इस से पहले की तहरीर में हम ने यरम्याह (अलैहिस्सलाम) के बयान में देखा था कि गुनाह दीगर चीजों के दरमियान है, हमारे प्यास की निशानी I हालांकि हम जानते हैं कि गुनाहगारी की चीज़ें गलत होती हैं और डबल्यूएच बहुत ज़ियादा शर्मिंदगी की तरफ़ ले जाती हैं I हमारी प्यास हमको अभी भी गुनाह की तरफ़ ले जाती है I नबी यरम्याह (अलैहिस्सलाम) इसराईली बादशाहों के आखरी जमाने में रहते थे I सिर्फ़ अल्लाह के इनसाफ़ से पहले ऐसे जमाने में जब बहुत ज़ियादा गुनाह मौजूद था
नबी यरम्याह के जमाने में (600) क़ब्ल मसीह में हज़रत मूसा की शरीअत के दिये जाने के लग भग एक हज़ार बाद जब बनी इसराईल क़िला बंदी से आज़ाद थे उनहों ने शरी अत की पाबंदी नहीं की थी I और इस तरह एक आम क़ौम बतोर इनसाफ़ किए जाने को थेI मज़हब ने अल्लाह और प्यासे लोग दोनों को एक ना उम्मीदी की झलक साबित कर दी थी I मगर यरम्याह (अलैहिस्सलाम)जो इनसाफ़ का पैगाम देने वाले थे उन के पास किसी की बाबत एक पैगाम था —मुस्तक़बिल में किसी दिन —-मगर वो क्या था ?
31 फिर यहोवा की यह भी वाणी है, सुन, ऐसे दिन आने वाले हैं जब मैं इस्राएल और यहूदा के घरानों से नई वाचा बान्धूंगा।
यरम्याह 31: 31-34
32 वह उस वाचा के समान न होगी जो मैं ने उनके पुरखाओं से उस समय बान्धी थी जब मैं उनका हाथ पकड़ कर उन्हें मिस्र देश से निकाल लाया, क्योंकि यद्यपि मैं उनका पति था, तौभी उन्होंने मेरी वह वाचा तोड़ डाली।
33 परन्तु जो वाचा मैं उन दिनों के बाद इस्राएल के घराने से बान्धूंगा, वह यह है: मैं अपनी व्यवस्था उनके मन में समवाऊंगा, और उसे उनके हृदय पर लिखूंगा; और मैं उनका परमेश्वर ठहरूंगा, और वे मेरी प्रजा ठहरेंगे, यहोवा की यह वाणी है।
34 और तब उन्हें फिर एक दूसरे से यह न कहना पड़ेगा कि यहोवा को जानो, क्योंकि, यहोवा की यह वाणी है कि छोटे से ले कर बड़े तक, सब के सब मेरा ज्ञान रखेंगे; क्योंकि मैं उनका अधर्म क्षमा करूंगा, और उनका पाप फिर स्मरण न करूंगा।
पहला मुआहदा यानि शरीअत जो नबी हज़रत मूसा (अलैहिस्सलाम) के जरिये दी गई थी वह एक नाकाम बटोर हो गई थी इस लिए नहीं कि शरीअत अच्छी नहीं थी I ऐसी बात नहीं I बल्कि मूसा की शरीअत (आज भी और अभी भी) बहुत अच्छी है I मगर मसला यह था कि इस शरीअत को सादे तोर से पथर के लोहों में लिखे गए थे I गुनाह की प्यास उन के उन के दिलों में होते हुए शरीअत की पाबंदी के ना काबिल हुए I मसला यह नहीं था कि शरीअत में क्या कुछ लिखा था मगर मसला यह था कि शरीअत कहाँ लिखी गई थी I उसका मक़ाम कौनसा था I वक़्त का तक़ाज़ा यह था कि शरीअत को लोगों के दिलों में लिखा जाना चाहिए था ताकि लोग उसके पीछे चलते I कहने का मतलब यह है कि शरीअत को लोगों के अंदर लिखा जाना था ताकि उस की पाबंदी के लिए उन के पास ताक़त हो I
मगर क्या शरीअत की पाबंदी से नाकाम हो जाना इस लिए था कि वह यहूदी थे ? बहुत से लोग कई एक सबब से उनकी नाकामी के लिए बहुत जल्द इल्ज़ाम लगाते हैं I मगर इस मुद्दे पर हमारे लिए यह बेहतर होगा कि पहले अपनी जांच करें I जबकि इंसाफ़ के दिन मुझे बल्कि हम में से हर एक को अल्लाह के सामने अपनी नाकामी का हिसाब देना होगा , और हमको दूसरे लोगों की बाबत कुछ भी कहने का मौक़ा नहीं दिया जाएगा I जब आप अपनी जिंदगी की छानबीन करते या उसका जायज़ा लेते हैं तो क्या आप महसूस करते हैं कि आप शरीअत की पाबंदी कर रहे हैं ?