मैंने तेरे नाम का उन्हें बोध कराया है बल्कि मैं इसका बोध कराता भी रहूँगा ताकि वह प्रेम जो तूने मुझ पर दर्शाया है उनमें भी हो। और मैं भी उनमें रहूँ।”

लूंट की निशानी – कुरानलूत की निशानी – तौरात उत्पत्ति 19
सूरत 7: 80-83 (हाइट्स)

और हमने लूत को भेजा। जब उसने अपनी क़ौम से कहा, “क्या तुम वह प्रत्यक्ष अश्लील कर्म करते हो, जिसे दुनिया में तुमसे पहले किसी ने नहीं किया?” 80 Share
तुम स्त्रियों को छोड़कर मर्दों से कामेच्छा पूरी करते हो, बल्कि तुम नितान्त मर्यादाहीन लोग हो। 81 Share
उसकी क़ौम के लोगों का उत्तर इसके अतिरिक्त और कुछ न था कि वे बोले, “निकालो, उन लोगों को अपनी बस्ती से। ये ऐसे लोग हैं जो बड़े पाक-साफ़ हैं!” 82 Share
फिर हमने उसे और उसके लोगों को छुटकारा दिया, सिवाय उसकी स्त्री के कि वह पीछे रह जानेवालों में से थी। 83 और हमने उनपर एक बरसात बरसाई, तो देखो अपराधियों का कैसा परिणाम हुआ। 84
 सूरत 11: 77-83 (द हड)
और जब हमारे दूत लूत के पास पहुँचे तो वह उनके कारण अप्रसन्न हुआ और उनके मामले में दिल तंग पाया। कहने लगा, “यह तो बड़ा ही कठिन दिन है।” 77
उसकी क़ौम के लोग दौड़ते हुए उसके पास आ पहुँचे। वे पहले से ही दुष्कर्म किया करते थे। उसने कहा, “ऐ मेरी क़ौम के लोगो! ये मेरी (क़ौम की) बेटियाँ (विधिवत विवाह के लिए) मौजूद हैं। ये तुम्हारे लिए अधिक पवित्र हैं। अतः अल्लाह का डर रखो और मेरे अतिथियों के विषय में मुझे अपमानित न करो। क्या तुममें एक भी अच्छी समझ का आदमी नहीं?”78
उन्होंने कहा, “तुझे तो मालूम है कि तेरी बेटियों से हमें कोई मतलब नहीं। और हम जो चाहते हैं, उसे तू भली-भाँति जानता है।” (7
उसने कहा, “क्या ही अच्छा होता मुझमें तुमसे मुक़ाबले की शक्ति होती या मैं किसी सुदृढ़ आश्रय की शरण ही ले सकता।” 80
उन्होंने कहा, “ऐ लूत! हम तुम्हारे रब के भेजे हुए हैं। वे तुम तक कदापि नहीं पहुँच सकते। अतः तुम रात के किसी हिस्से में अपने घरवालों को लेकर निकल जाओ और तुममें से कोई पीछे पलटकर न देखे। हाँ, तुम्हारी स्त्री का मामला और है। उसपर भी वही कुछ बीतनेवाला है, जो उनपर बीतेगा। निर्धारित समय उनके लिए प्रातःकाल का है। तो क्या प्रातःकाल निकट नहीं?” 81
फिर जब हमारा आदेश आ पहुँचा तो हमने उसको तलपट कर दिया और उसपर कंकरीले पत्थर ताबड़-तोड़ बरसाए, 82
जो तुम्हारे रब के यहाँ चिन्हित थे। और वे अत्याचारियों से कुछ दूर भी नहीं। 83
उनमें से दो स्वर्गदूत साँझ को सदोम नगर में आए। लूत नगर के द्वार पर बैठा था और उसने स्वर्गदूतों को देखा। लूत ने सोचा कि वे लोग नगर के बीच से यात्रा कर रहे हैं। लूत उठा और स्वर्गदूतों के पास गया तथा जमीन तक सामने झुका। लूत ने कहा, “आप सब महोदय, कृप्या मेरे घर चलें और मैं आप लोगों की सेवा करूँगा। वहाँ आप लोग अपने पैर धो सकते हैं और रात को ठहर सकते हैं। तब कल आप लोग अपनी यात्रा आरम्भ कर सकते हैं।”
स्वर्गदूतों ने उत्तर दिया, “नहीं, हम लोग रात को मैदान[a] में ठहरेंगे।”
किन्तु लूत अपने घर चलने के लिए बार—बार कहता रहा। इस तरह स्वर्गदूत लूत के घर जाने के लिए तैयार हो गए। जब वे घर पहुँचे तो लूत उनके पीने के लिए कुछ लाया। लूत ने उनके लिए रोटियाँ बनाईं। लूत का पकाया भोजन स्वर्गदूतों ने खाया।
उस शाम सोने के समय के पहले ही नगर के सभी भागों से लोग लूत के घर आए। सदोम के पुरुषों ने लूत का घर घेर लिया और बोले। उन्होंने कहा, “आज रात को जो लोग तुम्हारे पास आए, वे दोनों पुरुष कहाँ हैं? उन पुरुषों को बाहर हमें दे दो। हम उनके साथ कुकर्म करना चाहते हैं।”
लूत बाहर निकला और अपने पीछे से उसने दरवाज़ा बन्द कर लिया। लूत ने पुरुषों से कहा, “नहीं मेरे भाइयो मैं प्रार्थना करता हूँ कि आप यह बुरा काम न करें। देखों मेरी दो पुत्रियाँ हैं, वे इसके पहले किसी पुरुष के साथ नहीं सोयी हैं। मैं अपनी पुत्रियों को तुम लोगों को दे देता हूँ। तुम लोग उनके साथ जो चाहो कर सकते हो। लेकिन इन व्यक्तियों के साथ कुछ न करो। ये लोग हमारे घर आए हैं और मैं इनकी रक्षा जरूर करूँगा।”
घर के चारों ओर के लोगों ने उत्तर दिया, “रास्ते से हट जाओ।” तब पुरुषों ने अपने मन में सोचा, “यह व्यक्ति लूत हमारे नगर में अतिथि के रूप में आया। अब यह सिखाना चाहता है कि हम लोग क्या करें।” तब लोगों ने लूत से कहा, “हम लोग उनसे भी अधिक तुम्हारा बुरा करेंगे।” इसलिए उन व्यक्तियों ने लूत को घेर कर उसके निकट आना शुरू किया। वे दरवाज़े को तोड़कर खोलना चाहते थे।
10 किन्तु लूत के साथ ठहरे व्यक्तियों ने दरवाज़ा खोला और लूत को घर के भीतर खींच लिया। तब उन्होंने दरवाज़ा बन्द कर लिया। 11 दोनों व्यक्तियों ने दरवाज़े के बाहर के पुरुषों को अन्धा कर दिया। इस तरह घर में घुसने की कोशिश करने वाले जवान व बूढ़े सब अन्धे हो गए और दरवाज़ा न पा सके।
सदोम से बच निकलना
12 दोनों व्यक्तियों ने लूत से कहा, “क्या इस नगर में ऐसा व्यक्ति है जो तुम्हारे परिवार का है? क्या तुम्हारे दामाद, तुम्हारी पुत्रियाँ या अन्य कोई तुम्हारे परिवार का व्यक्ति है? यदि कोई दूसरा इस नगर में तुम्हारे परिवार का है तो तुम अभी नगर छोड़ने के लिए कह दो। 13 हम लोग इस नगर को नष्ट करेंगे। यहोवा ने उन सभी बुराइयों को सुन लिया है जो इस नगर में है। इसलिए यहोवा ने हम लोगों को इसे नष्ट करने के लिए भेजा हैं।”
14 इसलिए लूत बाहर गया और अपनी अन्य पुत्रियों से विवाह करने वाले दामादों से बातें कीं। लूत ने कहा, “शीघ्रता करो और इस नगर को छोड़ दो।” यहोवा इसे तुरन्त नष्ट करेगा। लेकिन उन लोगों ने समझा कि लूत मज़ाक कर रहा है।
15 दूसरी सुबह को भोर के समय ही स्वर्गदूत लूत से जल्दी करने की कोशिश की। उन्होंने कहा, “देखो इस नगर को दण्ड मिलेगा। इसलिए तुम अपनी पत्नी और तुम्हारे साथ जो दो पुत्रियाँ जो अभी तक हैं, उन्हें लेकर इस जगह को छोड़ दो। तब तुम नगर के साथ नष्ट नहीं होगे।”
16 लेकिन लूत दुविधा में रहा और नगर छोड़ने की जल्दी उसने नहीं की। इसलिए दोनों स्वर्गदूतों ने लूत, उसकी पत्नी और उसकी दोनों पुत्रियों के हाथ पकड़ लिए। उन दोनों ने लूत और उसके परिवार को नगर के बाहर सुरक्षित स्थान में पहुँचाया। लूत और उसके परिवार पर यहोवा की कृपा थी। 17 इसलिए दोनों ने लूत और उसके परिवार को नगर के बाहर पहुँचा दिया। जब वे बाहर हो गए तो उनमें से एक ने कहा, “अपना जीवन बचाने के लिए अब भागो। नगर को मुड़कर भी मत देखो। इस घाटी में किसी जगह न रूको। तब तक भागते रहो जब तक पहाड़ों में न जा पहुँचो। अगर तुम ऐसा नहीं करते, तो तुम नगर के साथ नष्ट हो जाओगे।”
18 तब लूत ने दोनों से कहा, “महोदयों, कृपा करके इतनी दूर दौड़ने के लिए विवश न करें। 19 आप लोगों ने मुझ सेवक पर इतनी अधिक कृपा की है। आप लोगों ने मुझे बचाने की कृपा की है। लेकिन मैं पहाड़ी तक दौड़ नहीं सकता। अगर मैं आवश्यकता से अधिक धीरे दौड़ा तो कुछ बुरा होगा और मैं मारा जाऊँगा। 20 लेकिन देखें यहाँ पास में एक बहुत छोटा नगर है। हमें उस नगर तक दौड़ने दें। तब हमारा जीवन बच जाएगा।”
21 स्वर्गदूत ने लूत से कहा, “ठीक है, मैं तुम्हें ऐसा भी करने दूँगा। मैं उस नगर को नष्ट नहीं करूँगा जिसमें तुम जा रहे हो। 22 लेकिन वहाँ तक तेज दौड़ो। मैं तब तक सदोम को नष्ट नहीं करूँगा जब तक तुम उस नगर में सुरक्षित नहीं पहुँच जाते।” (इस नगर का नाम सोअर है, क्योंकि यह छोटा है।)
सदोम और अमोरा नष्ट किए गए
23 जब लूत सोअर में घुस रहा था, सबेरे का सूरज चमकने लगा 24 और यहोवा ने सदोम और अमोरा को नष्ट करना आरम्भ किया। यहोवा ने आग तथा जलते हुए गन्धक को आकाश से नीचें बरसाया। 25 इस तरह यहोवा ने उन नगरों को जला दिया और पूरी घाटी के सभी जीवित मनुष्यों तथा सभी पेड़ पौधों को भी नष्ट कर दिया।
26 जब वे भाग रहे थे, तो लूत की पत्नी ने मुड़कर नगर को देखा। जब उसने मुड़कर देखा तब वह एक नमक की ढेर हो गई।
इब्राहिम का संकेत (भाग 2) – कुरआन इब्राहीम की निशानी (भाग 2) – तौरात
सूरत 37: 83-84,99-101 (सैफ़त)

