हम ने नबी हज़रत ईसा अल मसीह के आख़री हफ़्ते की जांच की थी । इंजील शरीफ़ बयान करती है कि उन्हें छट्टे दिन – मुबारक जुम्मे को सलीब दी गई थी और उसके तीसरे दिन जो इतवार का दिन था उन्हें जिलाया गया था । इन वाक़ियात को तौरात ज़बूर और नबियों की किताबों इन दोनों में देखा गया । मगर यह सब क्यूँ हुआ और मौजूदा दिनों में आपके और मेरे लिए क्या मायने रखते हैं ? यहाँ हम समझना चाहते हैं कि नबी हज़रत ईसा अल मसीह के जरिये से क्या चीज़ पेश की गई और हम किस तरह फज़ल और बख़्शिश (गुनाहों की मुआफ़ी हासिल कर सकते हैं । यह हमको समझने में हमारी मदद करेगा जिस तरह सूरा अस – साफ़्फ़ात (सूरा 37), सूरह अल- फ़ातिहा (सूरा 1—इफ़्तिताह) जबकि इसमें अल्लाह से ‘सही रासता दिखाने की मांग की गई है’,इसके अलावा यह भी समझना है कि ‘मुस्लिम’ के मायने हैं ‘वह जो सुपुर्द करता है’, और मज़हबी रस्म ओ रिवाज के पाबंद होना जैसे वज़ू करना , ज़कात देना , और हलाल का इस्तेमाल करना वगैरा यह सब अच्छा है मगर रोज़े इंसाफ के लिए नाकाफ़ी इरादे हैं ।
बुरी ख़बर – अल्लाह के साथ हमारे रिश्ते की बाबत अँबिया क्या कहते हैं ?
तौरात हमें सिखाती है कि जब अल्लाह ने बनी इंसान को बनाया तो उसने
27 तब परमेश्वर ने मनुष्य को अपने स्वरूप के अनुसार उत्पन्न किया, अपने ही स्वरूप के अनुसार परमेश्वर ने उसको उत्पन्न किया, नर और नारी करके उसने मनुष्यों की सृष्टि की।
पैदाइश1:27
सूरत (शबीह) का मतलब एक जिस्मानी एहसास नहीं है बल्कि वह इसलिए बनाए गए थे कि ख़ुदा को इस बतोर मुनअकिस करें कि हम जज़्बाती तोर से , दमागी तोर से , मुआशिरती तोर से और रूहानी तोर से हरकत पिज़ीर होजाएँ । हमको उसके रिश्ते के साथ बने रहने के लिए बनाया गया है । इस रिश्ते को हम नीचे दी गई तस्वीर के ज़रिये देख सकते हैं । ख़ालिक़ को एक ना महदूद हाकिम बतोर सब से ऊपर रखा गया है जबकि आदमियों और औरतों को तस्वीर के नीचे रखा गया है जबकि हम सब महदूद मख़लूक़ हैं । रिश्ते को तीर के निशाने से जोड़ते हुए दिखाया गया है ।
अल्लाह अपनी सीरत में पूरी तरह से कामिल है । वह पाक है । क्यूंकि यह ज़बूर कहती है कि ईसा …
4 क्योंकि तू ऐसा ईश्वर नहीं जो दुष्टता से प्रसन्न हो; बुराई तेरे साथ नहीं रह सकती।
ज़बूर5:4-5
5 घमंडी तेरे सम्मुख खड़े होने न पांएगे; तुझे सब अनर्थकारियों से घृणा है।