क्या वह आप के दिलों में लिखी हुई है जिस से आपको ताक़त मिले कि उस की पाबंदी करो जिसतरह कि शरीअत का तक़ाज़ा है I अगर आप महसूस करते हैं कि उस के मुताबिक़ पाबंदी नहीं कर रहे हैं तो आपको ईसा अल मसीह (अलैहिस्सलाम) की तालीम की रोशनी मे आकार खुद को जाँचने की ज़रूरत है I या फिर यह आप के लिए वैसे ही होगा जैसे हज़रत मूसा से दिनों से लेकर नबी यरम्याह के दिनों में बनी इसराईल के साथ हुआ था I शरीअत तो अच्छी है मगर वह सिर्फ पथर की लोहों मे महफूज थी I जिस की पाबंदी के लिए ताक़त अता किए बगैर थी I शरीअत की इस मेयार को याद रखें जो नबी हज़रत मूसा (अलैहिस्सलाम) की तरफ़ से था I इस की मेयार यह थी कि इस शरीअत को अक्सर या कभी कभी मानना काफी नहीं था बलिक इस शरीअत को पूरे तोर से या तमाम शरीअत को तमाम वक़्तों में मानना ज़रूरी था I और आज भी इसी तरीके से अमल पैरा होने की ज़रूरत है
अगर किसी तरह आप महसूस करते हैं कि आप शरीअत के मानने में कमज़ोर हैं , या अपने बुरे कामों से शर्मिंद हों महसूस करते हैं तो अल्लाह अपने फ़ज़ल मे होकर ऊपर दिये पैगाम के मुताबिक़ आप के लिए नए मुआहिदे का एक दूसरा वादा कर रखा है जो नबी यरम्याह (अलैहिस्सलाम) से लेकर आने वाले उस दिन के मुस्तकबिल तक है I यह मुआहिदा उस से फ़रक़ होगा क्यूंकि इस का जो तक़ाज़ा है कि लोगों के दिलों में लिखा जाएगा जिसे नया मुआहिदा कहा जाता है जो इसकी मेयार के मुताबिक़ जीने कि क़ाबिलियत अता करेगा I
मगर गौर करें कि ऐसा लगता है कि यह नया मुआ हिदा इसराईल के घराने के लिए है यानि यहूदियों के लिए I हमको इसे किस तरह से समझना चाहिए ? ऐसा लगता है कि यहूदी लोग किन्हीं औकात में बहुत ही बुरे या किन्हीं औक़ात में बहत अच्छे कहलाए जाते थे I यहाँ एक और ज़बूर का बड़ा नबी यसायाह जिसने मसीह के एक कुंवारी से पैदा होने की नबुवत की थी उसने एक दूसरी नबूवतजो यरम्याह की तरफ़ से है उस के साथ जोड़ती है I हालांकि उन दोनों के बीच 150 साल का फ़ासिला था (इसे आप ज़ेल के तारीख़ी वक़्त की लकीर में देख सकते हैं) I और इस तरह से वह एक दूसरे को नहीं जानते थे I वह दोनों पैगाम की टकमेल की खबर इस बतोर देते हैं कि यह अल्लाह की जानिब से उनका आगाज़ किया हुआ था I
नबी यसायाह भी आणि वाले खादिम की बात करते हुए मुस्तकबिल की तरफ़ देख रहा है I यहाँ जो उस ने नबुवत की वह ज़ेल की आयत में है I
5 और अब यहोवा जिसने मुझे जन्म ही से इसलिये रख कि मैं उसका दास हो कर याकूब को उसकी ओर फेर ले आऊं अर्थात इस्राएल को उसके पास इकट्ठा करूं, क्योंकि यहोवा की दृष्टि में मैं आदरयोग्य हूं और मेरा परमेश्वर मेरा बल है,
यसायाह 49: 5-6
6 उसी ने मुझ से यह भी कहा है, यह तो हलकी सी बात है कि तू याकूब के गोत्रों का उद्धार करने और इस्राएल के रक्षित लोगों को लौटा ले आने के लिये मेरा सेवक ठहरे; मैं तुझे अन्यजातियों के लिये ज्योति ठहराऊंगा कि मेरा उद्धार पृथ्वी की एक ओर से दूसरी ओर तक फैल जाए॥
दूसरे अल्फ़ाज़ में यह आने वाला ख़ादिम खुदा की नजात को यहूदियों से गैर क़ौम (गैर यहूदियों)की तरफ़ बढ़ाएगा ताकि खुदा की नजात ज़मीन की इंतहा तक पहुँच जाए I यह आने वाला ख़ादिम कौन था ? इस काम को वह कैसे करने जा रहा था ? और नबी यरम्याह की नबुवत नए मुआहिदे को पत थर की लोहों केई बदले दिल की तख़्ती पर लिखने की बाबत थी वह पूरी होने को थी ? हम ज़बूर की नबुवतों पर गौर करना जारी रखेंगे I