83 वास्तव में उनके मार्ग क अनुसरण करने वालों में अब्राहम था।

84 निहारना! वह अपने दिल के साथ भगवान के पास पहुंचा

99उसने कहा: “मैं अपने रब के पास जाऊंगा! वह मेरा मार्गदर्शन अवश्य करेंगे!

100 “हे मेरे प्रभु! मुझे एक धर्मी (पुत्र) प्रदान करो! ”
101 इसलिए हमने उसे एक लड़के को भुगतने और मना करने के लिए तैयार होने की खुशखबरी दी।
Gउत्पत्ति 15: 1-6
1 इसके बाद, यहोवा का वचन अब्राम को एक दर्शन में आया:

“डरो मत, अब्राम।
मैं आपकी ढाल हूँ, आपका बहुत बड़ा प्रतिफल है। ”

2 लेकिन अब्राम ने कहा, “हे प्रभु यहोवा, जब तक मैं निःसंतान रहता हूं और जो मेरी संपत्ति को प्राप्त करेगा, वह दमिश्क का एलिएजर है, तो आप मुझे क्या दे सकते हैं?” 3 और अब्राम ने कहा, “तुमने मुझे कोई संतान नहीं दी है; तो मेरे घर का नौकर मेरा वारिस होगा। ”

4 तब यहोवा का वचन उसके पास आया: “यह मनुष्य तुम्हारा उत्तराधिकारी नहीं होगा, बल्कि तुम्हारे ही शरीर से आने वाला पुत्र तुम्हारा उत्तराधिकारी होगा।” 5 वह उसे बाहर ले गया और कहा, “आकाश को देखो और गिनो सितारे – अगर वास्तव में आप उन्हें गिन सकते हैं। “तो उन्होंने उससे कहा,” तो तुम्हारी संतान होगी। “

