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इखतियार के साथ तालीम के ज़रिये मसीह का इज़हार हुआ

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सूरा अल अलक़ (सूरा 96 – मुंजमिद होना) हमसे कहती है अल्लाह हमको एक नई बात सिखाता है जिसे हम पहले नहीं जानते थे I

  जिसने क़लम के ज़रिए तालीम दीउसीने इन्सान को वह बातें बतायीं जिनको वह कुछ जानता ही न था

सूरा अल — अलक़ 96:45

सूरा अर रोम (सूरा 30 – रोमियों) आगे समझाती है अल्लाह नबियों को पैगामात देने के ज़रिये ऐसा करता है ताकि हम समझें कि खुदा की सच्ची इबादत हम कौनसी गलती पर हैं I

  क्या हमने उन लोगों पर कोई दलील नाज़िल की है जो उस (के हक़ होने) को बयान करती है जिसे ये लोग ख़ुदा का शरीक ठहराते हैं (हरग़िज नहीं)

सूरा अर—रोम 30 -35

यह अँबिया खुदा की तरफ़ से इखतियार रखते हैं हमें ज़ाहिर करने के लिए कि खुदा के साथ हमारे ताल्लुक़ात गलत तरीक़े से कहां पर पाए जाते हैं चाहे वह हमारे सोच में हों चाहे वह हमारे बोलचाल में या या हमारे आदत ओ अतवार मे पाए जाते हों I नबी हज़रत ईसा अल मसीह अलैहिस्सलाम एक ऐसे बे मिसल उस्ताद और इखतियार रखने वाले थे कि हरेक के बातिनी खयालात खुद ब ख़ुद उसके सामने ज़ाहिर हों जाते थे I इसे हम यहाँ पर उसके इख्तियार की निशानी में देखते हैं जो उसकी शिफ़ा के मोजिज़ों के ज़रिये दिये गए हैं I

ईसा अल मसीह (अलैहिस्सलाम) के शैतान (इबलीस) के ज़रिये आज़माए जाने के बाद तालीम के ज़रिये एक नबी बतोर अपनी ख़िदमत शुरु की I उसकी सब से ज़ियादा लंबी तालीम को इंजील ए शरीफ़ में क़लमबंद किया गया है जिसे पहाड़ी वाज़ कहते हैं I यहाँ आप मुकम्मल पहाड़ी वाज़ को पढ़ सकते हैं I हम ज़ेल में कुछ सुर्खियां पेश कर रहे हैं और फिर हज़रत ईसा की तालीम के साथ यूएस तालीम को भी जोड़ेंगे जो तौरात में नबी मूसा के ज़रिये पेशीन गोई की गई थीं I

ईसा अल मसीह (अलैहिस्सलाम) ने ज़ेल में लिखी बातों की तालीम दी:

