हज़रत इस्माईल की ज़िन्दगी में जो भी कुछ हुआ इस कि बाबत बहुत सारी ग़लत फ़हमियां हैं। तौरात को जो कि हज़रत मूसा (अलैहिस्सलाम) के ज़रिये हज़रत ईसा अलैहिस्सलाम से 3500 साल पहले लिखा गया थाउन के बारे में सही वाक़िया बताने में हमारी मदद करती है। अल्लाह ने इब्राहीम (अलैहिस्सलाम) कि वह उन को बरकत देगा और उनकी औलाद को समुन्दर के किनारे की रेत की तरह या आसमान के तारों की मानिंद कर देगा (यहाँ देखें)। हज़रत इब्राहीम ने आखिरकार अपनी दो बीवियों से दो बेटे हासिल किये थे। मगर उन दो बीवियों के दरमियान रक़ाबत के सबब से हाजरा और इस्माईल दोंनों को घर से बाहर होना पड़ा। यह रक़ाबत दो मरहलों से होकर गुज़रा। पहला मरहला था ह्ज़रत इस्माईल के पैदा होने के बाद का था और दूसरा मरहला हज़रत इस्साक़ के पैदा होने से पहले का था। यहां तौरात इस रक़ाबत की बाबत जो कहती है वह यह कि किसतरह अल्लाह ने हाजरा की हिफ़ाज़त की, उस पर ज़ाहिर होकर हज़रत इस्माईल को बरकत दी।
हैगर और इश्माएल – उत्पत्ति 16
सारै अब्राम की पत्नी थी। अब्राम और उसके कोई बच्चा नहीं था। सारै के पास एक मिस्र की दासी थी। उसका नाम हाजिरा था। 2 सारै ने अब्राम से कहा, “देखो, यहोवा ने मुझे कोई बच्चा नहीं दिया है। इसलिए मेरी दासी को रख लो। मैं इसके बच्चे को अपना बच्चा ही मान लूँगी।” अब्राम ने अपनी पत्नी का कहना मान लिया।3 कनान में अब्राम के दस वर्ष रहने के बाद यह बात हुई और सारै ने अपने पति अब्रहमको हजिरा को दे दिया (हाजिरा मिस्री दासी थी।)।
4 हाजिरा, अब्राम से गर्भवती हुई। जब हाजिरा ने यह देखा तो उसे बहुत गर्व हुआ और यह अनुभव करने लगी कि मैं अपनी मालकिन सारै से अच्छी हूँ। 5 लेकिन सारै ने अब्राम से कहा, “मेरी दासी अब मुझसे घृणा करती है और इसके लिए मैं तुमको दोषी मानती हूँ। मैंने उसको तुमको दिया। वह गर्भवती हुई और तब वह अनुभव करने लगी कि वह मुझसे अच्छी है। मैं चाहती हूँ कि यहोवा सही न्याय करे।”
6 लेकिन अब्राम ने सारै से कहा, “तुम हाजिरा की मालकिन हो। तुम उसके साथ जो चाहो कर सकती हो।” इसलिए सारै ने अपनी दासी को दाण्ड दिया और उसकी दासी भाग गई।
7 यहोवा के दूत ने मरुभूमि में पानी के सोते के पास दासी को पाया। यह सोता शूर जाने वाले रास्ते पर था। 8 दूत ने कहा, “हाजिरा, तुम सारै की दासी हो। तुम यहाँ क्यों हो? तुम कहाँ जा रही हो?”