6 अब्राम ने यहोवा पर विश्वास किया, और उसने उसे धार्मिकता के रूप में श्रेय दिया।
इब्राहिम की निशानी – कुरआन इब्राहिम का चिन्ह – तौरात (उत्पत्ति 12: 1-7)
सूरत 3:84 (अल इमराम) “हम ईश्वर में विश्वास करते हैं, और जो हमारे सामने प्रकट हुआ है और जो अब्राहम, इस्माईल, इसहाक, जैकब और ट्राइब्स, और इन (द बुक्स) में मूसा को दिया गया है। , यीशु, और भविष्यद्वक्ताओं, उनके भगवान से: हम उनके बीच एक दूसरे के बीच कोई अंतर नहीं करते हैं, और भगवान के लिए हम अपनी इच्छा (इस्लाम में) झुकाते हैं। ”सूरत 4:54 (महिला) या वे मानव जाति के लिए ईर्ष्या करते हैं। परमेश्वर ने उन्हें अपने इनाम में क्या दिया? लेकिन हमने अब्राहम को द बुक एंड विजडम के लोगों को पहले ही दे दिया था, और उन्हें एक महान राज्य दिया।  12 यहोवा ने अब्राम से कहा था, “मैं अपने देश, अपने लोगों और अपने पिता के घर से उस भूमि पर जाऊँगा जहाँ मैं तुम्हें दिखाऊँगा। “मैं तुम्हें एक महान राष्ट्र में बनाऊंगा,
    और मैं तुम्हें आशीर्वाद दूंगा;
    मैं तुम्हारा नाम महान कर दूंगा,
    और आप एक आशीर्वाद होंगे।
    3 मैं उन्हें आशीर्वाद दूंगा जो तुम्हें आशीर्वाद देते हैं,
    और जो कोई तुम्हें शाप देगा, मैं शाप दे दूंगा;
    और सभी लोग पृथ्वी पर हैं
    तुम्हारे माध्यम से धन्य हो जाएगा। ”4 तब अब्राम चला गया, जैसा कि प्रभु ने उसे बताया था; और लूत उसके साथ गया। अब्राम सत्तर साल का था, जब वह हैरन से बाहर आया था। 5 वह अपनी पत्नी सराय, अपने भतीजे लूत को ले गया, जो उनके पास जमा था और हारान में जिन लोगों को उन्होंने अधिग्रहित किया था, वे सब उनके पास हैं, और वे कनान देश के लिए निकल पड़े, और वे वहां पहुंचे। … उस समय कनानी लोग भूमि में थे। 7 यहोवा ने अब्राम को दर्शन दिए और कहा, “तुम्हारी संतानों को मैं यह भूमि दूंगा।”
कुरान तौरात
(द हड) सूरत ११: २५-४ Surat
हमने नूह को उसके लोगों के पास भेजा (एक मिशन के साथ): “मैं तुम्हारे पास एक स्पष्ट चेतावनी के साथ आया हूं: कि तुम अल्लाह के अलावा किसी की सेवा नहीं करते। वास्तव में मैं आपके लिए एक दुखद दिन का जुर्माना करता हूं। “
लेकिन उनके लोगों के बीच अविश्वासियों के प्रमुखों ने कहा: “हम देखते हैं (आप में) अपने आप को एक आदमी के रूप में कुछ भी नहीं है: न ही हम देखते हैं कि कोई भी आप का पालन करता है, लेकिन हमारे बीच मतलबी, अपरिपक्व रूप से: न ही हम आपको किसी में देखते हैं हमारे ऊपर योग्यता: वास्तव में हमें लगता है कि तुम झूठे हो! “
उसने कहा: “हे मेरे लोग! यदि आप देखें (यह है कि) मैं अपने भगवान से एक स्पष्ट संकेत है, … मैं तुम्हें बदले में कोई धन के लिए पूछना: मेरा इनाम कोई और नहीं बल्कि अल्लाह से है। लेकिन मैं उन लोगों (जो अवमानना ​​में) को नहीं भगाता: जो मानते हैं: वास्तव में वे अपने भगवान से मिलने वाले हैं, और मैं देख रहा हूं कि आप अज्ञानी हैं!
… यह नूह को पता चला था: “तुम्हारा कोई भी व्यक्ति उन लोगों को छोड़कर विश्वास नहीं करेगा, जो पहले से ही विश्वास करते हैं! इसलिए अब उनके (बुरे) कामों पर शोक मत करो। लेकिन हमारी आँखों और हमारी प्रेरणा के तहत एक आर्क का निर्माण करें, और जो लोग पाप में हैं, उनकी ओर से मुझे नहीं (आगे) संबोधित करें: क्योंकि वे (बाढ़ में) अभिभूत होने वाले हैं। “
फ़र्क के साथ वह (शुरू) आर्क का निर्माण करता है: हर बार जब उसके लोगों के प्रमुख उसके पास से गुज़रे, तो उन्होंने उस पर उपहास उड़ाया। उन्होंने कहा: “… जल्द ही आपको पता चल जाएगा कि यह कौन है जिस पर जुर्माना लगाया जाएगा, जो उन्हें शर्म से घेर लेगा, – जिस पर कोई जुर्माना नहीं लगाया जाएगा:”
लंबाई में, निहारना! हमारी आज्ञा आई, और पृथ्वी के फव्वारे आगे बढ़ गए! हमने कहा: “प्रत्येक प्रकार के दो, नर और मादा, और आपके परिवार – को छोड़कर, जिनके खिलाफ यह शब्द पहले ही आगे बढ़ चुका है, – और विश्वासियों को गले लगाओ।” लेकिन उनके साथ कुछ ही लोग विश्वास करते थे।
… 42। तब अर्क उनके साथ पर्वतों की तरह लहरों पर दौड़ता हुआ आया, और नूह ने अपने पुत्र को पुकारा, जो अपने आप को (बाकी से) अलग कर चुका था: “हे मेरे पुत्र! हमारे साथ रहो, और अविश्वासियों के साथ मत रहो! “