आदम ने सिर्फ़ एक नाफ़रमानी का गुनाह किया था – एक ही गुनाह – और ख़ुदा की पाकीज़गी तक़ाज़ा करती है कि उसको इनसाफ़ करने की ज़रूरत है । तौरात शरीफ़ और क़ुरान शरीफ़ बयान करते हैं कि अल्लाह ने उसको फ़ानी बनाया और उसको अपनी नज़रों (हुज़ूरी) से दूर कर दिया । यही हालत हम पर भी नफ़िज़ होती है । किसी भी तोर बतोर जब हम गुनाह करते या नफ़रमानी करते हैं तो हम अल्लाह की बे इज़्ज़ती करते हैं इसलिए कि हम उस तरह से या उस सूरत में होकर या उसके मुताबिक़ नहीं चलते जिस सूरत में हम बनाए गए थे । हमारा रिश्ता टूटा हुआ है । जिसका अंजाम एक चट्टान की दीवार की तरह मज़बूत रुकावट है जो हमारे और ख़ालिक़ के बीच हायल होकर खड़ी हो जाती है ।
गुनाह की रुकावट को मज़्हबी नेक कामों से छेदना
हम में से बहुत हैं जो इस रुकावट को जो हमारे और अल्लाह के बीच है उसे मज़्हबी कामों के जरिये दूर करने की कोशिश करते हैं या वह काम जिससे काफ़ी नेकियाँ कमा सकें ताकि उस रुकावट को तोड़ डालें । दुआएं , रोज़े , हज्ज , नमाज़, ज़कात , ख़ैरात और अतिय्या वग़ैरा देना यह सारी चीज़ें नेकी कमाने का ज़रीया बतोर हैं ताकि रुकावट को दूर करें जिस तरह अगली तस्वीर में मिसाल पेश की गई है । उम्मीद यह है कि मज़्हबी नेकियाँ हमारे कुछ गुनाहों को मिटा देंगी । अगर हमारे कई एक आमाल के जरिये काफ़ी नेकियाँ कमाई जा सकती तो हम अपने तमाम गुनाहों को
म इस रुकावट को नेक काम करने के ज़रिये दूर करने की कोशिश करते हैं ताकि अल्लाह के हुज़ूर सवाब हासिल करें ।
मगर गुनाहों को खारिज करने के लिए हमको कितने सवाब या नेकियों की ज़रूरत पड़ेगी ? हमारा कितना भरोसा है कि हमारे नेक आमाल हमारे गुनाह खारिज करने के लिए और रुकावट को छेदने के लिए काफ़ी होंगे जो हमारे और हमारे ख़ालिक़ के बीच खड़ी है ? क्या हम जानते हैं कि अच्छे इरादों के लिए हमारी कोशिशें काफ़ी होंगी ? हमारे पास कोई पक्का भरोसा नहीं है इस लिए हम ज़ियादा से ज़ियादा जितना हम से बनता है नेक कामों को अंजाम देने की कोशिश करते हैं और यह उम्मीद करते हैं कि इनसाफ़ के दिन (रोज़े क़यामत) में जवाब देने के लिए काफ़ी है ।
नेक आमाल के साथ हमको सवाब भी हासिल करने कि ज़रूरत है जो कि नेक इरादों के लिए कोशिश है , हम में से कई लोग साफ़ सुथरे रहने के लिए मेहनत करते हैं । हम आज़ादी से नमाज़ अदा करने से पहले वज़ू करते हैं । हम नापाक लोगों से , चीज़ों से और खानों से दूर रहने की कोशिश करते हैं ताकि वह हमें नापाक न कर दें । मगर नबी यसायह एनई हमपर ज़ाहिर किया कि :
6 हम तो सब के सब अशुद्ध मनुष्य के से हैं, और हमारे धर्म के काम सब के सब मैले चिथड़ों के समान हैं। हम सब के सब पत्ते की नाईं मुर्झा जाते हैं, और हमारे अधर्म के कामों ने हमें वायु की नाईं उड़ा दिया है।
यसायाह 64:6