21 तुम सुन चुके हो, कि पूर्वकाल के लोगों से कहा गया था कि हत्या न करना, और जो कोई हत्या करेगा वह कचहरी में दण्ड के योग्य होगा।
22 परन्तु मैं तुम से यह कहता हूं, कि जो कोई अपने भाई पर क्रोध करेगा, वह कचहरी में दण्ड के योग्य होगा: और जो कोई अपने भाई को निकम्मा कहेगा वह महासभा में दण्ड के योग्य होगा; और जो कोई कहे “अरे मूर्ख” वह नरक की आग के दण्ड के योग्य होगा।
23 इसलिये यदि तू अपनी भेंट वेदी पर लाए, और वहां तू स्मरण करे, कि मेरे भाई के मन में मेरी ओर से कुछ विरोध है, तो अपनी भेंट वहीं वेदी के साम्हने छोड़ दे।
24 और जाकर पहिले अपने भाई से मेल मिलाप कर; तब आकर अपनी भेंट चढ़ा।
25 जब तक तू अपने मुद्दई के साथ मार्ग ही में हैं, उस से झटपट मेल मिलाप कर ले कहीं ऐसा न हो कि मुद्दई तुझे हाकिम को सौंपे, और हाकिम तुझे सिपाही को सौंप दे और तू बन्दीगृह में डाल दिया जाए।
26 मैं तुम से सच कहता हूं कि जब तक तू कौड़ी कौड़ी भर न दे तब तक वहां से छूटने न पाएगा॥
27 तुम सुन चुके हो कि कहा गया था, कि व्यभिचार न करना।
28 परन्तु मैं तुम से यह कहता हूं, कि जो कोई किसी स्त्री पर कुदृष्टि डाले वह अपने मन में उस से व्यभिचार कर चुका।
29 यदि तेरी दाहिनी आंख तुझे ठोकर खिलाए, तो उसे निकालकर अपने पास से फेंक दे; क्योंकि तेरे लिये यही भला है कि तेरे अंगों में से एक नाश हो जाए और तेरा सारा शरीर नरक में न डाला जाए।
30 और यदि तेरा दाहिना हाथ तुझे ठोकर खिलाए, तो उस को काटकर अपने पास से फेंक दे, क्योंकि तेरे लिये यही भला है, कि तेरे अंगों में से एक नाश हो जाए और तेरा सारा शरीर नरक में न डाला जाए॥
31 यह भी कहा गया था, कि जो कोई अपनी पत्नी को त्याग दे तो उसे त्यागपत्र दे।
32 परन्तु मैं तुम से यह कहता हूं कि जो कोई अपनी पत्नी को व्यभिचार के सिवा किसी और कारण से छोड़ दे, तो वह उस से व्यभिचार करवाता है; और जो कोई उस त्यागी हुई से ब्याह करे, वह व्यभिचार करता है॥
33 फिर तुम सुन चुके हो, कि पूर्वकाल के लोगों से कहा गया था कि झूठी शपथ न खाना, परन्तु प्रभु के लिये अपनी शपथ को पूरी करना।
34 परन्तु मैं तुम से यह कहता हूं, कि कभी शपथ न खाना; न तो स्वर्ग की, क्योंकि वह परमेश्वर का सिंहासन है।
35 न धरती की, क्योंकि वह उसके पांवों की चौकी है; न यरूशलेम की, क्योंकि वह महाराजा का नगर है।
36 अपने सिर की भी शपथ न खाना क्योंकि तू एक बाल को भी न उजला, न काला कर सकता है।
37 परन्तु तुम्हारी बात हां की हां, या नहीं की नहीं हो; क्योंकि जो कुछ इस से अधिक होता है वह बुराई से होता है॥
38 तुम सुन चुके हो, कि कहा गया था, कि आंख के बदले आंख, और दांत के बदले दांत।
39 परन्तु मैं तुम से यह कहता हूं, कि बुरे का सामना न करना; परन्तु जो कोई तेरे दाहिने गाल पर थप्पड़ मारे, उस की ओर दूसरा भी फेर दे।
40 और यदि कोई तुझ पर नालिश करके तेरा कुरता लेना चाहे, तो उसे दोहर भी ले लेने दे।
41 और जो कोई तुझे कोस भर बेगार में ले जाए तो उसके साथ दो कोस चला जा।
42 जो कोई तुझ से मांगे, उसे दे; और जो तुझ से उधार लेना चाहे, उस से मुंह न मोड़॥
43 तुम सुन चुके हो, कि कहा गया था; कि अपने पड़ोसी से प्रेम रखना, और अपने बैरी से बैर।
44 .परन्तु मैं तुम से यह कहता हूं, कि अपने बैरियों से प्रेम रखो और अपने सताने वालों के लिये प्रार्थना करो।
45 जिस से तुम अपने स्वर्गीय पिता की सन्तान ठहरोगे क्योंकि वह भलों और बुरों दोनो पर अपना सूर्य उदय करता है, और धमिर्यों और अधमिर्यों दोनों पर मेंह बरसाता है।
46 क्योंकि यदि तुम अपने प्रेम रखने वालों ही से प्रेम रखो, तो तुम्हारे लिये क्या फल होगा? क्या महसूल लेने वाले भी ऐसा ही नहीं करते?
47 और यदि तुम केवल अपने भाइयों ही को नमस्कार करो, तो कौन सा बड़ा काम करते हो? क्या अन्यजाति भी ऐसा नहीं करते?
48 इसलिये चाहिये कि तुम सिद्ध बनो, जैसा तुम्हारा स्वर्गीय पिता सिद्ध है॥

मत्ती 5:21-48

मसीह और पहाड़ी वाज़

ईसा अल मसीह (अलैहिस्सलाम) ने अपने इस बतोर शक्ल दी , मुबारकबादियों के बाद उसने इस तरह से कहना शुरू किया ,”तुम सुन चुके हों कि कहा गया था … मगर मैं तुम से कहता हूँ कि … “ I बयान की इस तरकीब में वह सब से पहले तौरेत का हवाला देता है और फिर हुक्मों की वुसअत को मंशाओं और लफ़्ज़ों की सोच की तरफ़ बढ़ाता है I हज़रत ईसा अल मसीह ने उन सख़्त हुक्मों को जो मूसा नबी के ज़रिये से दिये गए थे उन्हें करने के लिए या अमली जामा  पहनाने के लिए यहाँ तक कि और भी ज़ियादा मुश्किल कर दिये थे !