बेटे ने जवाब दिया: “मैं अपने आप को किसी पहाड़ पर दांव लगाऊंगा: यह मुझे पानी से बचाएगा।” नूह ने कहा: “इस दिन अल्लाह की आज्ञा से कोई भी बचा सकता है, कोई भी लेकिन जिस पर वह दया करता है! “और लहरें उनके बीच आ गईं, और बेटा बाढ़ में डूबे लोगों में से था।
तब यह शब्द आगे बढ़ा: “हे पृथ्वी! तेरा पानी निगल, और हे आकाश! रोक (आपकी वर्षा)! ”और पानी समाप्त हो गया, और मामला समाप्त हो गया। आर्क ने जूडी पर्वत पर विश्राम किया, और यह शब्द आगे बढ़ गया: “उन लोगों के साथ जो गलत करते हैं!”
नूह ने कहा: “हे मेरे रब! मैं थियो के साथ शरण चाहता हूं, ऐसा न हो कि मैं उनके लिए थियो पूछता हूं, जिसका मुझे कोई ज्ञान नहीं है। और जब तक तुम मुझे माफ नहीं करोगे और मुझ पर दया करोगे, मैं वास्तव में खो जाऊंगा! “
शब्द आया: “हे नूह! हमारे साथ शांति से (आर्क से) नीचे आओ, और तुम्हारे साथ उन लोगों में से कुछ लोगों पर (जो वसंत होंगे) पर आशीर्वाद दे रहे हैं: लेकिन (वहाँ अन्य) लोग होंगे जिन्हें हम उनके सुखों के लिए अनुदान देंगे (एक के लिए) समय), लेकिन अंत में एक गंभीर दंड हमारे पास से उन तक पहुँच जाएगा। ”
 (ऊँचाई) 59: ५ ९ -६४
हमने नूह को उसके लोगों के पास भेजा। उसने कहा: “हे मेरे लोग! अल्लाह की इबादत करो। तुझे कोई और नहीं बल्कि भगवान है। मुझे तुम्हारे लिए एक भयानक दिन की सजा का डर है!
उसके लोगों के नेताओं ने कहा: “आह! हम आपको (मन में) भटकते हुए देखते हैं। ”
उसने कहा: “हे मेरे लोगों! मेरे (मन) में कोई भटकन नहीं है: इसके विपरीत मैं दुनिया के भगवान और चेरिशर से प्रेरित हूं!
“लेकिन मैं अपने प्रभु के मिशन के कर्तव्यों को पूरा करता हूं: ईमानदारी से आप को मेरी सलाह है, और मैं अल्लाह से कुछ जानता हूं जो आप नहीं जानते हैं।
“क्या तुम्हें आश्चर्य है कि वहाँ तुम्हारे पास अपने भगवान के द्वारा, अपने ही लोगों के माध्यम से, तुम्हें चेतावनी देने के लिए एक संदेश आया है, ताकि तुम अल्लाह से डरते हो और जल्द से जल्द अपनी दया प्राप्त करो?”
लेकिन उन्होंने उसे अस्वीकार कर दिया, और हमने उसे, और उन लोगों को सन्दूक में पहुँचाया: लेकिन हम उन लोगों को बाढ़ में डूब गए जिन्होंने उनके संकेतों को अस्वीकार कर दिया। वे वास्तव में एक अंधे लोग थे!
उत्पत्ति 6-8 11 अब पृथ्वी भगवान की दृष्टि में भ्रष्ट थी और हिंसा से भरी थी। 12 परमेश्वर ने देखा कि पृथ्वी कितनी भ्रष्ट हो गई थी, क्योंकि पृथ्वी के सभी लोगों ने अपने रास्ते भ्रष्ट कर लिए थे। 13 इसलिए परमेश्वर ने नूह से कहा, “मैं सभी लोगों का अंत करने जा रहा हूं, क्योंकि पृथ्वी उनकी वजह से हिंसा से भरी है। मैं निश्चित रूप से उन्हें और पृथ्वी दोनों को नष्ट करने जा रहा हूं। 14 इसलिए अपने आप को सरू की लकड़ी का एक सन्दूक बनाओ; इसमें कमरे बनाएं और इसे अंदर और बाहर पिच के साथ कोट करें। 15 यह है कि आप इसे कैसे बना सकते हैं: सन्दूक 450 फीट लंबा, 75 फीट चौड़ा और 45 फीट ऊंचा होना चाहिए। … 17 मैं पृथ्वी पर जलप्रलय लाने जा रहा हूँ, जिससे आकाश के नीचे का सारा जीवन नष्ट हो जाए, हर प्राणी जिसमें जीवन की साँस है। पृथ्वी पर सब कुछ नष्ट हो जाएगा। 18 लेकिन मैं तुम्हारे साथ अपनी वाचा स्थापित करूंगा, और तुम सन्दूक में प्रवेश करोगे-तुम और तुम्हारे पुत्रों और तुम्हारी पत्नी और तुम्हारे पुत्रों की पत्नियां। 19 आप सभी जीवित प्राणियों, नर और मादा में से दो को अपने साथ रखने के लिए सन्दूक में लाएंगे। 20 हर तरह के पक्षी, हर तरह के जानवर और हर तरह के जीव जो जमीन के साथ-साथ चलते हैं, तुम्हें जीवित रखने आएंगे। 21 आपको हर तरह का भोजन लेना है, जिसे खाया जाना है और इसे आपके लिए और उनके लिए भोजन के रूप में स्टोर करना है। ”22 नूह ने सब कुछ वैसा ही किया जैसा भगवान ने उसे किया। 1 यहोवा ने नूह से कहा, “तुम और तुम्हारे पूरे परिवार के साथ जाओ, क्योंकि मैंने तुम्हें इस पीढ़ी में धर्मी पाया है। 2 अपने साथ सात प्रकार के साफ-सुथरे जानवर, एक नर और उसके साथी, और दो तरह के अशुद्ध जानवर, एक नर और एक दोस्त, 3 और हर तरह के पक्षी, नर और मादा, को अपने साथ रखने के लिए सात पृथ्वी भर में विभिन्न प्रकार जीवित हैं। 