नबी हम से कहते हैं यहाँ तक कि अगर हम उस हर एक चीज़ को रोकते हैं जो हमें ना पाक करती है , हमारे गुनाह हमारे ‘रासतबाज़ी के कामों’ को साफ़ करने के चक्कर में ऐसा बना देते हैं जैसे मैले गंदे छितड़े । यही तो बुरी ख़बर है । मगर यह और बदतर होता जाता है ।
बदतर ख़बर : गुनाह और मौत की ताक़त
नबी हज़रत मूसा ने शरीअत में साफ़ तोर से एक मेयार मुक़र्रर किया था कि बनी इसराईल में से हर एक को मुकम्मल फ़रमानबरदारी की ज़रूरत थी । शरीयत कभी यह नहीं कहती कि “अहकाम में से फ़लां हुक्म को सख्ती से पाबंदी करो” नहीं ऐसा नहीं है बल्कि दरअसल शरीयत बार बार यह कहती है कि यक़ीनी तोर से गुनाह के कामों की क़ीमत मौत थी । इसे हम ने नबी हज़रत नूह के ज़माने में देखा और यहाँ तक कि नबी हज़रत लूत कि बीवी की बाबत देखा कि गुनाह का अंजाम मौत साबित हुआ ।
इंजील शरीफ़ इस सच्चाई को इस तरह से ख़ुलासा करती है:
क्यूंकि गुनाह की मज़दूरी मौत है …
रोमियों6:23
लफ़ज़ी तोर से “मौत” के मायने हैं ‘जुदाई’ । जब हमारी जान हमारे जिस्म से अलग हो जाती है हम जिस्मानी तोर से मर जाते हैं । इसी तरीक़े से यहाँ तक कि अभी हम रूहानी तोर से ख़ुदा से जुदा हैं और मुरदा हैं और उसकी नज़रों में न पाक हैं ।
यह हमारी उम्मीद की परेशानी को ज़ाहिर करता है लियाक़त (नेकी) को कमाने में ताकि गुनाह की क़ीमत अदा कर सके । परेशानी यह है कि हमारी सख्त कोशिशें, लियाक़तें, अच्छे इरादे, और नेक आमाल हालांकि बुरी नहीं हैं मगर यह सब न काफ़ी हैं इस लिए कि क़ीमत कि ज़रूरत होती है क्यूंकि गुनाह की (‘मज़दूरी’) ‘मौत’ है । सिर्फ मौत ही इस दीवार को छेद सकती है क्यूंकि यह ख़ुदा के इंसाफ़ के तक़ाज़े को पूरा करती है । नेकियाँ कमाने की हमारी कोशिशें वैसी ही है जैसे कैंसर का इलाज करने की कोशिश करना जिस का नतीजा (आखिरकार मौत है) । हलाल की चीज़ें खाना बुरा नहीं है बल्कि यह अच्छा है और हर एक मोमिन को हलाल ही खाना चाहिए – मगर यह केनसर का इलाज नहीं कर सकता । केनसर के लिए आपको फ़रक़ तरीक़े से इलाज करने की ज़रूरत है क्यूंकि केन्सर के ख़ुलये मौत पैदा करते हैं ।
सो यहाँ तक कि हमारी कोशिशें और अच्छे इरादे मज़्हबी लियाक़त पैदा करने के लिए हम सच मुछ में मरे हुए हैं और अपने ख़ालिक़ की नज़र में मुरदा लाश की तरह हैं ।
नबी हज़रत इब्राहीम का सही रास्ता दिखाना
नबी हज़रत इब्राहीम के साथ यह बात फ़रक़ थी । उसके लिए ‘रास्तबाज़ी गिना गया’ उसके नेक कामों के सबब से नहीं बल्कि इस लिए कि उसने एतक़ाद किया और ख़ुदा के वायदे पर भरोसा किया । उसने ख़ुदा की क़ीमत की ज़रूरत के पूरे होने पर भरोसा किया बजाए इसके कि वह इसे खुद कमाए । हम ने उसकी बड़ी क़ुरबानी में देखा कि मौत (जो गुनाह का ख़मयज़ा था) उसे चुका दिया गया था, मगर उसके बेटे के ज़रिये से नहीं बल्कि उस मेंढ़े के ज़रिये जो ख़ुदा के ज़रिये ज़रूरत को पूरा किया गया था ।