मगर क़ाबिल ए ज़िकर बात यह भी है कि जिस तरीक़े से उसने तौरेत के हुक्मों की वुसअत कीI वह अपने ख़ुद के इखतियार की बिना पर ऐसा करता है I वह सादे तोर कहता है “मगर मैं तुम से कहता हूँ … “ और इस के साथ वह हुक्म की गुंजाइश को बढ़ाता है I उसकी तालीम में यही एक बात बे मिसल पाई जाती है I जब उसने अपने इस वाज़ को ख़त्म किया था तो देखें की इंजील ए शरीफ़ हम से क्या कहती है :

28 जब यीशु ये बातें कह चुका, तो ऐसा हुआ कि भीड़ उसके उपदेश से चकित हुई।
29 क्योंकि वह उन के शास्त्रियों के समान नहीं परन्तु अधिकारी की नाईं उन्हें उपदेश देता था॥

मत्ती 7:28-29

हक़ीक़त में ईसा अल मसीह (अलैहिस्सलाम) ने इस बतोर तालीम दी जैसे कि एक साहिब ए इखतियार तालीम देता है I अक्सर अँबिया सिर्फ़ एक पैगंबर थे जो अल्लाह की जानिब से नाज़िल शुदा पैगाम को लोगों तक पहुंचाते थे I मगर यहाँ कुछ फ़रक़ था I ईसा अल मसीह ऐसा क्यूँ कर सका था ? ‘मसीह’ होने के नाते जो हम ने यहाँ देखा , ज़बूर शरीफ़ में आने वाले का एक लक़ब था कि उसके पास एक बड़ा इखतियार था ,ज़बूर ए शरीफ़ का 2 बाब जहां सब से पहले दिये गए मसीह के लक़ब का बयान है I ज़ेल मे दिये तरीक़े से अल्लाह मसीह से बात कर रहा है :

8 मुझ से मांग, और मैं जाति जाति के लोगों को तेरी सम्पत्ति होने के लिये, और दूर दूर के देशों को तेरी निज भूमि बनने के लिये दे दूंगा।

ज़बूर 2:8

मसीह को यहाँ तक कि ज़मीन की इंतिहा तक क़ौमों पर इखतियार दिया गया था , इसी तरह मसीह होने के नाते उसको इखतियार दिया गया था कि वह इस तरीक़े से तालीम दे जैसे उसने दी I

नबी और पहाड़ी वाज़

दरअसल जैसे हम ने यहाँ देखा , तौरात में नबी मूसा (अलैहिस्सलाम) ने आने वाले ‘नबी’ की बाबत पेशीन गोई की थी कि ‘जिस बतोर उसने तालीम दी थी उस बतोर उसपर गौर किया जाएगा सो मूसा ने लिखा :

18 सो मैं उनके लिये उनके भाइयों के बीच में से तेरे समान एक नबी को उत्पन्न करूंगा; और अपना वचन उसके मुंह में डालूंगा; और जिस जिस बात की मैं उसे आज्ञा दूंगा वही वह उन को कह सुनाएगा।
19 और जो मनुष्य मेरे वह वचन जो वह मेरे नाम से कहेगा ग्रहण न करेगा, तो मैं उसका हिसाब उस से लूंगा।

इस्तिसना 18:18 -19

जिस तरीक़े से उसने तालीम दी उसमें हज़रत ईसा मसीह होने बतोर अपने इखतियार का रियाज़ कर रहे थे और मूसा की नबुवत जो आने वाले नबी की बाबत थी उस नबुवत को पूरा कर रहे थे कि वह एक बड़े इख्तियार के साथ तालीम देगा I वह मसीह और नबी दोनों थे I

आप और मैं और पहाड़ी वाज़

अगर आप इस पहाड़ी वाज़ का गौर से मुताला करते हैं तो यह देखने के लिए कि कैसे उस पर अमल की जाए तो आप गालिबन उलझन में रह जाएंगे I किस तरह कोई ऐसे अहकाम के साथ जी सकता है जो हमारे दिलों और मंशाओं से मुखताब हो ? इस पहाड़ी वाज़ से ईसा अल मसीह का मक़सद क्या था ? इस सवाल के जवाब को हम पाँच बाब की आख़री आयत को देख सकते हैं I