4 अब से सात दिन बाद मैं चालीस दिन और चालीस रातों के लिए धरती पर बारिश भेजूँगा, और मैं अपने बनाए हर जीवित प्राणी का चेहरा धरती से मिटा दूँगा। ”5 और नूह ने वह सब किया जो यहोवा ने उसे आज्ञा दी थी…। उसी दिन नूह और उसके बेटे, शेम, हाम और यिप्तह, अपनी पत्नी और अपने तीनों बेटों की पत्नियों के साथ, सन्दूक में दाखिल हुए … 15 जीवों में से सभी 15 जोड़े जिनके पास प्राण हैं, वे नूह में आए और प्रवेश किया जहाज। 16 जानवरों में हर जीवित चीज़ के नर और मादा थे, क्योंकि परमेश्वर ने नूह को आज्ञा दी थी। तब प्रभु ने उसे 17 में बंद कर दिया। चालीस दिनों तक पृथ्वी पर बाढ़ आती रही, और जैसे-जैसे पानी बढ़ता गया, उन्होंने पृथ्वी के ऊपर सन्दूक को ऊपर उठाया। 18 पानी बढ़ गया और पृथ्वी पर बहुत बढ़ गया, और सन्दूक पानी की सतह पर तैरने लगा। 19 वे धरती पर बहुत बढ़ गए, और पूरे स्वर्ग के नीचे के सभी ऊँचे पहाड़ ढँक गए। 20 पानी बढ़ गया और पहाड़ों को बीस फीट से अधिक की गहराई तक ढँक दिया। 21 धरती पर रहने वाली हर जीवित चीज़-पक्षी, पशुधन, जंगली जानवर, वे सभी प्राणी जो पृथ्वी पर तैरते हैं, और सभी मानव जाति। 22 सूखी जमीन पर सब कुछ जिसके नथनों में जीवन की सांस थी, मर गया। 23 पृथ्वी के मुख पर मौजूद हर जीवित वस्तु को मिटा दिया गया; धरती से हवा के पक्षियों और जानवरों और जीवों को धरती से मिटा दिया गया। केवल नूह ही बचा था, और उसके साथ सन्दूक में थे। सौ और पचास दिनों के अंत में, पानी नीचे चला गया था, 4 और सातवें महीने के सत्रहवें दिन सन्दूक अरारट के पहाड़ों पर आराम करने के लिए आया था। 5… 18 इसलिए नूह अपने बेटों और अपनी पत्नी और अपने बेटों की पत्नियों के साथ बाहर आया। 19 सभी जानवर और सभी प्राणी जो ज़मीन के साथ-साथ चलते हैं और सभी पक्षी — जो कुछ भी पृथ्वी पर चलता है — एक के बाद एक, सन्दूक से बाहर आया। 20 तब नूह ने यहोवा के लिए एक वेदी बनाई और सभी साफ-सुथरे जानवरों और साफ-सुथरे पक्षियों को ले जाकर उस पर होमबलि चढ़ाया। 21 यहोवा ने मनभावन सुगंध सूँघी और उसके दिल में कहा: “फिर कभी मैं मनुष्य के कारण जमीन को अभिशाप नहीं दूंगा, भले ही उसके दिल का हर झुकाव बचपन से ही बुरा हो। और फिर कभी मैं सभी जीवित प्राणियों को नष्ट नहीं करूंगा, जैसा कि मैंने किया है।
कुरआन- सूरत ३ 37: १०२-१११० (सफ़ात) टॉरेट: उत्पत्ति 22: 1-18
१०२.तब, जब (पुत्र) पहुँचे (उम्र) (गंभीर) उसके साथ काम करते हैं, तो उसने कहा: “हे मेरे पुत्र! मैं दृष्टि में देखता हूँ कि मैं तुझे यज्ञ में अर्पित करता हूँ: अब देख, तेरा क्या दृष्टिकोण है!” (पुत्र) ने कहा: “हे मेरे पिता! जैसा तू ने आज्ञा दी है, तू वैसा ही मुझे पाएगा, यदि अल्लाह इतनी इच्छाशक्ति और दृढ़ता का अभ्यास करेगा!” 103.So जब वे दोनों अपनी इच्छाएँ (अल्लाह के लिए) प्रस्तुत कर चुके थे। ने उसे अपने माथे पर (बलि के लिए) साष्टांग दण्डवत् किया, १०४। हमने उसे “ओ अब्राहम! १०५।” कहा, “तू जल्द ही दृष्टि पूरी कर चुका है!” स्पष्ट रूप से एक परीक्षण- 107. और हमने उसे एक पल बलिदान के साथ फिरौती दी: 108. और हमने पीढ़ियों के बीच (आने वाले समय में) उसके लिए (यह आशीर्वाद) छोड़ दिया: 109. “अब्राहम को शांति और सलाम!” क्या हम उन लोगों को पुरस्कृत करते हैं जो सही करते हैं।कुछ समय बाद भगवान ने अब्राहम का परीक्षण किया। उसने उससे कहा, “अब्राहम!”
“यहाँ मैं हूँ,” उसने जवाब दिया। तब भगवान ने कहा, “अपने बेटे, अपने इकलौते बेटे, इसहाक, जिसे तुम प्यार करते हो, और मोरिया के क्षेत्र में जाओ। उसे वहां एक पहाड़ पर एक जले हुए चढ़ावे के रूप में बलिदान करो। अपने बारे में बतायें।” … .जब वे उस स्थान पर पहुँचे जहाँ ईश्वर ने उनके बारे में बताया था, इब्राहीम ने वहाँ एक वेदी बनाई और उस पर लकड़ी की व्यवस्था की। उसने अपने बेटे इसहाक को बांध दिया और उसे वेदी पर, लकड़ी के ऊपर रख दिया। फिर उसने अपना हाथ बाहर निकाला और अपने बेटे को मारने के लिए चाकू ले लिया। लेकिन यहोवा के दूत ने उसे स्वर्ग से बुलाया, “अब्राहम! अब्राहम!”