हाजिरा ने कहा, “मैं अपनी मालकिन सारै के यहाँ से भाग रही हूँ।”
9 यहोवा के दूत ने उससे कहा, “तुम अपनी मालकिन के घर जाओ और उसकी बातें मानो।” 10 यहोवा के दूत ने उससे यह भी कहा, “तुमसे बहुत से लोग उत्पन्न होंगे। ये लो इतने हो जाएंगे कि गिने नहीं जा सकेंगे।”
11 दूत ने और भी कहा,“अभी तुम गर्भवती हो और तुम्हे एक पुत्र होगा। तुम उसका नाम इश्माएल रखना।क्योंकि यहोवा ने तुम्हारे कष्ट को सुना हैऔर वह तुम्हारी मदद करेगा।12 इश्माएल जंगली और आजाद होगा एक जंगली गधे की तरह।
वह सबके विरुद्ध होगा। वह एक स्थान से दूसरे स्थान को जाएगा।वह अपने भाइयों के पास अपना डेरा डालेगाकिन्तु वह उनके विरुद्ध होगा।”13 तब यहोवा ने हाजिरा से बातें कीं उसने परमेश्वर को जो उससे बातें कर रहा था, एक नए नाम से पुकारा। उसने कहा, “तुम वह ‘यहोवा हो जो मुझे देखता है।’” उसने उसे वह नाम इसलिए दिया क्योंकि उसने अपने—आप से कहा, “मैंने देखा है कि वह मेरे ऊपर नज़र रखता है।” 14 इसलिए उस कुएँ का नाम लहैरोई पड़ा। यह कुआँ कादेश तथा बेरेद के बीच में है।
15 हाजिरा ने अब्राम के पुत्र को जन्म दिया। अब्राम ने पुत्र का नाम इश्माएल रखा। 16 अब्राम उस समय छियासी वर्ष का था जब हाजिरा ने इश्माएल को जन्म दिया।
पैदाइश 16:1-16
हम देखते हैं कि जबकि हाजरा ने खुदावंद से कलाम किया था तो वह एक नाबिय्या साबित हुई। अल्लाह ने हाजरा से कहा कि उसका नाम इस्माईल रखना और उस से वायदा किया कि उसकी औलाद कसरत से होगी। इस तरह इस मुटभेड़ और अल्लाह् के वायदे के साथ वह अपनी बेगम (मालीकिन) के पास वापस गई और यह रक़ाबत दूर हुई।
रक़ाबत बढ़ती जाती है
मगर 14 साल बाद सारै से इसहाक़ पैदा होता है फिर से रकाबत शुरू हो जाती है। तौरात शरीफ़ समझाती है कि यह किस तरह वाक़े हुआ।
पैदाइश 21: 8-21
8 अब बच्चा इतना बड़ा हो गया कि माँ का दूध छोड़ वह ठोस भोजन खाना शुरू करे। जिस दिन उसका दूध छुड़वाया गया उस दिन इब्राहीम ने एक बहुत बड़ा भोज रखा। 9 सारा ने हाजिरा के पुत्र को खेलते हुए देखा। (बीते समय में मिस्री दासी हाजिरा ने एक पुत्र को जन्म दिया था। इब्राहीम उस पुत्र का भी पिता था।) 10 इसलिए सारा ने इब्राहीम से कहा, “उस दासी स्त्री तथा उसके पुत्र को यहाँ से भेज दो। जब हम लोग मरेंगे हम लोगों की सभी चीज़ें इसहाक को मिलेंगी। मैं नहीं चाहती कि उसका पुत्र इसहाक के साथ उन चीज़ों में हिस्सा ले।”
11 इन सभी बातों ने इब्राहीम को बहुत दुःखी कर दिया। वह अपने पुत्र इश्माएल के लिए दुःखी था। 12 किन्तु परमेश्वर ने इब्राहीम से कहा, “उस लड़के के बारे में दुःखी मत होओ। उस दासी स्त्री के बारे में भी दुःखी मत होओ। जो सारा चाहती है तुम वही करो। तुम्हारा वंश इसहाक के वंश से चलेगा। 13 लेकिन मैं तुम्हारी दासी के पुत्र को भी अशीर्वाद दूँगा। वह तुम्हारा पुत्र है इसलिए मैं उसके परिवार को भी एक बड़ा राष्ट्र बनाऊँगा।”
14 दूसरे दिन बहुत सवेरे इब्राहीम ने कुछ भोजन और पानी लिया। इब्राहीम ने यह चीज़ें हाजिरा को दें दी। हाजिरा ने वे चीज़ें लीं और बच्चे के साथ वहाँ से चली गई। हाजिरा ने वह स्थान छोड़ा और वह बेर्शेबा की मरुभूमि में भटकने लगी।
15 कुछ समय बाद हाजिरा का सारा पानी स्माप्त हो गया। पीने के लिए कुछ भी पानी न बचा। इसलिए हाजिरा ने अपने बच्चे को एक झाड़ी के नीचे रखा। 16 हाजिरा वहाँ से कुछ दूर गई। तब वह रुकी और बैठ गई। हाजिरा ने सोचा कि उसका पुत्र मर जाएगा क्योंकि वहाँ पानी नहीं था। वह उसे मरता हुआ देखना नहीं चाहती थी। वह वहाँ बैठ गई और रोने लगी।
