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कितना कुछ हमें शरीयत की पाबंदी करनी ज़रूरी है ?

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कभी कभी मुझ से पूछा जाता है कि अगर अल्लाह सच मुच हम से तवक़क़ो रखता और सौ फ़ीसदी फ़रमान बरदारी की उम्मीद करता है ? हम इस की बाबत इंसानों के दरमियान बहस कर सकते हैं ।  मगर इस सवाल का जवाब इंसानों के ज़रिये नहीं बल्कि अल्लाह की जानिब से ही मिलेगा ।  सो बजाए इस के कि मैं तौरात से आयतों को चुनूं जो हम से कहते हैं कि फ़रमान बरदारी के फैलाव के लिए या इस में क़दम बढ़ाने के लिए कीं बातों की ज़रुरत है या कीं बातों की उम्मीद की जाती है ।  ज़ेल में कुछ बातें हैं उनपर गौर करें या आप खुद पता लगाएं कि इनसे मुताल्लिक़ कितनी आयतें कितनी साफ़ तोर पर बयान करती हैं । यह आयतें इस तरह कि मुहावरों से भरी हैं जैसे : “ख़बरदारी से शरीयत की पाबन्दी करो”…“तमाम अहकाम की पाबन्दी करो”…“खबरदारी से पाबन्दी करो”…. “अपने पूए दिल से इन्हें मानो”…“हर हमेशा शरीयत की बातों पर धियान दो”…“पूरी फ़र्मान्बर्दारी करो”… “शरीयत की तमाम बातों को सुनो” वगैरा वगैरा ।

इस फ़रमान बरदारी का 100 % फ़ीसदी मेयार बाद के नबियों के ज़माने में कभी नहीं बदला ।  न ही इंजील में ईसा अल मसीह के ज़माने में ।

17 “यह मत सोचो कि मैं मूसा के धर्म-नियम या भविष्यवक्ताओं के लिखे को नष्ट करने आया हूँ। मैं उन्हें नष्ट करने नहीं बल्कि उन्हें पूर्ण करने आया हूँ। 18 मैं तुम से सत्य कहता हूँ कि जब तक धरती और आकाश समाप्त नहीं हो जाते, मूसा की व्यवस्था का एक एक शब्द और एक एक अक्षर बना रहेगा, वह तब तक बना रहेगा जब तक वह पूरा नहीं हो लेता।

19 “इसलिये जो इन आदेशों में से किसी छोटे से छोटे को भी तोड़ता है और लोगों को भी वैसा ही करना सिखाता है, वह स्वर्ग के राज्य में कोई महत्व नहीं पायेगा। किन्तु जो उन पर चलता है और दूसरों को उन पर चलने का उपदेश देता है, वह स्वर्ग के राज्य में महान समझा जायेगा।

मत्ती 5:17- 19

और हज़रत मोहम्मद सल्लम ने इस से मुताल्ल्लिक़ जो बात कही इस का ज़िक्र पाया जाता है ।

नाराज़ अब्दुल्ला इब्न उमर: .. यहूदियों का एक समूह आया और अल्लाह के रसूल (पीबीयूएच) को क्वफ में आमंत्रित किया। … उन्होंने कहा: Q अबुलकसीम, हमारे एक आदमी ने एक महिला के साथ व्यभिचार किया है; इसलिए उन पर फैसला सुनाएँ। ‘ उन्होंने अल्लाह के रसूल (पीबीयूएच) के लिए एक गद्दी रखी जो उस पर बैठ गया और कहा: “टोरा लाओ”। इसे तब लाया गया था। फिर उसने अपने नीचे से गद्दी वापस ले ली और यह कहते हुए तोराह पर रख दिया: “मैं तुम पर विश्वास करता था और तुम कौन हो।”

सुनन अबू दाऊद किताब 38 ।  सफ़्हा नंबर 4434

और यही एक बात काबिल ए क़बूल है कि अल्लाह जन्नत को तैयार कर रहा है और यह कामिल और मुक़द्दस मुक़ाम है जहां वह सुकूनत करता है ।  वहां न पुलिस है न फ़ौज ।  न वहां क़ुफुल ताले की ज़रुरत है । वहां पर मुहाफ़िज़ों की भी ज़रुरत नहीं है । आज हमें दुनया में रहते हुए खुद को और दूसरों के गुनाह और उसके असरात से हिफाज़त करने की ज़रुरत है ।  यही हमारे लिए जन्नत साबित होगा ।  मगर इस कामिल और मुक़द्दस मुक़ाम में सिर्फ़ कामिल लोग ही दाखिल हो सकते हैं । और वह कामिल लोग कौन हैं ? वह कामिल लोग जो तमाम अहकाम को “हमेशा”  “पूरी तरह से” और हर बात में मानने के लिए तैयार रहते हैं ।

यहाँ तौरेत शरीयत के अहकाम की फ़रमानबरदारी में आगे बढ़ने के लिए जिस बात की ज़रुरत को बताती है वह यह है कि          

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