“यहाँ मैं हूँ,” उसने जवाब दिया। “लड़के पर हाथ मत डालो,” उन्होंने कहा। “उसके लिए कुछ मत करो। अब मुझे पता है कि तुम भगवान से डरते हो, क्योंकि तुमने मेरे बेटे, तुम्हारे इकलौते बेटे से मेरा साथ नहीं लिया है।” इब्राहीम ने ऊपर देखा और वहाँ एक मोटी में उसने एक राम को उसके सींगों से पकड़ा हुआ देखा। वह चला गया और उसने राम को ले लिया और अपने बेटे के बदले उसे एक होमबलि के रूप में बलिदान कर दिया। इसलिए अब्राहम ने उस स्थान को ‘द लॉर्ड विल प्रोवाइड’ कहा। और आज तक यह कहा जाता है, “यहोवा के पर्वत पर यह प्रदान किया जाएगा।” यहोवा के स्वर्गदूत ने दूसरी बार स्वर्ग से इब्राहीम को बुलाया और कहा, “मैं अपने आप से कहता हूं कि यहोवा ने यह घोषणा की है कि तुमने ऐसा किया है और अपने बेटे, अपने इकलौते बेटे को वापस नहीं लिया है, मैं तुम्हें निश्चित रूप से आशीर्वाद दूंगा और अपने वंशजों को बनाऊंगा आकाश में तारे और समुद्र के किनारे रेत के रूप में कई। आपके वंशज अपने दुश्मनों के शहरों पर कब्जा कर लेंगे, और आपकी संतानों के माध्यम से पृथ्वी पर सभी राष्ट्रों का आशीर्वाद होगा क्योंकि आपने मेरी आज्ञा मानी है ”
सूरत 5: 28-31 (मैदा) उत्पत्ति 4: 1-12
उन्हें आदम के दो बेटों की कहानी की सच्चाई बताइए। देखो! उन्होंने प्रत्येक को एक यज्ञ प्रस्तुत किया (अल्लाह से: यह एक से स्वीकार किया गया था, लेकिन दूसरे से नहीं। उत्तरार्द्ध ने कहा: “यकीन है कि मैं तुम्हें मार दूंगा।” “निश्चित रूप से,” पूर्व ने कहा, “(अल्लाह) ने स्वीकार नहीं किया जो लोग धर्मी हैं, उनका बलिदान ।२ ९। “यदि आप ने मेरे खिलाफ अपना हाथ बढ़ाया है, तो मुझे मार डालना, यह मेरे लिए नहीं है कि मैं तुम्हारे खिलाफ अपना हाथ बढ़ा दूं कि तुम को मार डालो: क्योंकि मैं अल्लाह से डरता हूं, संसार का पालन-पोषण करता हूं .30। “मेरे लिए, मैं तुम्हें अपने पाप के साथ-साथ अपने पाप के लिए आकर्षित करने का इरादा रखता हूं, क्योंकि तुम आग के साथियों में से हो, और यह गलत काम करने वालों का प्रतिफल है।” ) दूसरे की आत्मा ने उसे अपने भाई की हत्या के लिए प्रेरित किया: उसने उसकी हत्या कर दी, और (खुद) खोए हुए लोगों में से एक बन गया। फिर अल्लाह ने एक रावण भेजा, जिसने जमीन को खरोंच दिया, उसे दिखाने के लिए कि कैसे उसे शर्म की बात छिपानी पड़े। भाई। “हाय मैं हूँ!” उन्होंने कहा, “क्या मैं भी इस रैवेन के रूप में सक्षम नहीं था, और अपने भाई की शर्म को छिपाने के लिए?” फिर वह पछतावा से भर गया- आदम और उसकी पत्नी हब्बा के बीच शारीरिक सम्बन्ध हुए और हब्बा ने एक बच्चे को जन्म दिया। बच्चे का नाम कैन रखा गया। हब्बा ने कहा, “यहोवा की मदद से मैंने एक मनुष्य पाया है।”
इसके बाद हब्बा ने दूसरे बच्चे को जन्म दिया। यह बच्चा कैन का भाई हाबिल था। हाबिल गड़ेरिया बना। कैन किसान बना।
पहली हत्या
3-4 फसल के समय[a] कैन एक भेंट यहोवा के पास लाया। जो अन्न कैन ने अपनी ज़मीन में उपजाया था उसमें से थोड़ा अन्न वह लाया। परन्तु हाबिल अपने जानवरों के झुण्ड में से कुछ जानवर लाया। हाबिल अपनी सबसे अच्छी भेड़ का सबसे अच्छा हिस्सा लाया।[b]
यहोवा ने हाबिल तथा उसकी भेंट को स्वीकार किया। परन्तु यहोवा ने कैन तथा उसके द्वारा लाई भेंट को स्वीकार नहीं किया इस कारण कैन क्रोधित हो गया। वह बहुत व्याकुल और निराश[c] हो गया। यहोवा ने कैन से पूछा, “तुम क्रोधित क्यों हो? तुम्हारा चेहरा उतरा हुआ क्यों दिखाई पड़ता है? अगर तुम अच्छे काम करोगे तो तुम मेरी दृष्टि में ठीक रहोगे। तब मैं तुम्हें अपनाऊँगा। लेकिन अगर तुम बुरे काम करोगे तो वह पाप तुम्हारे जीवन में रहेगा। तुम्हारे पाप तुम्हें अपने वश में रखना चाहेंगे लेकिन तुम को अपने पाप को अपने बस में रखना होगा।”[d]
कैन ने अपने भाई हाबिल से कहा, “आओ हम मैदान में चलें।”[e] इसलिए कैन और हाबिल मैदान में गए। तब कैन ने अपने भाई पर हमला किया और उसे मार डाला।
बाद में यहोवा ने कैन से पूछा, “तुम्हारा भाई हाबिल कहाँ है?”
कैन ने जवाब दिया, “मैं नहीं जानता। क्या यह मेरा काम है कि मैं अपने भाई की निगरानी और देख भाल करूँ?”
10 तब यहोवा ने कहा, “तुमने यह क्या किया? तुम्हारे भाई का खून जमीन से बोल रहा है कि क्या हो गया है? 11 तुमने अपने भाई की हत्या की है, पृथ्वी तुम्हारे हाथों से उसका खून लेने के लिए खुल गयी है। इसलिए अब मैं उस जमीन को बुरा करने वाली चीजों को पैदा करूँगा। 12 बीते समय में तुमने फ़सलें लगाईं और वे अच्छी उगीं। लेकिन अब तुम फसल बोओगे और जमीन तुम्हारी फसल अच्छी होने में मदद नहीं करेगी। तुम्हें पृथ्वी पर घर नहीं मिलेगा। तुम जगह जगह भटकोगे।”