17 परमेश्वर ने बच्चे का रोना सुना। स्वर्ग से एक दूत हाजिरा के पास आया। उसने पूछा, “हाजिरा, तुम्हें क्या कठिनाई है। परमेश्वर ने वहाँ बच्चे का रोना सुन लिया। 18 जाओ, और बच्चे को संभालो। उसका हाथ पकड़ लो और उसे साथ ले चलो। मैं उसे बहुत से लोगों का पिता बनाऊँगा।”
19 परमेश्वर ने हाजिरा की आँखे इस प्रकार खोलीं कि वह एक पानी का कुआँ देख सकी। इसलिए कुएँ पर हाजिरा गई और उसके थैले को पानी से भर लिया। तब उसने बच्चे को पीने के लिए पानी दिया।
20 बच्चा जब तक बड़ा न हुआ तब तक परमेश्वर उसके साथ रहा। इश्माएल मरुभूमि में रहा और एक शिकारी बन गया। उसने बहुत अच्छा तीर चलाना सीख लिया। 21 उसकी माँ मिस्र से उसके लिए दुल्हन लाई। वे पारान मरुभूमि में रहने लगे।
पैदाइश 21: 8-21
हम देखते हैं कि सारह (अब सारै का नाम बदलकर सारह रख दिया था) उसी घराने में हाजरा के साथ नहीं रह सकती थी। सो उस ने हज़रत इब्राहीम से मांग की कि हाजरा और उसके बेटे को घर से बाहर भेज दिया जाए। हालाँकि हज़रत इब्राहीम ना रज़ामंद थे मगर क्यूंकि अल्लाह ने हाजरा और इस्माईल को बरकत देने का वायदा किया था। इस बार हक़ीक़त में अल्लाह ने दुबारा उस से बात की। और जब उस के पास पानी ख़तम हो गया था और रेगस्तान में जब कहीं भी पानी नहीं मिल सकता था तो अल्लाह ने हाजरा की आँखें खोलीं जिस से उसने पानी देखा। और उससे वायदा किया कि हज़रत इस्माईल से भी एक बहुत ‘बड़ी क़ौम’ बनेगी।
तौरात लगातार बयान करती जाती है कि किसतरह यह कौम आगे तरक़क़ी करती गई। जब इब्राहीम (अलै.) की मौत होती है उस दौरान हम हज़रत इस्माईल के बारे में पढ़ते हैं।
इब्राहिम उत्पत्ति 25: 8-18 की मृत्यु
8 इब्राहीम धीरे—धीरे कमज़ोर पड़ता गया और भरे—पूरे जीवन के बाद चल बसा। उसने लम्बा भरपूर जीवन बिताया और फिर वह अपने पुरखों के साथ दफनाया गया। 9 उसके पुत्र इसहाक और इश्माएल ने उसे मकपेला की गुफा में दफनाया। यह गुफा सोहर के पुत्र एप्रोन के खेत में है। यह मम्रे के पूर्व में थी। 10 यह वही गुफा है जिसे इब्राहीम ने हित्ती लोगों से खरीदा था। इब्राहीम को उसकी पत्नी सारा के साथ दफनाया गया। 11 इब्राहीम के मरने के बाद परमेश्वर ने इसहाक पर कृपा की और इसहाक लहैरोई में रहता रहा।
12 इश्माएल के परिवार की यह सूची है। इश्माएल इब्राहीम और हाजिरा का पुत्र था। (हाजिरा सारा की मिस्री दासी थी।) 13 इश्माएल के पुत्रों के ये नाम हैं पहला पुत्र नबायोत था, तब केदार पैदा हुआ, तब अदबेल, मिबसाम, 14 मिश्मा, दूमा, मस्सा, 15 हदर, तेमा, यतूर, नापीश और केदमा हुए। 16 ये इश्माएल के पुत्रों के नाम थे। हर एक पुत्र के अपने पड़ाव थे जो छोटे नगर में बदल गए। ये बारह पुत्र अपने लोगों के साथ बारह राजकुमारों के समान थे। 17 इश्माएल एक सौ सैंतीस वर्ष जीवित रहा। 18 इश्माएल के लोग हवीला से लेकर शूर के पास मिस्र की सीमा और उससे भी आगे अश्शूर के किनारे तक, घूमते रहे और अपने भाईयों और उनसे सम्बन्धित देशों में आक्रमण करते रहे। [b]
पैदाइश 25:8-18
दर हक़ीक़त इस्माईल की उम्ररदराज़ी हुई और यह भी कि हज़रत इस्माईल और हज़रत इस्हाक़ दोनों के 12 ,12 क़बीलों के सरदार हुए। हज़रत इस्माईल के लिए जिसतरह अल्लांह ने वायदा किया था उसको बहुत बरकत दी। आज जितने भी अरब के लोग पाए जाते हैं वह सब उनके बाप दादा हज़रत इस्माईल और हज़रत इब्राहीम की औलाद यानि उन्ही की नसल से हैं।