क़ुरान शरीफ़ इस की बाबत सूरा अस – साफ़्फ़ात (सूरा 37 – वह जिन्हों ने दर्जा बंदी क़ाइम की ) जहां वह कहता है :
और हमने इस्माईल का फ़िदया एक ज़िबाहे अज़ीम (बड़ी कुर्बानी) क़रार दियाऔर हमने उनका अच्छा चर्चा बाद को आने वालों में बाक़ी रखा हैकि (सारी खुदायी में) इबराहीम पर सलाम (ही सलाम) हैं
सूरा अस साफ़्फ़ात 37: 107-109
अल्लाह ने खमयाज़ा अदा किया (क़ीमत चुकाया ) और इबराहीम ने बरकत ,फज़ल ,रहम और मुआफ़ी हासिल की जिसमें ‘तसल्ली’ भी शामिल है ।
खुशख़बरी : हज़रत ईसा अल मसीह के काम हमारी ख़ातिर
नबी का नमूना यहाँ पर हमें सही रास्ता दिखाने के लिए जिस तरह सूरा अल फ़ातिहा (सूरा 1 – इफ़्तिताही)
रोज़े जज़ा का मालिक है।हम तेरी ही इबादत करते हैं, और तुझ ही से मदद मांगते है।हमें सीधा रास्ता दिखा।उन लोगों का रास्ता जिन पर तूने इनाम फ़रमाया, जो माअतूब नहीं हुए, जो भटके हुए नहीं है।
सूरा 1 – इफ़्तिताही 1:4-7
इंजील शरीफ़ हमें समझाती है कि यह एक मिसाल थी हमें समझाने के लिए कि किस तरह अल्लाह गुनाह की क़ीमत चुकाएगा और मौत और नापाकी के लिए सादे तौर से शिफ़ा का इंतज़ाम करेगा मगर ज़बरदस्त तरीक़े से ।
23 क्योंकि पाप की मजदूरी तो मृत्यु है, परन्तु परमेश्वर का वरदान हमारे प्रभु मसीह यीशु में अनन्त जीवन है॥
रोमियों6:23
अबतक यह सारी बातें ‘बुरी ख़बरें’ थीं । मगर ‘इंजील’ के लफ़ज़ी मायनी हैं ‘ख़ुश ख़बरी’ और यह ऐलान करते हुए कि हज़रत ईसा की मौत उस दीवार (रुकावट) को छेदने के लिए काफ़ी है जो हमारे और ख़ुदा के बीच है, और हम देख सकते हैं कि यह क्यूँ ख़ुश ख़बरी है जैसे दिखाया गया है ।
नबी हज़रत ईसा अल मसीह क़ुरबान हुए थे और फिर पहले फल बतोर मुरदों में से जी उठे थे सो अब वह हमारे लिए नई जिंदगी पेश करते हैं । अब हमें आगे को गुनाह की मौत के क़ैदी बने रहने की ज़रूरत नहीं है ।
उनकी क़ुरबानी और क़यामत में ईसा अल मसीह दरवाज़ा बन गए कि गुनाह की रुकावट का रास्ता बतोर जो कि हमको ख़ुदा से जुदा करता है । इसी लिये ईसा नबी ने कहा :
9 द्वार मैं हूं: यदि कोई मेरे द्वारा भीतर प्रवेश करे तो उद्धार पाएगा और भीतर बाहर आया जाया करेगा और चारा पाएगा।
यूहनना10:9-10
10 चोर किसी और काम के लिये नहीं परन्तु केवल चोरी करने और घात करने और नष्ट करने को आता है। मैं इसलिये आया कि वे जीवन पाएं, और बहुतायत से पाएं।