निर्गमन 12: 1-42

1 मूसा और हारून जब मिस्र में ही थे, यहोवा ने उनसे कहा, “यह महीना तुम लोगों के लिए वर्ष का पहला महीना होगा। इस्राएल की पूरी जाति के लिए यह आदेश है: इस महीने के दसवें दिन हर एक व्यक्ति अपने परिवार के लोगों के लिए एक मेमना अवश्य प्राप्त करेगा। यदि पूरा मेमना खा सकने वाले पर्याप्त आदमी अपने परिवारों में न हों तो उस भोजन में सम्मिलित होने के लिए अपने कुछ पड़ोसियों को निमन्त्रित करना चाहिए। खाने के लिए हर एक को पर्याप्त मेमना होना चाहिए। एक वर्ष का यह नर मेमना दोषरहित होना चाहिए। यह जानवर या तो एक भेड़ का बच्चा हो सकता है या बकरे का बच्चा। तुम्हें इस जानवर को महीने के चौदहवें दिन तक सावधानी के साथ रखना चाहिए। उस दिन इस्राएल जाति के सभी लोग सन्ध्या काल में इन जानवरों को मारेंगे। इन जानवरों का खून तुम्हें इकट्ठा करना चाहिए। कुछ खून उन घरों के दरवाजों की चौखटों के ऊपरी सिरे तथा दोनों पटों पर लगाना चाहिए जिन घरों में लोग यह भोजन करें।

“इस रात को तुम मेमने को अवश्य भून लेना और उसका माँस खा जाना। तुम्हें कड़वी जड़ी—बूटियों और अखमीरी रोटियाँ भी खानी चाहिए। तुम्हें मेमने को पानी में उवालना नहीं चाहिए। तुम्हें पूरे मेमने को आग पर भूनना चाहिए। इस दशा में भी मेमने का सिर, उसके पैर तथा उसका भीतरी भाग ठीक बना रहना चाहिए। 10 उसी रात को तुम्हें सारा माँस अवश्य खा लेना चाहिए। यदि थोड़ा माँस सबेरे तक बच जाये तो उसे आग में अवश्य ही जला देना चाहिए।

11 “जब तुम भोजन करो तो ऐसे वस्त्रों को पहनो जैसे तुम लोग यात्रा पर जा रहे हो तुम लोगों के लबादे तुम्हारी पेटियों में कसे होने चाहिए। तुम लोग अपने जूते पहने रहना और अपनी यात्रा की छड़ी को अपने हाथों में रखना। तुम लोगों को शीघ्रता से भोजन कर लेना चाहिए। क्यों? क्योंकि यह यहोवा का फसह है वह समय जब यहोवा ने अपने लोगों की रक्षा की और उन्हें शीघ्रता से मिस्र के बाहर ले गया।

12 “आज रात मैं मिस्र से होकर गुजरूँगा और मिस्र में प्रत्येक पहलौठे पुत्र को मार डालूँगा। मैं सभी पहलौठे जानवरों और मनुष्यों को मार डालूँगा। मैं मिस्र के सभी देवताओं को दण्ड दूँगा और दिखा दूँगा कि मैं यहोवा हूँ। 13 किन्तु तुम लोगों के घरों पर लगा हुआ खून एक विशेष चिन्ह होगा। जब मैं खून देखूँगा, तो तुम लोगों के घरों को छोड़ता हुआ गुजर जाऊँगा।[a] मैं मिस्र के लोगों के लिए हानिकारक चीज़ें उत्पन्न करूँगा। किन्तु उन बुरी बीमारियों में से कोई भी तुम लोगों को हानि नहीं पहुँचाएगी।

14 “सो तुम लोग आज की इस रात को सदा याद रखोगे, तुम लोगों के लिए यह एक विशेष पवित्र पर्व होगा। तुम्हारे वंशज सदा इस पवित्र पर्व को यहोवा की भक्ति किया करेंगे। 15 इस पवित्र पर्व पर तुम लोग अख़मीरी आटे की रोटियाँ सात दिनों तक खाओगे। इस पवित्र पर्व के आने पर तुम लोग पहले दिन अपने घरों से सारे ख़मीर को निकाल बाहर करोगे। इस पवित्र पर्व के पूरे सात दिन तक किसी को भी ख़मीर नहीं खाना चाहिए। यदि कोई व्यक्ति ख़मीर खाए तो उसे तुम इस्राएल के अन्य व्यक्तियों से निश्चय ही अलग कर देना। 16 इस पवित्र पर्व के प्रथम और अन्तिम दिनों में धर्म सभा होगी। इन दिनों तुम्हें कोई भी काम नहीं करना होगा। इन दिनों केवल एक काम जो किया जा सकता, वह है अपना भोजन तैयार करना। 17 तुम लोगों को अवश्य अख़मीरी रोटी का पवित्र पर्व याद रखना होगा। क्यों? क्योंकि इस दिन ही मैंने तुम्हारे लोगों के सभी वर्गो को मिस्र से निकाला। अतः तुम लोगों के सभी वंशजों को यह दिन याद रखना ही होगा। यह नियम ऐसा है जो सदा रहेगा। 18 इसलिए प्रथम महीने निसन के चौदहवें दिन की सन्ध्या से तुम लोग अख़मीरी रोटी खाना आरम्भ करोगे। उसी महीने के इक्कीसवें दिन की सन्ध्या तक तुम ऐसी रोटी खाओगे। 19 सात दिन तक तुम लोगों के घरों में कोई ख़मीर नहीं होना चाहिए। कोई भी व्यक्ति चाहे वह इस्राएल का नागरिक हो या विदेशी, जो इस समय ख़मीर खाएगा अन्य इस्राएलियों से अवश्य अलग कर दिया जाएगा। 20 इस पवित्र पर्व में तुम लोगों को ख़मीर नहीं खाना चाहिए। तुम जहाँ भी रहो अख़मीरी रोटी ही खाना।”

