हाल ही में मैं एक मस्जिद में इमाम साहिब की तालीम को सुन रहा था I उन्हों ने जो कुछ कहा वह बिलकुल गलत था I जो उन्हों ने कहा उस को मैं इस से पहले अपने अच्छे दोस्तों से कई दफ़ा सुन चुका था I शायद आप ने भी इसे सुना होगा और आपके दमाग़ में सवालात उठे होंगे I सो आइए हम इस पर गौर करें I
इमाम ने कहा कि बाइबिल (अल-किताब) के मुख्तलिफ़ तर्जुमेंपाए जाते हैं I आप इसे अंग्रेज़ी ज़ुबान में हासिल कर सकते हैं और (उन्हों ने इन के नाम दिए) जैसे द किंग जेम्स का तर्जुमा , द न्यू इन्टरनेशनल तर्जुमा , द न्यू अमेरिकन स्टैण्डर्ड तर्जुमा , द न्यू इंगलिश तरजुमा वगैरा वगैरा I तब इमाम साहिब ने बताया कि जबकि यह सारे मुख्तलिफ़ तरजुमे हैं तो यह ज़ाहिर है कि बाइबिल (अल किताब) बिगड़ चुकी है या फिर इतना है कि हम नहीं जानते कि कौन सा ‘सही’ है I जी हाँ हम जानते हैं कि मुख्तलिफ तर्जुमे हैं I मगर इस का बाइबिल के बिगाड़ से कोई लेना देना नहीं है या फिर यह कि सच मुच फ़रक़ फ़रक़बाइबिलें हैं I यह सिर्फ़ ग़लत फ़हमी है , दर असल सिर्फ़ एक बाइबिल/अल किताब है I
जब हम मिसाल के तोर पर द न्यू इन्टरनेशनल तर्जुमे की बात करते हैं तो हम असल यूनानी (इंजील) और इब्रानी (तौरेत ज़बूर) से अंग्रेज़ी में एक तर्जुमे की बात करते हैं Iद अमेरिकन स्टैंडर्ड तर्जुमा अंग्रेजी का एक दूसरा तर्जुमा है मगर वह यूनानी और इबरानी मतन से फ़रक़ नहीं है I
यही हालत कुरान शरीफ़ की भी नज़र आती है I मैं आम तोर पर युसूफ अली के तर्जुमे का इस्तेमाल करता हूँ मगर कभी कभी पिकथाल का तर्जुमा भी इस्तेमाल करता हूँ I पिकथाल उसी अरबी कुरान से तर्जुमा करते हैं जिस से यूसुफ़ अली करते हैं I मगर वह अपने तर्जुमे में जिन अंग्रेजी लफ़्ज़ों का चुनाव करते हैं वह दोनों एक जसे नहीं होते I इस तरह से वह फ़रक़ तरजुमे कहलाते हैं I मगर किसी ने भी न तो एक मसीही , एक यहूदी ,या यहाँ तक कि एक काफ़िर भी नहीं कह रहा है अंग्रेजी के कुरान के दो फ़रक तर्जुमे हैं यानि (एक पिकथाल का और दूसरा यूसुफ़ अली का) I क्या यह फ़रक़ फ़रक़ क़ुरान है या कुरान बिगड़ गया है ? इसी तरीक़े से यहां यूनानी मतन की इंजील है (इसे नक्शे में देखें) और वहां इब्रानी मतन तौरात और ज़बूर है (इसे नक्शे में देखें) I मगर बहुत से लोग इन ज़बानों को नहीं पढ़ सकते I और आप यह भी देहें कि मुख्तलिफ़ अंग्रेजी तर्जुमे दस्तियाब हैं (या फिर दीगर ज़ुबानों में भी)I पर यह सिर्फ़ इसलिए है कि लोगों की अपनी ज़ुबान में बाइबिल के पैग़ाम को समझा जा सके I ‘तर्जुमे’ तो महज़ फ़रक़ फ़रक़ ज़बानों का तबादला है ताकि पैग़ाम को बेहतर तरीक़े समझा जा सके I
मगर तर्जुमों में जो गलतियां शामिल हैं उस का क्या किया जा सकता है ? क्या यह हक़ीक़त कि मुख्तलिफ़ तर्जुमे बताते हैं कि बिलकुल सही तोर से तर्जुमा करना मुश्किल है जिसे असल मुसन्निफों ने लिखा था इस बतोर कि ज़ियादा तादाद में यूनानी ज़बान में रोमी किताबें लिखी गयीं जिस से यह मुमकिन हो गया कि सही और साफ़ तोर पर असली मुसंनिफों के सोच और लफ़्ज़ों का तर्जुमा करे I दर असल फ़रक़ फ़रक़ मौजूदा तरजुमे इसे बताते हैं I मिसाल बतोर यहां नए अहद्नामे की एक आयत है जो 1 तीमुथियुस 2:5 को जो असल यूनानी से लिखा गया है I
εις γαρ θεοςεις και μεσιτηςθεου και ανθρωπων ανθρωπος χριστοςιησους
1 Timothy 2:5
इस आयत के लिए यहाँ कुछ मशहूर (जाने माने) तर्जुमे हैं I
क्योंकि ईश्वर और मानव जाति के बीच एक ईश्वर और एक मध्यस्थ है, मनुष्य मसीह यीशु, नया अंतर्राष्ट्रीय संस्करण
1 तीमुथियुस 2:5 फ़रक़ फ़रक़ तरजुमों में
क्योंकि एक ईश्वर है, और एक ईश्वर और पुरुषों के बीच मध्यस्थ, जो मसीह यीशु है; किंग जेम्स संस्करण
क्योंकि एक ईश्वर है, और एक मध्यस्थ ईश्वर और पुरुषों के बीच में भी है, वह आदमी है ईसा मसीह, न्यू अमेरिकन स्टैंडर्ड वर्जन
जिस तरह आप अपने लिए देख सकते हैं कि वह अपने तर्जुमे में बहुत नज़दीक हैं – एक दो अलफ़ाज़ का फ़रक़ रखते हुए I मगर ज़ियदा अहमियत यह है कि हलके से फ़रक़ अलफ़ाज़ के इस्तेमाल के साथ हु बहु वही मायने रहते हैं I यह कि एक ही अल किताब बाइबिल है और इसलिए उसके तर्जुमे भी यकसां ही होंगे I “फ़रक़ फरक़” बाइबिलें नहीं हैं I जिसतरह मैं ने शुरू में लिखा था किसी शख्स का यह कहना बिलकुल गलत है कि मुख्तलिफ़ तर्जुमों के होने कि वजह से फ़रक़ फ़रक़ बाइबिलें पाई जाती हैं I
मैं हरेक से इल्तिजा करता हूँ कि अल किताब /बाइबिल के एक तर्जुमे का अपने मकामी ज़बान में पढ़ने के लिए चुनाव करेंI यह कोशिश आप के लिए सही साबित होगी I