48 इसलिये चाहिये कि तुम सिद्ध बनो, जैसा तुम्हारा स्वर्गीय पिता सिद्ध है॥

मत्ती 5:48

गौर करें कि यह हुकुम था , मशवरा नहीं था I उस का तक़ाज़ा यह था कि हम कामिल बनें ! क्यूँ ? क्यूंकि खुदा कामिल है और अगर हम जन्नत में उसके साथ रहना रहना है तो कमिलियत के अलावा और कोई चीज़ काम नहीं दे सकती I हम अक्सर सोचते हैं कि शायद ज़ियादा अच्छा बनना हमारे बुरे आमाल से बेहतर है —यह काफ़ी होगा I पर अगर यह मामला था तो अल्लाह हमको जन्नत में दाख़िल होने देता और हम जन्नत की कामिलियत को बर्बाद कर देते और उसे एक गंदा मक़ाम बतोर बदल कर रख देते जिस तरह से इस दूनया में मौजूद है I यह हमारी नफ़सानी ख़ाहिश , शहवत परस्ती , लालच और गुस्सा वगैरा जो आज यहाँ पर हमारी ज़िंदगियों को बर्बाद करता है I अगर हम ऊपर की चीजों को लेकर जन्नत में दाख़िल होंगे तो वह जननत बहुत जल्द हमारी इस दुन्या की तरह ही हो जाएगी – बहुत सारी पेशानियों से भरपूर जो हम ही ने पैदा किए हैं I

दरअसल ईसा अल मसीह की तालीम का अक्सर हिस्सा हमारी बाहिरी रसम के बदले हमारे दिल की बातिनी हिस्से को लेकर हमें फिकरमंद बनाती है I उसकी दूसरी तालीम से गौर करें कि यह किस तरह हमारे दिलों के अंदरूनी हिस्से पर असर डालता है I

20 फिर उस ने कहा; जो मनुष्य में से निकलता है, वही मनुष्य को अशुद्ध करता है।
21 क्योंकि भीतर से अर्थात मनुष्य के मन से, बुरी बुरी चिन्ता, व्यभिचार।
22 चोरी, हत्या, पर स्त्रीगमन, लोभ, दुष्टता, छल, लुचपन, कुदृष्टि, निन्दा, अभिमान, और मूर्खता निकलती हैं।
23 ये सब बुरी बातें भीतर ही से निकलती हैं और मनुष्य को अशुद्ध करती हैं॥

मर्क़ुस  7:20-23

सो हमारे अंदर जो पाकीज़गी पाई जाती है वह बहुत अहमियत रखता है इस के अलावा हमारी कामिलियत का मेयार भी बहुत मायने रखता है I अल्लाह अपने कामिल मक़ाम ए जन्नत में कामिलियत को ही दाख़िल होने देगा I मगर यह हालांकि लिखावट मे अच्छा लगता हो मगर यह बहुत बड़ी परेशानी खड़ा करता है : कि हम इस मक़ाम तक कैसे पहुँच पाएंगे ? कामिल बनने की हमारी सख़्त ना मुमकिन मायूसी का सबब बनने के लिए काफ़ी हों सकता है I

मगर यही बात तो वह चाहता है I जब हम कभी अच्छे बनने की ख़्वाहिश से ना उम्मीद हो जाते ,जब हम ख़ुद के आमाल पर भरोसा करना छोड़ देते हैं तभी हम ‘दिल के गरीब’ बनते हैं I और ईसा अल मसीह ने इस पहाड़ी वाज़ के शुरू मेँ यही कहा I

3 धन्य हैं वे, जो मन के दीन हैं, क्योंकि स्वर्ग का राज्य उन्हीं का है।

मत्ती 5:3

हमारे लिए हिकमत का शुरू आईएन तालीमात को छोड़ना नहीं है यह सोचकर कि यह बातें हमपर नाफ़िज़ नहीं होते , बल्कि यह हम पर ज़रूर नफ़िज़ होते हैं ! मगर इस का मेयार वही है कि हमको ‘कामिल बनना’ है I जैसे ही हम इस मेयार को अपने अन्दर डूबने देते हैं, और महसूस करते हैं कि हम इस क़ाबिल नहीं हैं तभी हम सीधी सच्ची रह से भटकने लगते और नीचे की तरफ़ जाने लगते हैं I हम इस सीधी सच्ची राह से इसलिए भटकते हैं क्यूंकि हम अपनी कोताही को जानते है I हम मदद को कबूल करने के लिए ज़ियादा तयार रह सकते है बनिस्बत अगर हम यह सोचें कि इसे हम अपने ख़ुद की कोशिश से अंजाम दे सकते हैं I                 

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