21 इसलिए मूसा ने सभी बुजुर्गों (नेताओं) को एक स्थान पर बुलाया। मूसा ने उनसे कहा, “अपने परिवारों के लिए मेमने प्राप्त करो। फसह पर्व के लिए मेमने को मारो। 22 जूफा[b] के गुच्छों को लो और खून से भरे प्यालों में उन्हें डुबाओ। खून से चौखटों के दोनों पटों और सिरों को रंग दो। कोई भी व्यक्ति सवेरा होने से पहले अपना घर न छोड़े। 23 उस समय जब यहोवा पहलौठी सन्तानों को मारने के लिए मिस्र से होकर जाएगा तो वह चौखट के दोनों पटों और सिरों पर खून देखेगा, तब यहोवा उस घर की रक्षा करेगा। यहोवा नाश करने वाले को तुम्हारे घरों के भीतर आने और तुम लोगों को चोट नहीं पहुँचाने देगा। 24 तुम लोग इस आदेश को अवश्य याद रखना। यह नियम तुम लोगों तथा तुम लोगों के वंशजों के निमित्त सदा के लिए है। 25 तुम लोगों को यह कार्य तब भी याद रखना होगा जब तुम लोग उस देश में पहुँचोगे जो यहोवा तुम लोगों को देगा। 26 जब तुम लोगों के बच्चे तुम से पूछेंगे, ‘हम लोग यह त्योहार क्यों मनाते हैं?’ 27 तो तुम लोग कहोगे, ‘यह फसह पर्व यहोवा की भक्ति के लिए है। क्यों? क्योंकि जब हम लोग मिस्र में थे तब यहोवा इस्राएल के घरों से होकर गुजरा था। यहोवा ने मिस्रियों को मार डाला, किन्तु उसने हम लोगों के घरों में लोगों को बचाया।’”

इसलिए लोग अब यहोवा को झुककर प्रणाम करते हैं तथा उपासना करते हैं। 28 यहोवा ने यह आदेश मूसा और हारून को दिया था। इसलिए इस्राएल के लोगों ने वही किया जो यहोवा का आदेश था।

29 आधी रात को यहोवा ने मिस्र के सभी पहलौठे पुत्रों, फ़िरौन के पहलौठे पुत्र (जो मिस्र का शासक था) से लेकर बन्दीगृह में बैठे कैदी के पुत्र तक सभी को मार डाला। पहलौठे जानवर भी मर गए। 30 मिस्र में उस रात को हर घर में कोई न कोई मरा। फ़िरौन, उसके अधिकारी और मिस्र के सभी लोग ज़ोर से रोने चिल्लाने लगे।

इस्राएलियों द्वारा मिस्र को छोड़ना

31 इसलिए उस रात फ़िरौन ने मूसा और हारून को बुलाया। फ़िरौन ने उनसे कहा, “तैयार हो जाओ और हमारे लोगों को छोड़ कर चले जाओ। तुम और तुम्हारे लोग वैसा ही कर सकते हैं जैसा तुमने कहा है। जाओ और अपने यहोवा की उपासना करो। 32 और तुम लोग जैसा तुमने कहा है कि तुम चाहते हो, अपनी भेड़ें और मवेशी अपने साथ ले जा सकते हो, जाओ! और मुझे भी आशीष दो!” 33 मिस्र के लोगों ने भी उनसे शीघ्रता से जाने के लिए कहा। क्यों? क्योंकि उन्होंने कहा, “यदि तुम लोग नहीं जाते हो हम सभी मर जाएंगे।”

34 इस्राएल के लोगों के पास इतना समय न रहा कि वे अपनी रोटी में खमीर डालें। उन्होंने गुँदे आटे की परातों को अपने कपड़ों में लपेटा और अपने कंधों पर रख कर ले गए। 35 तब इस्राएल के लोगों ने वही किया जो मूसा ने करने को कहा। वे अपने मिस्री पड़ोसियों के पास गए और उनसे वस्त्र तथा चाँदी और सोने की बनी चीज़ें माँगी। 36 यहोवा ने मिस्रियों को इस्राएल के लोगों के प्रति दयालु बना दिया। इसलिए उन्होंने अपना धन इस्राएल के लोगों को दे दिया।

37 इस्राएल के लोग रमसिज से सुक्काम गए। वे लगभग छ: लाख[c] पुरुष थे। इसमें बच्चे सम्मिलित नहीं हैं। 38 उनके साथ अनेक भेड़ें, गाय—बकरियाँ और अन्य पशुधन था। उनके साथ ऐसे अन्य लोग भी यात्रा कर रहे थे। जो इस्राएली नहीं थे, किन्तु वे इस्राएल के लोगों के साथ गए। 39 किन्तु लोगों को रोटी में खमीर डालने का समय न मिला। और उन्होंने अपनी यात्रा के लिए कोई विशेष भोजन नहीं बनाया। इसलिए उन्हें बिना खमीर के ही रोटियाँ बनानी पड़ीं।

40 इस्राएल के लोग मिस्र[d] में चार सौ तीस वर्ष तक रहे। 41 चार सौ तीस वर्ष बाद, ठीक उसी दिन, यहोवा की सारी सेना[e] ने मिस्र से प्रस्थान किया। 42 वह विशेष रात है जब लोग याद करते हैं कि यहोवा ने क्या किया। इस्राएल के सभी लोग उस रात को सदा याद रखेंगे।