इस दरवाज़े के सबब से अब हम दोबारा से रिश्ते को हासिल कर सकते है जो हमारे ख़ालिक़ के साथ हज़रत आदम के गुनाह करने से पहले मौजूद थी और गुनाह के बाद एक रुकावट बन गई थी मगर अब यक़ीन है कि ख़ुदा का रहम ओ फज़ल गुनाहों की मूआफ़ी हमें हासिल है ।
जिस तरह इंजील शरीफ़ ऐलान करती है :
5 क्योंकि परमेश्वर एक ही है: और परमेश्वर और मनुष्यों के बीच में भी एक ही बिचवई है, अर्थात मसीह यीशु जो मनुष्य है।
1तीमुथियुस2:5-6
6 जिस ने अपने आप को सब के छुटकारे के दाम में दे दिया; ताकि उस की गवाही ठीक समयों पर दी जाए।
ख़ुदा का इनाम आप के लिये
नबी हज़रत ईसा अल मसीह ने ‘तमाम लोगों’ के लिये खुद को देदिया । सो यह आपको और साथ और साथ ही साथ मुझको भी शामिल करता है । उसकी मौत और क़यामत के वसीले से उसने एक ‘दरमियानी’ की क़ीमत अदा की और हमारे लिये जिंदगी भी । यह जिंदगी किस तरह दी जाती है ?
23 क्योंकि पाप की मजदूरी तो मृत्यु है, परन्तु परमेश्वर का वरदान हमारे प्रभु मसीह यीशु में अनन्त जीवन है॥
रोमियों6:23
ग़ौर करें कि यह हमको कैसे दिया जाता है । यह हमको एक इनाम बतोर दिया जाता है । कोई बात नहीं कि यह इनाम क्या है, अगर यह हक़ीक़त में इनाम है जिसके लिए आप ने कोई मेहनत नहीं की और जिसे आप ने नेक कामों से नहीं कमाया था । अगर आपने उस इनाम को नेक कामों से कमाया तो वह इनाम, इनाम नहीं रह जाता – बल्कि वह एक मज़दूरी कहलाता ! इसी तरीक़े से नेकी (क़ाबिलियत) या ईसा अल मसीह की क़ुरबानी को भी आप नहीं कमा सकते । यह आप को इनाम बतोर दिया जाता है । क्या यह आसान नहीं है ?
और यह इनाम क्या है ? यह इनाम ‘हमेशा की ज़िन्दगी’ है । इसका मतलब यह है कि गुनाह जो आप के लिए और मेरे लिए मौत लेकर आया था उसकी क़ीमत दी जा चुकी है । इतनी महब्बत ख़ुदा हमसे करता है । क्या यह ज़बरदस्त नहीं है ?
सो किस तरह आप और मैं हमेशा की ज़िन्दगी हासिल करते हैं ? फिर से इनामों की बाबत सोचिये । अगर कोई आप को इनाम देना चाहे तो आपको उसे ‘हासिल करना’ ही होगा । जब भी कभी इनाम दिया जाता है तो सिर्फ दो तबादिले होते हैं । या तो (“नहीं शुकरिया”) बोलकर इन्कार कर दिया जाए या यह कहकर क़बूल कर लिया जाता है कि (“आप के इनाम के लिए शुक्रिया, मैं इसे ले लेता हूँ”) । तो फिर इस इनाम को भी हासिल कर लेनी चाहिए । इस बात को सिर्फ़ दमाग़ एतक़ाद कर लेना, मुताला करना या समझ लेना काफ़ी नहीं है । जो इनाम आप को दिया जाता है उससे फ़ाइदा लेने के लिए, आप को उसे ‘हासिल करना’ ज़रूरी है ।
12 परन्तु जितनों ने उसे ग्रहण किया, उस ने उन्हें परमेश्वर के सन्तान होने का अधिकार दिया, अर्थात उन्हें जो उसके नाम पर विश्वास रखते हैं।
यूहनना1:12-13
13 वे न तो लोहू से, न शरीर की इच्छा से, न मनुष्य की इच्छा से, परन्तु परमेश्वर से उत्पन्न हुए हैं।
दरअसल इंजील शरीफ़ ख़ुदा की बाबत कहती है कि :
ख़ुदा हमारा नजात दहिन्दा है , जो चाहता है कि सब आदमी नजात पाएं …
1तीमुथियुस 2:3-4
वह एक नजात दहिन्दा है और उस की ख़्वाहिश है कि ‘सब लोग’ उसके इनाम को हासिल करें और गुनाह और मौत से बच जाएँ । अगर यह उसका इरादा है तो फिर, उसके इनाम को हासिल करें और सादे तरीक़े से उसके इरादे के तहत खुदको सोंप दें – ‘मुस्लिम’ लफ़्ज़ के मायने ही है – वह जिस ने सौंप दिया है ।
इस इनाम को हम कैसे हासिल करते हैं ? इंजील शरीफ़ कहती है कि:
12 यहूदियों और यूनानियों में कुछ भेद नहीं, इसलिये कि वह सब का प्रभु है; और अपने सब नाम लेने वालों के लिये उदार है।
रोमियों10:12
ग़ौर करें कि यह वायदा ‘हरेक’ के लिए है । जबकि वह मुरदों में से ज़िंदा हो चुके ईसा अल मसीह यहाँ तक कि अभी भी ज़िंदा हैं । अगर आप उन्हे पुकारेंगे तो वह सुनेंगे और अपना इनाम आप को देंगे । आप उन्हें पुकारें और उनसे पूछें । शायद आपने इस तरह इससे पहले कभी न किया हो । ज़ेल में एक हिदायत है जो आप की मदद कर सकती है । यह कोई जादूई तरन्नुम नहीं है । यह कोई ख़ास अलफ़ाज़ नहीं हैं जो ताक़त देती हो । यह हज़रत इब्रहीम का भरोसा जैसा है जो हम ईसा अल मसीह पर रखते हैं ताकि वह हमको यह इनाम दे । जैसे ही हम उनपर भरोसा करेंगे वह हमारी सुनेंगे और जवाब देंगे । इंजील शरीफ़ बहुत ज़ोरावर है, और इसके साथ ही वह बहुत आसान भी है । अगर यह आप के लिए मददगार साबित होता है तो इस हिदायत के पीछे चलने या इसे दोहराने के लिए आज़ाद है ।
पियारे नबी और और ख़ुदावंद ईसा अल मसीह । मैं जानता हूँ मेरे अपने गुनाहों के साथ अल्लाह जो मेरा ख़ालिक़ है उससे जुदा हो गया हूँ । हालांकि मेरे कोशिश करने पर भी इस रुकावट को दूर नहीं कर पाता हूँ । मगर मैं जानता हूँ कि आपकी मौत एक क़ुरबानी थी जिस से कि मेरे तमाम गुनाह धोने की कुवत रखता है और मुझे साफ़ कर सकता है । मैं जानता हूँ कि आप की क़ुरबानी के बाद आप मुरदों में से ज़िंदा हो गए । मैं एतक़ाद रखता हूँ कि आपकी क़ुरबानी काफ़ी थी इसलिए मैं खुद को आपके सुपुर्द करता हूँ । मैं आप से इल्तिजा करता हूँ कि बराए मेहरबानी मुझे मेरे गुनाहों से धोएँ और मेरवे ख़ालिक़ से मेरी मसालीहत कराएं ताकि मुझे हमेशा की जिंदगी हासिल हो । ईसा अल मसीह आप का शुकरिया यह सब कुछ मेरे लिए करने के लिए यहाँ तक कि अभी भी मेरी जिंदगी में रहनुमाई करने के लिए ताकि मैं आपको अपना ख़ुदावंद मानकर आपके पीछे चल सकूँ ।
ख़ुदा के नाम में जो निहायत रहम करने वाला है ।